किसान आंदोलन के छः माह और मोदी सरकार के सात साल पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा और संयुक्त ट्रेड यूनियन्स की तरफ से देशभर में आयोजित काला दिवस में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, जय किसान आंदोलन से जुड़े मजदूर किसान मंच, वर्कर्स फ्रंट के कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के गांव-गांव में विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन की जानकारी प्रेस को देते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी व मजदूर किसान मंच के महासचिव डॉ. बृज बिहारी ने कहा कि कारपोरेट हितों के लिए जिस तरह से मोदी सरकार ने किसानों के प्रति संवेदनहीन, दमनात्मक व अमानवीय रूख अपनाया है और कोरोना महामारी से निपटने में आपराधिक लापरवाही बरती है। उससे साफ हो गया है कि यह एक विफल सरकार है और अब इसने सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार खो दिया है।
विरोध प्रदर्शन में आइपीएफ कार्यकर्ताओं ने किसान विरोधी तीनों काले कृषि कानूनों और मजदूर विरोधी लेबर कोड रद्द करने, विद्युत संशोधन विधेयक 2021 को वापस लेने, आंदोलन के दौरान किसानों पर लादे मुकदमें वापस लेने, कोरोना महामारी में इनकम टैक्स न देने वाले हर परिवार को आर्थिक मदद देने, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने, पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस की बढ़ी कीमते वापस लेने, वनाधिकार कानून के तहत जमीन का पट्टा देने, रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने और मनरेगा में 150 दिन काम व बकाया मजदूरी के भुगतान, देश के सार्वजनिक उद्योगों व प्राकृतिक सम्पदा के निजीकरण को खत्म करने और 181 वूमेन हेल्पलाइन को पूरी क्षमता से चलाने व उनका बकाया वेतन देने की मांगों को प्रमुखता से उठाया।
वही छत्तीसगढ़ में भी मनाया गया काला दिवस, जलाएं गए मोदी के पुतले
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन और छत्तीसगढ़ किसान सभा के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा बनाये गए तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने, कोरोना महामारी से निपटने सभी लोगों को मुफ्त टीका लगाने तथा ग्राम स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन और नगद सहायता देने आदि प्रमुख मांगों पर आज प्रदेश में सैकड़ों गांवों में काले झंडे फहराए गए तथा मोदी सरकार के पुतले जलाए गए। माकपा सहित प्रदेश की सभी वामपंथी पार्टियों और सीटू सहित अन्य ट्रेड यूनियनों व जन संगठनों के कार्यकर्ता भी इस आंदोलन के समर्थन में आज सड़कों पर उतरे।
मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के बैनर तले 20 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं और कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग, कोरिया, बालोद, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों के सैकड़ों गांवों-कस्बों में, घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाने और मोदी सरकार के पुतले जलाए जाने की खबरें आ रही हैं। लॉक डाऊन और कोविद प्रोटोकॉल के मद्देनजर अधिकांश जगह ये प्रदर्शन 5-5 लोगों के समूहों में आयोजित किया गया।
विभिन्न संगठनों के साझा एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने इस सफल आंदोलन के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार के पास इन जनविरोधी कानूनों को निरस्त करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी प्रदेश में इस सफल आंदोलन के लिए किसानों, मजदूरों और आदिवासियों को बधाई दी है।
आंदोलन की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने आरोप लगाया है कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई 50% से ज्यादा की वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। ये कानून व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देते हैं। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।
किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने बताया कि कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ भी छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलित हैं और उन्होंने आज सुकमा जिले के सिलगेर में आदिवासी किसानों पर की गई गोलीबारी की निंदा करते हुए इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने और दोषी अधिकारियों को दंडित करने की भी मांग की है। वनोपजों की सरकारी खरीदी पुनः शुरू करने और आदिवासी किसानों को व्यापारियों-बिचौलियों की लूट से बचाने का मुद्दा भी आज के किसान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा था। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेटों की तिजोरी भरने के लिए देश के किसानों से टकराव लेने वाली कोई सरकार टिक नहीं सकती।
