सालों साल तक वामपंथी सरकार होने और दक्षिण भारत के समाज में सामाजिक न्याय के आंदोलन की मजबूती के बावजूद केरल में जातिगत भेदभाव और ऊंच-नीच की बुराई अभी भी बरकरार है। मामला है त्रिसूर में स्थित एक मंदिर का। जिसका मालिकाना सरकार नियंत्रित देवस्वम बोर्ड के पास है। यहां पिछड़े समुदाय के एक शख्स को मंदिर में पुजारी पद के लिए चुना गया।
लेकिन मंदिर के मुख्य पुजारी ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया। सवर्ण समुदाय से आने वाले मुख्य पुजारी का कहना था कि वह किसी पिछड़े समुदाय के शख्स को पुजारी के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि बीए बालू ने अब पुजारी बनने से इंकार कर दिया है और उन्होंने सरकार से किसी और नौकरी के लिए निवेदन किया है।
इझावा समुदाय से आने वाले बीए बालू को देवस्वम भर्ती बोर्ड द्वारा मंदिर में मुख्य पुजारी को पूजा करवाने में मदद करने के लिए कझाकम पद पर चुना गया था। लेकिन मंदिर के ऊंची जाति से आने वाले पुजारियों ने इस नियुक्ति का विरोध कर दिया। उनका कहना था कि उनका सहयोगी ऊंची जाति से आना चाहिए।
हालांकि सूबे की सीपीएम सरकार और देवस्वम बोर्ड ने बालू की नियुक्ति की समर्थन किया है। आपको बता दें कि देवस्वम बोर्ड ने 24 फरवरी को इस नियुक्ति के लिए एक परीक्षा आयोजित की थी जिसमें बालू नंबर एक पर आये थे। हालांकि पुजारियों के विरोध के चलते वह अपने पद पर ज्वाइन नहीं कर सके। नतीजतन वह मंदिर में ही स्थित उसके दफ्तर में काम करने लगे। और काझाकाम पद पर एक दूसरे शख्स को रख लिया गया।
अगर वह ज्वाइन कर लेते तो बालू मंदिर के इतिहास में पिछड़े समुदाय से आने वाले पहले शख्स होते। बुधवार को जब पुजारियों के रुख को लेकर विरोध बढ़ने लगा तो बालू ने कहा कि पुजारियों के रवैये ने मुझे दुख पहुंचाया है। ऐसे समय में जबकि त्योहार आ रहा है मंदिर में मैं किसी तरह का मामला नहीं खड़ा करना चाहता हूं। मेरे परिवार का भी यही विचार है। मैंने मंदिर के प्रशासक को एक पत्र दिया है जिसमें मैंने लिखा है कि मैं कझाकाम का पद नहीं चाहता हूं। मैं मंदिर में दफ्तर का काम करने के लिए तैयार हूं।
देवस्वम बोर्ड के चेयरमैन सीके गोपी जो बालू को उनके लिए नियत पद पर काम करने के लिए दबाव बना रहे थे, ने कहा कि बोर्ड उनके निवेदन पर विचार करेगा और फिर कोई फैसला लेगा।
राज्य के देवस्वम बोर्ड मंत्री ने कहा कि सरकार का भी यही विचार है कि बालू को कझाकाम के पद पर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि केरल समाज सुधारकों की धरती रही है। और यह सूबे के लिए एक अपमान की बात है कि जाति के आधार पर किसी एक शख्स को उसके अधिकार से दूर रखा गया। हम पुजारियों के स्टैंड से सहमत नहीं हो सकते हैं। केरल ऐसा राज्य है जहां गैर ब्राह्मणों को पुजारी बनाया गया है।