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बाबा के पांव छूने की होड़ ने लगा दिया मौत का अंबार, लाश देखकर दहल गए दिल

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तीन मिनट की भगदड़ में मौत का तांडव, सरकारी अमला समझ ही नहीं पाया कितना बड़ा है हादसा

भक्ति कहें या अंधभक्ति। पांव छूने की होड़ ने मौत का प्रहसन रच डाला। एक तरफ बाबा के पांव छू लेने की होड़ थी, दूसरी तरफ सेवादारों की बंदिशें। लोग उनकी बंदिशें तोड़कर भागे और मौत की सरहद में जा धंसे। कोई धक्के से गिरा तो कोई फिसलकर। किसी का सीना कुचला तो किसी का सिर। उमस पहले से सांसों पर भारी थी। अस्पतालों में भर्ती लोगों से जब बात की गई तो उनका कहना था कि भीड़ के बीच सांस लेना तक मुश्किल हो रहा था। इसी दौरान भगदड़ मच गई। 

दोपहर को दो बजे सत्संग समाप्त होने के बाद भीड़ हाईवे किनारे खड़ी बसों की तरफ बढ़ रही थी। इस भीड़ में राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश की महिलाएं, पुरुष और बच्चे थे। जब भीड़ हाईवे की तरफ पहुंची तो सत्संग स्थल से हाईवे को जाने वाला रास्ता बंद होने लगा। इसी दौरान आयोजकों ने माइक ने घोषणा शुरू की। सेवादारों को निर्देश दिए जा रहे थे कि वह भीड़ को रोककर बाबा के काफिले को गुजारने का रास्ता बनाएं। बस फिर क्या था 250 सेवादारों का जत्था भीड़ को रोककर खड़ा हो गया। भीड़ में सबसे आगे महिलाएं बताई जा रही हैं

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कुछ लोग सेवादारों से कह रहे थे कि उन्हें जाने दो भीड़ में दिक्कत हो रही है। लेकिन सेवादारों ने उनकी एक न सुनी। बार-बार कहते रहे कि पहले बाबा गुजरेंगे उसके बाद लोग। अभी सेवादार भीड़ को हिदायत दे ही रहे थे कि बाबा का काफिला यहां से गुजरने लगा। बस फिर क्या था बाबा के करीब पहुंचने की होड़ सी मच गई। बाबा की गाड़ी को स्पर्श करने के लिए भी लोग भीड़ को चीरकर आगे बढ़ रहे थे।

करीब जाने के लिए धक्का मुक्की करने लगे। इन लोगों को सेवादारों ने डंडा दिखाकर रोकना चाहा जिससे भगदड़ मच गई। हाईवे किनारे बने गड्ढे में लोग गिरते चले गए। क्योंकि बरसात के कारण फिसलन हो रही थी लिहाजा एक के बाद एक लोग गड्ढे में गिर गए।

लोग मरते गए बाबा के कारिंदे गाड़ियों से भागते रहे
भगदड़ के दौरान लोग मरते रहे और बाबा के कारिंदे गाड़ियों से भागते रहे। किसी ने भी रुककर हालात को जानने की कोशिश नहीं की। बताया जा रहा है कि यहां से बाबा का काफिला एटा की तरफ रवाना हु्आ था। बाबा के काफिले में 10 लग्जरी गाड़ियां थीं। उनका सुरक्षा दस्ता भी तीन गाड़ियों में था। घटना के बाद जब आयोजकों ने उन्हें फोन करने की कोशिश की तो किसी का भी फोन रिसीव नहीं हुआ। बाद में तो खुद बाबा का मोबाइल भी स्विच ऑफ हो गया था। जब बाबा का फोन स्विच ऑफ हुआ तो जो स्थानीय लोग आयोजन से जुड़े हुए थे वह भी मौका देखकर भाग निकले।

तीन मिनट की भगदड़ में मौत का तांडव, सरकारी अमला समझ ही नहीं पाया कितना बड़ा है हादसा

साकार विश्वहरि भोले बाबा के सत्संग में शामिल होने आने वाले अनुयायियों को तनिक भी भान न था कि ऐसा भी होगा। पिछले कई दिन से चल रही तैयारियों के बीच तीन मिनट की भगदड़ ने मौत का ऐसा तांडव मचाया कि जिसने भी सुना उसके हाथ पांव फूल गए। पुलिस प्रशासनिक अमला तो यह ही नहीं समझ पाया कि आखिर हादसा कितना बड़ा है और क्या करना है। बस जिसको जहां जैसे जगह मिली, उसने शवों व घायलों को अस्पतालों की ओर भिजवाना शुरू कर दिया।

इसके बाद मौके पर जो हालात थे, वह वाकई रौंगटे खड़े कर देने वाले थे। एक तो वहां लोग बिलखते हुए अपनों को तलाश रहे थे। दूसरा पुलिस प्रशासन की ओर से वहां ऐसे कोई इंतजाम नहीं थे, जिससे उन्हें उनके अपनों तक पहुंचाया जा सके या मिलवाया जा सके। देर शाम तक अव्यवस्थाओं का आलम था और लोग अपनों की तलाश में भटक रहे थे।

