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*9 अगस्त 1942 की कहानी जी जी परीख की जुबानी

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डॉ सुनीलम*

98 वर्षीय डॉ. जी जी परीख 9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल थे। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त के भाषण में हिन्दू-मुस्लिम एकता की अपील करते हुए घोषणा की थी कि देश का हर नागरिक आज के बाद खुद को आज़ाद समझे। उन्होंने ‘करो या मरो’ का आव्हान करते हुए कहा कि देश की सत्ता मेहनतकश लोगों के हाथ में जानी चाहिए। उन्होंने अहिंसा की अनिवार्यता पर अत्यधिक जोर दिया था। उन्होंने कड़े शब्दों में कहा था कि

सांप्रदायिक मानसिकता वालों को 

आंदोलन से दूर रहना चाहिए।

मुम्बई के लोकप्रिय समाजवादी मेयर यूसुफ मेहेर अली, जिन्होंने अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा दिया था, को मालुम हो गया था कि गिरफ्तारियां की जाएंगी। परंतु गांधी जी को लगता था कि अंग्रेज इतनी जल्दबाजी नहीं करेंगे।

यूसुफ मेहेर अली जी ने सभी सोशलिस्टों को भूमिगत होने की सलाह दे दी थी। जिसके चलते डॉ. राममनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन, एसएम जोशी, शिरू भाऊ लिमये तथा सुचेता कृपलानी सहित कई कांग्रेसी नेता भूमिगत हो गए थे।

9 अगस्त की सुबह सभी प्रमुख कांग्रेस गिरफ्तार कर लिए गए। यूसुफ मेहेर अली अशोक मेहता आदि समाजवादी नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए। जेपी पहले से ही जेल में थे।

जी जी 9 अगस्त की याद करते हुए बतलाते हैं कि उस दिन कस्तूरबा जी को तिरंगा फहराना था। लेकिन उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था। अरुणा आसफ अली आई और राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर चली गईं।आंसू गैस छोड़ी गई, गोलियां भी चलीं।

सर्वविदित है कि 23 जून 1757 के दिन जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पलासी के युध्द में हरा दिया था, तबसे देश को गुलाम बनाने की शुरुआत की थी। तब से लेकर 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने तक 9 अगस्त 1942 का अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन सबसे बड़ा जन आंदोलन था। जिसमे 50 हज़ार राष्ट्र भक्त शहीद हुए और एक लाख से ज्यादा को सजाएं हुई।

डॉ. जी जी परीख को 12 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। वर्ली (मुम्बई) में अस्थाई जेल बनाई थी वहां तीसरी मंजिल पर एक कमरे में उन्हें रखा गया था जिसमें अन्य 12 लोग भी पहले से थे। बिछाने के लिए जूट की दरी दी गई थी।

डॉ. जी जी बताते हैं कि वर्ली जेल में रोज सुबह बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लाया जाता था तथा अधिकतर को शाम तक छोड़ दिया जाता था। जिससे उन्हें लगता था कि छात्र होने के कारण उन्हें भी छोड़ दिया जाएगा। एक दिन ऑर्थर रोड जेल से कुछ आंदोलनकारी लाए गए। वे कुछ मांगे कर रहे थे, रास्ते पर बैठ गए, शाम को जब वे अपने कमरे में गए, तब उन्हें लगा कि उनकी मांगे मान ली गई हैं। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया। ज्यों ही वह नारा लगाया गया, जेल के कर्मचारियों ने आकर सभी को पीटना शुरू कर दिया। जीजी को भी चोटें आई, खून निकला तब उन्हें यह समझ आ गया कि उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। जी जी  कहते हैं कि तब से वे पक्के जेल वाले बन गए। उन्हें एक महीने के लिए ठाणे जेल में भी रखा गया। वर्ली जेल में रोहित दवे स्टडी सर्किल लिया करते थे। वे मार्क्सवाद से लेकर भारतीय संस्कृति तक पढ़ाया करते थे।

