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दांव पर लगी हैं ‘ सरकार ‘ की साख और इंदौर का पुलिस कमिश्नर सिस्टम 

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_शहर से जुड़े एक मंत्री पर ही बार बार गुंडों व गुंडाई को संरक्षण देने के क्यो लग रहे आरोप?

*क्या ये प्रदेश की मोहन सरकार के लिए चिंता का कारण नही होना चाहिए कि प्रदेश के सबसे बड़े व्यावसायिक शहर में होने वाली गुंडागर्दी का आरोप उनके अपने ही मंत्रिमंडल के किसी साथी पर लगते रहें? वह भी बार बार। क्या ये उस दल के लिए शर्मिंदगी का कारण नही होना चाहिए जो राजनीति में शुचिता का पक्षधर हैं और स्वयम को ‘ पार्टी विथ ए डिफरेन्स’ कहता फिरता हैं। उस पुलिस के लिए भी ये चुनोती हैं, जिसे राजनीतिक दबाव प्रभाव से मुक्त होने के लिए ‘ कमिश्नर सिस्टम’ दिया गया हैं। अगर संविधान की शपथ लेने वाले मंत्री तक शहर की गुंडागर्दी के तार जुड़ते है तो फिर ये तो इंदौर के लिए भी बड़ी फ़िक्र का कारण होना चाहिए। लेक़िन सब तरफ़ इस मसले पर ख़ामोशी पसरी हुई हैं। ये खामोशी ही देवी अहिल्या की नगरी में ‘ संवेधानिक गुंडाई’ को प्रश्रय दे रही हैं? हैं.. ना? तो फिर इस पर लग़ाम कौन लगाएगा?* 

 _…बेचारे मंत्रीजी। कितना भी ‘ अपटुडेट’ रहने की कोशिशें कर ले लेक़िन ये गुंडे हैं जो माजना बिगाड़ ही देते हैं। ‘ भद्र’ बनने की मंत्रीजी की मशक्कत पर गुंडे गाहे बगाहे पानी फेर ही देते हैं। बाज ही नही आ रही वो गुंडाई, जो कभी मंत्रीजी के मुंह लगी थी। बरसो पहले से। अब ये गुंडाई ये भी नही देख रही कि अपनी ‘ टुच्ची’ हरक़तों से ‘ बेचारे’ मंत्रीजी की ‘ मंत्रीगिरी’ दांव पर लग जाती हैं। वह भी बार बार। मंत्रीजी तो ‘ भोले-भाले हैं। लेकिन क्या करे, हर बार गुंडे औऱ गुंडाई के तार मंत्रीजी तक जुड़ जाते हैं। लेक़िन मज़ाल हैं कि गुंडे सुधर जाए औऱ एक हद तक मंत्रीजी भी। हर गुंडाई के बाद ‘ मेनेजमेंट’ इतना बढ़िया की बात वैसे ही आई गई हो जाती हैं, जैसे हर घटना के बाद मंत्रीजी का नाम छपने से छुप या बच जाता हैं। फ़िर भले ही दांव पर ‘ सरकार’ लग जाये या सरकार का पुलिस कमिश्नर सिस्टम। ‘ पार्टी विथ ए डिफरेन्स’ का दम्भ भरने वाले भी मंत्रीजी पर नकेल नही कस पाते हैं। नतीज़े में ये इंदौर ‘ संवैधानिक गुंडाई’ झेलने-सहने और देखने को मजबूर हो चला हैं। क्योंकि मंत्रीजी संविधान की शपथ लेने के बाद भी अपने ‘ पालतू गुंडों’ व उनकी गुंडाई पर लगाम नही लगा पाए हैं।_ 

