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अपनों की तलाश में अटका निमाड़ में टीम का गठन

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी। कहते हैं रस्सी जल जाए, लेकिन बल नहीं गया कहावत कांग्रेस पर पूरी तरह से फिट बैठती है। दरअसल प्रदेश में डेढ़ साल बाद जैसे- तैसे सत्ता मिली, लेकिन पार्टी में नेताओं के बीच जारी गुटबाजी ने सरकार से बाहर करवा दिया। इसके बाद उपचुनावों में इसी गुटबाजी के चलते पार्टी को हार दर हार का सामना करना पड़ा,  लेकिन फिर भी हम नहीं सुधरे की तर्ज पर एक दूसरे नेता के समर्थकों को गिराने का काम जारी है। खंडवा लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव के बाद इसी गुटबाजी का शिकार बने हैं खंडवा व बुरहनपुर जिले के पार्टी अध्यक्ष।  
कांग्रेस प्रत्याशी हारे तो इसका ठीकरा इन दोनों ही जिलों के जिलाध्यक्षों पर फोड़कर उन्हें पदों से हटा दिया गया।  अब इन्हें हटाए हुए एक माह का समय हो चुका है, लेकिन पार्टी इन दोनों जिलों में नए सिरे से टीम का गठन ही नहीं कर पा रही है। दरअसल यह वो इलाका है जो पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव के प्रभाव वाला माना जाता है। वे प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पार्टी में विरोधी माने जाते हैं। अब इन जिलों में नाथ खेमे को ऐसे चेहरे नहीं मिल पा रहे हैं, जिन्हें जिले की कमान दी जा सके। इसकी वजह से पार्टी में कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है। बताया जा रहा है कि नाथ और उनके समर्थक दोनों ही जिलों में ऐसी टीम चाहते हैं, जिस पर यादव का प्रभाव न हो, जिसकी वजह से दिक्कत आ रही है। यादव निमाड़ क्षेत्र के कद्दावर कांग्रेस नेता है। बीते साल तक उनकी पंसद ना पसंद को ध्यान में रखकर ही उनके इलाके में नियुक्तियां होती रही हैं। सरकार गिरने के बाद नाथ व यादव के बीच दूरियां और बड़ी हैं।  यही वजह है कि पहले उनकी तैयारी के बाद भी उन्हें खंडवा लोकसभा उपचुनाव के लिए पार्टी का टिकट नहीं मिल सका और बाद में पार्टी प्रत्याशी की हुई हार का ठीकरा भी उनके सिर पर फोड़ने का प्रयास किया गया। फलस्वरूप पार्टी ने एकतरफा निर्णय लेते हुए हार के लिए जिम्मेवार मानते हुए खंडवा, बुरहानपुर जिला इकाइयों को भंग कर दिया था। यह जिला इकाईयां यादव समर्थक मानी जाती थीं। इस मामले के तूल पकड़ने पर एआइसीसी सचिव सीपी मित्तल को वास्तविकता पता करने दो दिनों तक दोनों जिलों का दौरा करना पड़ा है। इस दौरान उनके द्वारा कार्यकर्ताओं व आमजन से चर्चा कर वास्तविकता का पता लागाने का प्रयास किया गया है। इसमें संभावित जिलाध्यक्षों के नामों का भी पता लगाया गया है। उनके द्वारा अपनी रिपोर्ट एआईसीसी को दी जा चुकी है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि अब जल्द ही इन दोनों जिलों के बारे में कोई निर्णय लिया जा सकता है।
निष्क्रिय पदाधिकारी होंगे बाहर
इधर, भाजपा के साथ ही कांग्रेस में भी मिशन 2023 की तैयारियों पर काम शुरू किया जा चुका है। इसके तहत अब पार्टी द्वारा अपने संगठनों व विभिन्न विभागों को सक्रिय करने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रदेश स्तर पर पदाधिकारियों के कामकाज और उनकी सक्रियता पर भी बारीकी से नजर रखी जा रही है। इसकी वजह है आम चुनाव से पहले निष्क्रीय लोगों की छुट्टी कर नए लोगों को मौका देकर उन्हें सक्रिय करना है। दरअसल इन दिनों कांग्रेस में एक दर्जन से अधिक विभाग और संगठनों में से कुछ को छोड़ शेष की गतिविधियां लगभग ठप से पड़ी हुई हैं। यह बात अलग है कि इन सभी सहयोगी संगठनों को अलग-अलग काम देकर उनके लक्ष्य हासिल करने को कहा जा चुका है। इन सभी से काम-काज का ब्योरा भी मांगा गया है। इसमें खासतौर पर यह जानकारी मांगी जा रही है कि उनके द्वारा अब तक क्या किया गया है । इसके प्रमाण के रूप में उनसे फोटोग्राफ और अखबारों की कतरनें भी मांगी गईं। इसके साथ ही इन सभी को यह भी कहा जा चुका है कि वे फील्ड में सक्रिय नजर आना चाहिए। इस मामले में पार्टी कोई समझौता नहीं करेगी।
जिलाध्यक्षों के कामकाज पर नजर
पार्टी की जिला और ग्रामीण इकाइयों पर भी नजर रखी जा रही है। प्रयास यही है कि उनकी सक्रियता लगातार मैदानी स्तर पर दिखती रहे। इसके अलावा पार्टी उन नेताओं को भी सक्रिय करने की तैयारी कर रही है जो किसी न किसी वजह से अब घर बैठ चुके है। खास बात यह है कि जो पदाधिकारी समझाईश और चेतावनी के बाद भी सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं उन्हें चेतावनी भी दी जा रही है कि अगर उनकी सक्रियता नहीं बढ़ी तो उनकी छुट्टी करने में कोई कोताही नहीं की जाएगी। /बिच्छू डॉट कॉम

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