जी जी ने कहा कि लगातार अंग्रेजी की किताबें पढ़ने के चलते उनकी अंग्रेजी भी सुधर गई थी। ठाना जेल में उन्हें  दत्ता तमाणे के बारे में याद है। दूसरे वर्ली जेल के सी बी वारद थे, जो उनका ख्याल रखते थे। एक और पारसी साथी थे जो बहुत रईस घराने के थे। उनके पिताजी जेल में बढ़िया खाना कभी-कभी लाया करते थे जो सभी मिलकर खाया करते थे। जी जी को मैंने पूछा कि तब क्या बाहर का खाना लाने की अनुमति थी ? तब उन्होंने कहा कि हम पहले जब किताब, वॉलीबॉल या कैरम की मांग करते थे तब पहले मना किया जाता था, कई बार पीटा तक गया, बाद में जेल अधिकारी मान लेते थे। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि काफी भारतीय पुलिस और सीआईडी के अधिकारी और कर्मचारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ हमदर्दी रखते थे, जो आदेश आता था उसका पालन तो करते थे लेकिन व्यवहार से पता चलता था कि उनकी हमदर्दी आंदोलनकारियों के साथ है।

1942 के आंदोलन में 10 महीने के जेल प्रवास के बारे में खास बातें पूछने पर वे बताते हैं कि 1942 के आंदोलन ने कम्युनिस्ट शामिल नहीं थे इसलिए उन्हें कांग्रेसियों के द्वारा विश्वासघाती माना जाता था। इस परिस्थिति में तीन नए संगठन बनाने का निर्णय लिया गया। एआईटीयूसी छोड़कर राष्ट्रीय मज़दूर सभा बनाने का निर्णय लिया गया, जो बाद में हिन्द मज़दूर सभा बनी।

सांस्कृतिक  समूह इप्टा की जगह इंडियन नेशनल थियेटर तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की जगह स्टूडेंट कांग्रेस बनाने का निर्णय लिया गया था।

जी जी बताते हैं कि इंडियन नेशनल थियेटर का संगठन कमलादेवी चट्टोपाध्याय तथा रोहित दवे के नेतृत्व में जेल से निकलने के बाद गठित किया गया। वे बताते हैं कि लंबे समय तक इंडियन नेशनल थियेटर चला बाद में बिरला ने उस पर कब्जा कर लिया। उन्हें यह भी याद है कि बंगाल के अकाल को लेकर ‘भूख’ नामक इस ग्रुप का एक  नाटक बहुत लोकप्रिय हुआ था।

वे बताते हैं कि स्टूडेंट कांग्रेस के गठन में उनके साथ रामसुमेर शुक्ला, प्रभाकर कुंटे तथा रवि वर्मा  की बड़ी भूमिका थी। डॉ. जी जी परीख 1947 में स्टूडेंट कांग्रेस के मुंबई के अध्यक्ष थे।

जेल से आने के बाद 42 ग्रुप तथा समाजवादियों ने तय किया है कि वे गिरगांव चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान तक का मौन जुलूस नियमित निकाला करेंगे। इस कार्यक्रम में मधु दण्डवते, रोहित दवे, नरेंद्र पंड्या, चंद्रकांत दलाल, दामू झावेरी, ललित मोहन जमुनादास किनारीवाला, निरुपमा मेहता, हिम्मत झवेरी आदि शामिल हुआ करते थे।

एक बार 9 अगस्त को जब उषा मेहता, मृणाल गोरे, मंगला परीख के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाला जा रहा था तब नाना चौक पर पुलिस ने उसे रोक दिया। हल्का लाठीचार्ज भी हुआ। विरोध स्वरूप सत्याग्रह हुआ। तब से आज तक कभी मौन जुलुस को महाराष्ट्र पुलिस और प्रशासन द्वारा नहीं रोका गया।

यह मौन जुलूस डॉ. जी जी परीख के नेतृत्व में 9 अगस्त 22  बाल गंगाधर तिलक और विठ्ठल भाई पटेल की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर चौपाटी से सुबह 8 :15 पर अगस्त क्रांति मैदान के  स्तंभ के लिए निकलेगा।

इस बार नफरतों भारत छोड़ो  मार्च में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दत्ता गांधी, महात्मा गांधी के प्रपोत्र तुषार गांधी, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, हिमांशु कुमार के साथ सैकड़ों समाजवादी कार्यकर्ता शामिल होंगे।

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