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संविधान निर्माताओं को पता नहीं था कि कुछ इंसानों में जानवरों की सोच पनपेगी

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एस पी मित्तल, अजमेर

देश को चलाने के लिए अंग्रेजों ने भी नियम- कायदे बनाए थे। आजादी के बाद संविधान के निर्माताओं ने जो कानून बनाए उसमें भी यह माना गया है कि स्त्री और पुरुष के बीच ही विवाह होता है। सनातन संस्कृति या दुनिया की अन्य संस्कृति में भी यही माना गया है कि एक महिला और एक पुरुष के बीच ही शादी, निकाह, मैरिज हो सकती है। संविधान के निर्माता को इस बात का अंदाजा नहीं था कि सनातन संस्कृति को मानने वाले भारत में कुछ इंसानों की सोच  जानवरो जैसी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट मे इन दिनों समलैगिंग विवाह को मान्यता देने के लिए बहस चल रही है। मांग की जा रही है कि दो लड़को अथवा दो लडकियों को साथ रहने पर  विवाह की मान्यता दे दी जाए। कुतर्को में कहा जा रहा है कि दो लडको और दो लडकियां  वैसे ही रहते है जैसे विवाह के बाद एक लडका और एक लड़की रहते हैै । देश के नामी वकील कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी, के.वि. विश्वनाधन जैसे वकील समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के पक्ष में है। हालांकि अभी सुप्रिम कोर्ट का कोई स्पष्ठ रूख सामने  नहीं आया है लेकिन पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने दो लड़कों और दो लड़कियों को एक साथ रहने पर अपराध नहीं माना। यानी सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की  उस धारा को बदल दिया। जिससे दो लडको और दो लडकियों को एक कमरें में एक साथ रहने पर अपराध माना जाता था। इसके बाद देश के महानगरों  में दो लडके और दो लडकी थड़ल्ले से पति-पत्नि के तौर पर रहने लगे। जुलूस निकाल कर बताया गया कि हम दो लडके और हम दो लडकियां एक दूसरे से बहुत प्यार करते है और पति-पत्नी के तौर पर रहते है। दो लडके और दो लडकीयां पति पत्नि के तौर पर कैसे रहते होंगे यह तो वे ही जाने, लेकिन अब इस जानवरों वाली सोच को कानूनी मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई कर रहा है हो सकता है की पूर्व में समलैंगिग सम्बंधों को अपराध नही मानने वाला सुप्रीम कोर्ट ऐसे सम्बन्धों को शादी की मान्यता का निर्णय भी दे दे। यह मानना हमारे देश में पश्चिम की कुरीतियां तेजी से आ रही है अब मौलिक अधिकारों का झंडा लेकर जानवरों जैसी सोच को भी संवैधानिक मान्यता देने की मांग की जा रही है ईश्वर ने जानवरों को बुद्विहीन बनाया है इसलिए जब तक एक कुत्तियां के आठ दस बच्चे होते है तो थोड़ा बडा होने पर कुत्ते को यह ज्ञान नही होता है कि उसकी बहन की माता एक ही है इसलिए दोनो और बच्चे पैदा कर लेते है, लेकिन ईश्वर ने इंसान को तो बुद्वि दी है। इस बुद्वि का उपयोग सही दिशा में किया जाना चाहिए। जब हम चांद, मंगल, सूर्य आदि ग्रहों के वातावरण पर शोध कर रहे है तक कुछ लोग चाहते है कि दो लडको को एक लडका और एक लडकी मान लिया जाए। जिस ईश्वर में शारीरिक दृष्टि से लडके और लडकी में भेद किया है उस भेद को जानवरों की सोच वाले कुछ लोग खत्म करना चाहते है। सवाल यह भी है कि सनातन संस्कृति को मानने वाले भारत मे क्या दो लडके और दो लड़कियों की शादी को स्वीकार किया जाएगा। हमें सामाजिक ताने बाने को भी देखना है। हमारे यहां विवाह की व्यवस्था एक सुखद परिवार की है लडके-लडकी की शादी होने के बाद घर परिवार का माहौल इसलिए खुशनुमा होता है कि बच्चे के तौर पर तीसरा सदस्य भी आ जाता है पति-पत्नी अपने छोटे बच्चे के साथ आराम से रह रहे है उनसे परिवार की खुशियां समझनी चाहिए। जानवरों की सोच के साथ रहने वाले दो लडको व दो लडकीयां लम्बे समय तक खुश नहीं रह सकते। अच्छा हो कि सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली सभी याचिकाओं का खारिज कर दे। समलैंगिग सम्बन्धों की हट तो सुप्रीम कोर्ट से पहले ही मिली हुई है। कुछ लोग जानवरों की तरह जीवन यापन करना चाहते है तो ऐसे लोगो को अनदेखा ही किया जाना चाहिए।

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