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परंपरा और स्वाद से छेड़छाड़ उचित नहीं…श्रीमाया पर कार्रवाई के बाद उठ रहे सवाल…

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जिला प्रशासन बेसमेंट के खिलाफ अभियान चला रहा है। अच्छी बात है, बेसमेंट में पार्किंग ही होनी चाहिए। इसके लिए जिला प्रसाशन की पीठ थपथपानी चाहिए, लेकिन शहर में ऐसे बहुत सारे होटल, बिल्डिंग व संस्थान हैं जो अभी भी प्रशासन के आदेश को मुंह चिढ़ा रहे हैं। श्रीमाया जैसे प्रतिष्ठित संस्थान पर कार्रवाई से लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

लोग कह रहे हैं कि सबकी आंखों के सामने सयाजी होटल अभी भी पहले की तरह ही चल रहा है। इंदौर विकास प्राधिकरण लीज तक निरस्त कर चुका है। वह अवैध निर्माण कर दुकानें बना चुका है, लेकिन किसी की मजाल नहीं होती कि उसकी तरफ आंखें उठाकर देखे।

शहर को यह भी पता है कि सयाजी को किस सत्तारुढ़ दल के नेता का संरक्षण है। शहर को नूरजहां होटल की कहानी भी पता है। शहर को एमजी रोड पर रहवासी प्लॉटों को मिलाकर पूरी तरह अवैध रूप से तनी मध्यप्रदेश के सबसे पहले मॉल की कहानी भी पता है। शहर को चाय व्यापरियों के छोटे प्लॉटों को मिलाकर एबी रोड पर दो-दो मॉल तन जाने की भी खबर है। शहर के लोग यह भी जानते हैं कि रेडिसन होटल भी एक विवादित संस्था की जमीन पर बना है। शहर यह भी जानता है कि कितने पब और बार सारे नियमों का उल्लंघन कर चल रहे हैं। विजय नगर चौराहे पर ही एक पब से देर रात तक आती कानफोड़ू म्यूजिक की आवाज किसी अधिकारी को सुनाई नहीं देती।

इतनी बातें शहर इसलिए कह रहा है कि स्वाद के मामले में श्रीमाया का कोई जोड़ नहीं। स्वाद के लिए ही लोग वहां खाने के लिए घंटों इंतजार करते हैं। बड़े लोगों से लेकर मध्यम वर्ग तक सिर्फ स्वाद के कारण ही यहां जाता है। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर जब भी इंदौर आते थे श्रीमाया में ही ठहरते थे। कई बार पत्रकारों ने उनसे सवाल किए तो हर बार उन्होंने यही कहा कि यहां का खाना उन्हें बहुत भाता है। इसका स्वाद बेजोड़ है।

अधिकारी शायद भूले नहीं होंगे कि आज जिस होटल को उन्होंने सील किया है, कोरोना काल के दौरान उसी होटल ने उन्हें शरण दी थी। उसकी साफ-सुथरी, मानकों वाली व्यवस्था और स्वादिष्ट भोजन के लिए ही कोरोना काल में पूरे शहर में उसी का चयन किया गया था। इतना ही नहीं पुरानी श्रीमाया में डॉक्टरों को सिर्फ इसलिए ठहराया गया था कि उस समय डॉक्टरों को स्वस्थ और सुरक्षित रखना जरूरी था।

लोगों को इस बात पर भी आश्चर्य हो रहा है कि साल 1989 से बनी होटल पर जिला प्रशासन की नजर अब पड़ी। कार्रवाई के लिए जो एसडीएम साहब गए थे उनकी भी खूब चर्चा हो रही है। जहां उन्हें गड़बड़ी मिली, वह रेस्टूरेंट में काम करने वाले कर्मचारियों का कैफेटेरिया था, लेकिन साहब ऐसा व्यवहार कर रहे थे जैसे किसी आतंकवादी को पकड़ लिया हो।

लोगों को शंका हो रही है कि कहीं किसी के इशारे पर तो यह कार्रवाई नहीं हुई? अधिकारियों से लेकर नेताओं तक को यह बात समझनी चाहिए। स्वाद के लिए पूरे देश में पहचाने जाने वाले इंदौर शहर में स्वाद की पहचान मिटाकर आखिर हम क्या हासिल करना चाहते हैं?

एक बात और हमारे जैसे पत्रकारों को श्रीमाया ना तो कोई डिस्काउंट देता है और ना ही उधारी। हां, कई पत्रकारों को यह जरूर पता है कि कौन-कौन अधिकारी और पक्ष-विपक्ष का नेता वहां मुफ्त में खाना खा आते हैं। इनसे पैसे मांगना तो परंपरा में ही नहीं।

प्रशासन के कर्ताधर्ता इस मामले में एक बार सोचें जरूर…आप आज हैं, कल यहां से चले जाएंगे…लेकिन शहर जिन्दा रहेगा और यहां की परंपरा और स्वाद भी…इससे छेड़छाड़ उचित नहीं…

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