इंदौर, । आज से शहर से प्रदेश के कई मार्गों पर चलने वाली 300 से ज्यादा बसें थम गई हैं। इससे यात्री ‘बेबस’ हैं। ऐसा परिवहन विभाग द्वारा अस्थायी परमिट जारी न किए जाने के कारण हुआ है। परिवहन विभाग का कहना है कि बस संचालकों ने नए परमिटों के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिस पर कोर्ट ने स्टे दिया है, इसलिए परमिट जारी नहीं किए जा सकते। वहीं बस संचालकों का कहना है कि कोर्ट ने सिर्फ नए पक्के परमिटों की सुनवाई पर रोक लगाई थी, लेकिन विभाग अस्थायी परमिटों के रिन्युअल को रोक रहा है। इस मामले में परिवहन विभाग और बस संचालकों के आमने-सामने होने का खामियाजा हजारों आम यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि जनवरी में एक बस संचालक ने हाईकोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा था कि परिवहन विभाग द्वारा बिना रूट्स का फार्मूलेशन किए और बसों की फ्रीक्वेंसी (दो बसों के बीच समय अंतराल) तय किए नए परमिट जारी किया जा रहा है, जो गलत है। इस पर कोर्ट ने 31 जनवरी को स्टे देते हुए कहा था कि परिवहन विभाग सभी फ्रीक्वेंसी सेट करने तक नए परमिटों पर सुनवाई न करे। इसके बाद परिवहन विभाग ने परमिटों की सुनवाई रोक दी थी। अब परिवहन विभाग ने इंदौर आरटीओ से जारी अस्थायी परमिट, जो एक-एक माह के लिए ही जारी होते हैं, को जारी करने से भी इनकार कर दिया है। बस संचालकों का कहना है कि कल यानी 29 फरवरी को फरवरी माह के परमिट खत्म हो गए हैं और विभाग मार्च के लिए नए परमिट जारी नहीं कर रहा है, जिनकी संख्या 300 से ज्यादा है। वहीं दूसरी ओर अधिकारियों का तर्क है कि किसी भी रूट का अस्थायी परमिट एक माह का होता है और एक माह बाद बस संचालक जब दोबारा उसके लिए आवेदन करता है तो यह नए परमिट का आवेदन होता है और कोर्ट ने नए परमिटों की सुनवाई और जारी करने पर रोक लगाई है। इसलिए ऐसे परमिट जारी नहीं किए जा सकते हैं। इस कारण आज से शहर से चलने वाली 300 से ज्यादा बसें खड़ी हो गई हैं और सुबह से हजारों यात्री परेशान हैं।
अपने ही जाल में फंसे बस संचालक
परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ पुराने बस संचालकों ने लंबे समय से इंदौर सहित अन्य शहरों से चलने वाली बसों के मार्गों पर एकाधिकार जमा लिया है। जब भी नई बसें चलाने के लिए नए ऑपरेटर्स आवेदन करते हैं तो उनकी सुनवाई रोकने के लिए पुराने बस संचालक कोर्ट जाकर उसे रोकने का प्रयास करते हैं। पिछले एक साल से एक बार भी नए परमिटों पर सुनवाई नहीं हो पाई है। इस बार कुछ परमिटों के खिलाफ जाने के बजाय बस संचालकों द्वारा कोर्ट में सैद्धांतिक प्रश्न उठाए जाने पर कोर्ट ने परमिटों की सुनवाई पर ही रोक लगा दी है, जिससे परिवहन विभाग अस्थायी परमिट भी जारी नहीं कर रहा है। इससे नए बस ऑपरेटर्स को रोकने के प्रयास में लगे बस संचालक अब अपनी बसें चलाने के लिए ही परेशान हो रहे हैं और अपने ही जाल में फंसे नजर आ रहे हैं।
कोर्ट की रोक नए पक्के परमिटों के लिए
प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने बताया कि कोर्ट ने नए पक्के परमिटों की सुनवाई पर रोक लगाई है, जो पांच सालों के लिए जारी होते हैं। लेकिन परिवहन अधिकारी जानबूझकर मौजूदा अस्थायी परमिटों के रिन्युअल को भी रोक रहे हैं। इससे 300 से ज्यादा बसें खड़ी हो गई हैं और हजारों यात्री परेशान हैं। अस्थायी परमिट जारी न होने से शासन को भी लाखों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है।
बरात का परमिट लेकर ढोएंगे यात्री
परिवहन विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कई बस संचालक अस्थायी परमिट जारी न होने से बस संचालन बंद कर सकते हैं। वहीं कई एक सप्ताह का बरात का परमिट लेकर बसों का संचालन जारी रख सकते हैं। इससे उन्हें ज्यादा टैक्स जरूर चुकाना होगा, लेकिन बसों का संचालन नहीं रुकेगा। हालांकि चैकिंग होने पर ऐसी बसों के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है।
कोर्ट के फैसले तक नहीं जारी किए जाएंगे परमिट
बस संचालकों की याचिका पर कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि नए परमिटों की सुनवाई न की जाए। आदेश में कहीं भी स्थायी या अस्थायी परमिटों की बात नहीं कही है। अस्थायी परमिट हर माह नए होते हैं। इस आधार पर कोर्ट के आदेश पर हमने सभी परमिटों की सुनवाई और जारी करना बंद कर दिया है। 6 मार्च को इस मामले में कोर्ट में दोबारा सुनवाई होगी, जिसमें विभाग अपना पक्ष रखेगा। इसके बाद अगर कोर्ट रोक हटाती है तो परमिट जारी किए जाएंगे और रोक हटने पर पक्के परमिटों की सुनवाई भी की जाएगी। इस बीच अगर बस संचालक बिना परमिट या बरात परमिट पर बस चलाते पाए जाएंगे तो सख्त कार्रवाई भी की जाएगी।
– प्रदीप शर्मा, आरटीओ, इंदौर