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चुनाव प्रणाली बेहद खर्चीली और अविश्वसनीय,जनता को प्रतिनिधि वापस बुलाने का अधिकार मिले

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मतदाता दिवस पर रीवा में मतदाता जागरूकता पर विशेष चर्चा सम्पन्न

रीवा 25 जनवरी। राष्ट्रीय मतदाता दिवस के अवसर पर समता संपर्क अभियान के तत्वावधान में मतदाता जागरूकता हेतु विभिन्न राजनीतिक सामाजिक संगठनों एवं मतदाताओं का एक संवाद स्थानीय मानस भवन के प्रांगण में गुरुवार अपराह्न 2:00 बजे लोकतंत्र सेनानी बृहस्पति सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुआ । संपन्न हुए विचार विमर्श में देश के लोकतंत्र के साथ हो रहे खिलवाड़ पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। वक्ताओं ने कहा कि सिर्फ मतदान नहीं, विवेक सम्मत मतदान की आवश्यकता है। देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मतदाताओं का जागरूक होना बेहद जरूरी है। चुनाव प्रणाली बेहद खर्चीली है। कोई प्रत्याशी किसी बड़े राजनीतिक दल और पूंजीपतियों के संरक्षण के बिना चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। जनता भी उसे स्वीकार नहीं कर पाती है जबकि बड़े दल और पूंजीपतियों की मदद से कमजोर प्रत्याशी का पड़ला भारी हो जाता है। देखने को मिलता है कि अच्छे भले उम्मीदवार भी चुनाव में जमानत गवां बैठते हैं। मतदाता जागरूकता अभियान में लोक प्रशिक्षण जरूरी है । यह प्रयास होना चाहिए कि लोग विवेक सम्मत मतदान करें। दारू,-मुर्गा , रूपए पैसे ,साड़ी , कंबल और किसी भी तरह के प्रलोभन दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान होना चाहिए। चुनाव में धर्म और जाति के आधार पर वोट मांगना अपराधिक कृत्य है। इस पर भी कड़ाई होनी चाहिए। 

नोटा को भी उम्मीदवार मानकर उसका भी प्रचार प्रसार सारे प्रत्याशियों के नकली मत पत्र में अनिवार्य रूप से दर्ज होना चाहिए। कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं की स्थिति में मतदाताओं के पास यही अंतिम विकल्प होना चाहिए। देखने को मिलता है कि बहुत सारे लोग उम्मीदवार पसंद नहीं होने के कारण मतदान करने नहीं जाते हैं। नोटा के प्रचार प्रसार से मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा। राजनीतिक दलों के लोग अच्छे उम्मीदवार तो नहीं दे पाते लेकिन नोटा का विरोध करते हैं , यह बात बेहद आपत्तिजनक है। 

यह भारी विडंबना है कि चुनाव में जाति धर्म और पैसे के आधार पर टिकटों का बटवारा होता है। जनता को ऐसे उम्मीदवारों का बहिष्कार करना चाहिए। चर्चा के दौरान यह सवाल उठा कि आजादी के 75 साल बाद भी संसदीय लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि को वापस बुला सके। अभी हाल में भारत की संसद में सदस्यों का बड़े पैमाने पर निलंबन देश की जनता का अपमान है। देश में सन 1952 से चुनाव हो रहे हैं लेकिन मतदाता दिवस की शुरुआत 25 जनवरी 2011 से शुरू हुई। चुनाव आयोग को मतदाता जागरण का अभियान निरंतर चलाना चाहिए।

जनता को चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार नहीं है जबकि संसद में विरोधी सांसद की सिर्फ सदस्यता ही नहीं छीनी जाती बल्कि उसे अगला चुनाव लड़ने से भी वंचित कर दिया जाता है। वक्ताओं ने कहा कि ईवीएम की जगह पुरानी चुनाव पद्धति मतपत्र से मतदान अधिक विश्वसनीय है। विकसित देशों ने भी ईवीएम को नकार दिया है। वर्तमान समय में मजबूत सुरक्षा प्रबंधन में मतपत्र पेटियों को लूटे जाने की बात कैसे संभव है? यदि मतपत्र पेटियां लूटी जा सकती हैं तो फिर ईवीएम भी लूटी जा सकती है। जब धरती में बैठकर चंद्रयान और मंगलयान को नियंत्रित किया जा सकता है तो ईवीएम को बिना लूटे ही चुनाव परिणाम की हेरा फेरी क्यों नहीं हो सकती है ? वक्ताओं ने कहा कि  स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग को न्यायाधीश की तरह काम करना चाहिए। चुनाव परिणाम पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए। चुनाव प्रणाली को जनता के लिए विश्वसनीय होना चाहिए। चुनाव आयोग का विश्वसनियता खोना , लोकतंत्र के लिए अशुभ एवं खतरनाक साबित होगा।

मतदाता दिवस पर संपन्न हुई चर्चा में प्रमुख रूप से समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे , लोकतंत्र सेनानी रामेश्वर सोनी, माहेश्वरी त्रिपाठी, अभय वर्मा, अशोक सिंह बुढ़वा , डॉ एल एम कुशवाहा, डॉ अमिताभ शुक्ला होशंगाबाद , जिला अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह , अरविंद त्रिपाठी , धीरेश सिंह, नारी चेतना मंच की वरिष्ठ नेत्री मीरा पटेल , नजमुननिशा , गीता महंत , नेहा त्रिपाठी ,गांधी विचार मंच के संयोजक रामेश्वर गुप्ता ,, अनिल सिन्हा , श्रवण प्रसाद नामदेव, उद्धव द्विवेदी , परिवर्तन पटेल , इरशाद हुसैन , भोला प्रसाद वर्मा ओंकार नाथ गुप्ता , प्रेम नाथ जायसवाल, बिहारी लाल गुर्जर आदि की सक्रिय भागीदारी रही।

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