 *_अभी तो ये शहर उस गुंडे को ही भूल नही पाया था, जो मंत्रीजी के ‘ दम-गुर्दे’ पर पुलिस के सामने मूंछे मरोड़ रहा था। ‘बेचारी पुलिस’ उसे ठीक से समझा भी नही पा रही थी और सरेराह अपनी ‘ बेइज्जती’ झेल रही थी। इस ‘ संवैधानिक गुंडाई’ से लज्जित हुई पुलिस ने गुंडे की अकड़ 48 घण्टे बाद कम तो कर दी लेक़िन ख़त्म नही कर पाई। ये गुंडाई कल फिर ‘ उपक’ आई। इस बार भोलाराम उस्ताद मार्ग पर ‘ भोले-भाले’ मंत्रीजी के लाड़ के गुंडों की फिर गुंडाई सामने आई। अबकी बार पुलिस नहीं, आम इन्दौरी शिकार हुआ। पुलिस तो थाने में दबाव का शिकार हुई कि देखना अपना ही आदमी है..!! अब पुलिस ने इस दबाव को कितना झेला, ये तो आने वाले 20-30 घण्टे बता देंगे लेकिन तब तक मंत्रीजी फ़िर सबके सामने ‘ उज़ागर’ हो गए कि ये गुंडे इनके अपने हैं जो इन पर भी ‘ दया’ नही कर रहें। बार बार अपनी गुंडाई से मंत्रीजी की मंत्रीगिरी दांव पर लगा देते हैं। वह तो भला हो मंत्रीजी के ‘ मैनेजमेंट स्किल’ का, जो वे बचा ले जाते हैं- अपने को भी और अपनी गुंडाई को भी।_* 

 _अब ये गुंडे ही जाने कि वे मंत्रीजी को भोले भाले मानते हैं कि नही? शहर में तो मंत्रीजी ने ऐसी ही छवि गढ़ रखी हैं। लेक़िन उनसे जुड़े गुंडे है कि कुछ समझते ही नही। या फिर वे जानते हैं अच्छे से कि मंत्रीजी ऊपर से ‘ भोले’ औऱ अंदर से ‘ भाले ‘ हैं। इसलिए वे बार बार अपराध कर गुज़रते हैं। कभी पुलिस को रुआब दिखाते हैं, कभी दूध वाले की दुकान तोड़फोड़ देते हैं, महिला को भी मारते हैं, कभी निर्दोष युवा को रँगपचमी पर निर्ममता से मारते है तो कभी सूदखोरी के फेर में पीड़ित को जान देने पर मजबूर कर देते हैं। ये तो वे ‘ कांड’ हैं, जो सामने आ गए। अन्यथा ऐसा कोई दिन नही बीतता, जब गुंडे मंत्रीजी की ‘ प्रतिष्ठा’ से खेलने से चूकते हो। सड़क से लेकर ‘पब’ तक और ‘कॉलेज’ से लेकर ‘विश्वविद्यालय’ तक यू ही मंत्रीजी की धाक नही जमी हुई हैं।_ 

 *_बड़े ‘ जतन’ से इस धाक को पाला पोसा है। लेक़िन हैरत तो ये है कि राजनीति में शुचिता की बात करने वाली पार्टी का भी मंत्रीजी पर कोई बस नही नज़र आता। न दल का नेतृव मंत्रीजी की ‘ पुरानी मानसिकता’ को दुरुस्त करता हैं। या तो मंत्रीजी अभी भी सत्ता के लिए वैसे ही जरूरी हैं, जैसे ‘कोरोना काल’ मे थे या ये पुलिस कमिश्नरी वाले इंदौर में ‘ गुंडाई का संवैधानिक’ स्वरूप स्थापित करने का दबा-छुपा, मिला-जुला कोई खेल हैं। नही तो ऐसा कभी हुआ है कि गुंडों व गुंडाई से एक बार नाम जुड़ जाने के बाद भी, मंत्री के नाम पर बार बार गुंडागर्दी, अपराध बदस्तूर होता रहे? ये ‘ संवैधानिक गुंडाई’ का जवाब तो मंत्री से बड़े मुख्यमंत्रीजी के सामने भी आएगा ही सही। आज नही तो कल। क्योकि वे ही तो इस शहर के प्रभारी जो हैं। उनकी मौजूदगी में इस शहर में ‘ परभारे’ ही गुंडाई तो हो नही सकती। उन तक कुछ ही नही, सबकुछ पहुँचता हैं। तो फ़िर ये ‘ संवैधानिक गुंडाई’ अब तक क्या नही पहुँची?_

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