जिस वक्त यह हादसा हुआ, उस समय बस यातायात प्रबंधन के लिए नेशनल हाईवे यानि पुराने जीटी रोड पर सिकंदराराऊ पुलिस की ड्यूटी थी। भीड़ निकलने के दौरान सड़क पर किसी के साथ कोई हादसा न हो, इसके लिए यह ड्यूटी लगाई थी। इसके चलते कानपुर की ओर से आने वाले यातायात को रोक कर रखा गया था। मंच स्थल से हाईवे तक बाबा के काफिले को निकालने के लिए एक बाईपास आयोजकों ने बनाया था। भीड़ सड़क पर दोनों ओर जमा थी। प्रयास था कि बाबा का काफिला जब निकलेगा तो वे उन्हें एक झलक देखकर नतमस्तक हो सकेंगे और फिर काफिले की चरण धूल ले सकेंगे। उन्हें सेवादारों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। जैसे ही काफिला निकला। अचानक भीड़ अनियंत्रित हुई। वहीं भगदड़ मच गई। इसके बाद जो हालात बने। वे किसी से छिपे नहीं हैं।

आसपास के जिलों में भेजे गए घायल
पुलिस ने एटा मेडिकल कॉलेज, ट्रामा सेंटर सिकंदराराऊ, जिला मुख्यालय हाथरस व मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ भिजवाया। उस समय तो स्थिति यह थी कि जो हाथ लग जाए या नजर आ जाए, उसे एंबुलेंस या वाहन में लादकर भिजवाया जा रहा था। वहां न उसकी पहचान पूछी जा रही थी और उसके किसी परिचित का इंतजार किया जा रहा था। वाकई बेहद दुखद या कष्टप्रद था कि दोपहर लगभग दो बजे हुई घटना के बाद शाम पांच से छह बजे तक भी प्रशासन ने मौके पर कोई राहत या आपदा कैंप नहीं बनवाया गया था। न कोई ऐसा प्रतिनिधि बैठाया गया था, जो वहां अपनों को खोज रहे लोगों को संतुष्ट कर सके। ये बता सके कि आपका रिश्तेदार फलां अस्पताल में है। सभी अपने हाल पर बिलख रहे थे। जैसे जो जानकारी मिल रही थी। वहां दौड़े चले जा रहे थे।

ट्रॉमा सेंटर में न ऑक्सीजन न बिजली और न स्टाफ
हादसे के लिए सिकंदराराऊ स्थित ट्रॉमा सेंटर तैयार नहीं था। यहां चिकित्सक, स्टाफ और ऑक्सीजन तक नहीं थी। कराहते हुए घायल पहुंचते रहे और उपचार न मिलने से दम तोड़ते रहे। टॉमा सेंटर पर करीब 2.45 बजे शवों और घायलों को लाना शुरू हुआ। हालात ऐसे थे कि न मौके पर चिकित्सक थे और न ही पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद था। बिजली तक नहीं थी। बदहवास हालत में पहुंचे घायलों को ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन वह भी नहीं मिली। बिजली न होने के कारण कमरों में पंखे बंद पड़े थे। कमरों में अंधेरा छाया था। एंबुलेंस से आए घायलों को ऑक्सीजन के लिए सत्संग स्थल से साथ में आए परिजन व अन्य लोग अंदर कक्षों तक लेकर पहुंचे, लेकिन यहां तत्काल उपचार नहीं मिलने के कारण कई घायलों ने दम तोड़ दिया।

जेनरेटर में नहीं था तेल
ट्रॉमा सेंटर और सीएचसी पर जेनरेटर है, लेकिन जब उसे चलाने की बात आई तो पता चला कि उसमें तेल ही नहीं है। देर शाम तक स्वास्थ्य विभाग व प्रशसनिक अमला जेनरेटर के लिए तेल तक इंतजाम नहीं कर सका और पूरे परिसर में अंधेरा छाया रहा।

डीएम पहुंच गए, हाथरस से चिकित्सक नहीं पहुंचे
डीएम आशीष कुमार मौके पर पहुंच गए लेकिन हाथरस से चिकित्सक और स्टॉफ मौके पर नहीं पहुंचा। डीएम ने मौके पर पहुंचकर स्थिति देखी तो उन्होंने नाराजगी जताई। सीएमओ से बात की तो उन्होंने बताया कि चिकित्सक निकल चुके हैं। करीब दो घंटे तक चिकित्सीय स्टॉफ मौके पर नहीं पहुंच सका। आलम यह रहा कि घायलों को उपचार के लिए रेफर करना शुरू कर दिया गया।

धार्मिक आयोजनों में पर्याप्त इंतजाम न होने से पहले भी हुए हादसे

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