संपूर्ण बिहार में संयुक्त किसान मोर्चा व केंद्रीय ट्रेड यूनियन के आह्वान पर मनाया गया काला दिवस
बिहार के विभिन्न जिलों के जिला मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यालयों, कस्बों व गांवों में काला दिवस के तहत देश बेचू आदमखोर- मोदी-शाह गद्दी छोड़, तीनों काला कृषि कानून और चारों श्रम कानून वापस लो, सांप्रदायिक फासीवादी कंपनी राज मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। विरोध स्वरूप कई जगह नरेंद्र मोदी के पुतले दहन किए गए। किसानों ने अपने घरों पर काला झंडा फहराया और व्यापक तौर पर अपने बाजू पर कालापट्टी बांधा।
सड़कों पर अखिल भारतीय किसान महासभा के साथ ऐक्टू, आशा कार्यकर्ता, इंसाफ मंच, भाकपा-माले तथा अन्य संगठन भी उतरे।
पटना में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजा राम सिंह, ऐक्टू नेता जितेंद्र कुमार आशा नेत्री शशि यादव, किसान महासभा के राष्ट्रीय नेता केडी यादव, उमेश सिंह, माले नेत्री समता राय, एक्टू के राष्ट्रीय नेता एस के शर्मा सहित कई नेता एक्टू व किसान महासभा के संयुक्त बैनर से कार्यक्रम में उतरे। माले के राज्य कार्यालय में माले राज्य सचिव कुणाल ने भी विरोध दर्ज किया।
दरभंगा में नैना घाट गांव में इंसाफ मंच के मकसूद आलम तथा नगरोली में नेयाज आलम काला दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए। आरा कार्यालय में माले पोलित ब्यूरो के सदस्य स्वदेश भट्टाचार्य व किसान नेता व विधायक सुदामा प्रसाद सहित कई नेता शामिल हुए। नवादा जिला के सदर प्रखंड के जंगल बेलदारी गांव में सुदामा देवी, काशीचक में प्रफुल्ल पटेल तथा पकरी बरामा एवं नवादा जिला मुख्यालय में भोलाराम, पटना जिला के पालीगंज में संत कुमार पटना सिटी में शंभू नाथ मेहता, मसौढ़ी के नाथनगर, नौबतपुर प्रखंड के निसरपुर गांव में किसान महासभा के राज्य सचिव कृपा नारायण सिंह सही प्रदेश के विभिन्न जिलों में काला दिवस मनाया।
माकपा व आईपीएफ ने मनाया काला दिवस
26 मई को आंदोलित किसानों के समर्थन में माकपा पार्टी दफ्तर पर काला दिवस मनाया गया वही आईपीएफ नेता अजय राय ने घर पर भी काले झंडे फहराकर व बांहों में काली पट्टी बाँध कर विरोध जताई! माकपा राज्य कमेटी सदस्य राम अचल यादव व आईपीएफ के राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने कहा है कि छह महीने से देश का अन्नदाता कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलित हैं। कोरोना संक्रमण के खतरनाक माहौल में भी किसान दिल्ली बार्डरों पर जमे हुए हैं। अब तक 400 से अधिक किसान शहीद हो चुके हैं। वामदलों सहित 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था किसानों की मांगे मानी जायें ताकि किसान गांवों खेतों पर जाएं और देश की जनता के लिए अन्न उत्पादन में लगें किन्तु मोदी सरकार हठवादिता पर अड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि 7 साल की मोदी सरकार की चौतरफा तबाही और तानाशाही के खिलाफ है ये काला दिवस।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार कृषि कानूनों को रद्द कराने को लेकर आपराधिक चुप्पी साधे हुए है और अब किसान आंदोलन को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है जबकि तथ्य यह है कि पांच राज्यों के चुनाव प्रचार और कुंभ मेला से देश में कोरोना बढ़ा है। जिसको लेकर देश भर के लोगों में आक्रोश है। कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह से मोदी सरकार ने आपराधिक लापरवाही और उदासीनता का परिचय दिया उसके परिणामस्वरूप देश में मौत का तांडव जारी है।
उन्होंने देश के अधिक गाँवों में कोरोना संक्रमण फैल चुका है। गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर, दवाई, ऑक्सीजन एवं संसाधनों का अभाव है जिससे गांव में रहने वाली अधिकांश आबादी प्रभावित हुई है। सरकार कोरोना से मरने वाले मरीजों का आंकड़ा छुपा रही है। बीमारी आपदा प्रबंधन के तहत गांव स्तर पर कोरोना संक्रमण से मौत की सूची जारी कर मरने वालों के परिजनों को पांच लाख रूपये मुआवजा राशि दी जानी चाहिए। जैसे अंग्रेजों ने देश को उपनिवेश बनाया था उसी तरह किसानों को सरकार अम्बानी- अडानी का गुलाम बना रही है। यह कारपोरेट के लिए, कारपोरेट द्वारा चलाई जा रही, कारपोरेट की सरकार है।
उन्होंने कहा कि, “किसान आंदोलन कारपोरेट राज के खिलाफ है। लॉकडॉउन की वजह से जब कंपनियां बंद हो गई हैं! किसानों को मोदी सरकार तबाह करने पर जुटी है। इसको स्वीकार नहीं किया जायेगा।