तालाबंदी की शिकार हो चुकी महाराष्ट्र ब्राम्हण बॅंक के अंतिम डिपॉझिटर्स को उसकी जमापुंजी मिलने तक
लोकमान्य नगर स्थित बॅंक भवन के पहली मंजिल पर सहकरिता विभाग का कुछ रिकोर्ड-सामान रहेगा “
यह जिक्र लोकमान्य नगर हाऊसिंग सोसायटी और सहकारिता विभाग के बीच लोकमान्य नगर स्थित महाराष्ट्र ब्राम्हण बॅंक के भवन के संबंध मे हुए समझौता प्रस्ताव मे है। जिसपर पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर के दस्तखत है। जो उन्होंने सोसायटी के प्रबंध समिती की बैठक मे पारित एक प्रस्ताव के आधार पर किये है।
इस तरह से हुए समझौते से सोसायटी को भवन के पहली मंजिल की 700 वर्गफिट जगह मिलना बडी मुश्किल मे पड गया है। जिससे सोसायटी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अजय (बंडू भैया )वैशंपायन और उनके साथी संचालक गण बेहद चिंताग्रस्त है।
क्योंकि परिसमापनाधिन बॅंक के पीडित निर्दोष डिपॉझिटर्स को जमा पुंजी वापस मिलने मे कितने साल ओर लगेंगे कोई नही कह सकता।
बॅंक सत्रह साल पहले इतिहास मे दर्ज हुई थी। इसी दरमियां बॅंक के कोई तेरह सौ बडे डिपॉझिटर्स मे से सात सौ जमा पुंजी वापस मिलने की आंस मे स्वर्ग सिधार चुके है।
गौरतलब है कि दो साल पहले लोकमान्य नगर हाऊसिंग सोसायटी को दिवालिया हो चुकी महाराष्ट्र ब्राम्हण सह. बैंक को शाखा संचालन हेतु लीज पर दिया गया भूखंड और उसपर बना खंडहर बन चुका दो मंजिला भवन वापस मिला था। जिसके लिये सोयायटी के पूर्व प्रबंध समिति ने सहकारिता विभाग को कोई चालीस लाख चुकाये थे ।इसके बावजूद सहकारिता विभाग ने भवन को खाली नही किया था। सोसायटी के तत्कालीन अध्यक्ष वैभव ठाकुर ने भवन रिक्त करवाने हेतु आगे कोई कार्रवाई नही करने से नई प्रबंध समिति ने अब कार्रवाही शुरू की ।
तब बॅंक के परिसमापक और सहकारिता अधिकारी ने समझौता प्रस्ताव का खुलासा किया। बैंक का रिकॉर्ड रखने हेतु पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर ने मनमानीपुर्वक सहकारिता विभाग को कॉलोनी में ही सात सौ वर्ग फिट की जगह उपलब्ध कराई थी। वह भी विभाग के ही कब्जे में है। और विभाग द्वारा उस जगह का भी किराया नही दिया जा रहा है।सहकारिता विभाग को भवन पेटे मिले 40 लाख से लोकमान्य नगर सोसायटी की अचल संम्पत्ति में इजाफा हुआ । लेकिन दूसरी ओर सहकारिता विभाग द्वारा बैंक के बेकसूर जमाकर्ताओं को कोई राहत आज तक नही मिली है।
उल्लेखनीय है कि 38 साल पहले 1984 में लोकमान्य सोसायटी की आमसभा मे कोलोनी की मातृसंस्था महाराष्ट्र ब्राम्हण सहकारी बैंक की शाखा संचालित करने हेतु लीज पर भूखंड देने का प्रस्ताव सर्वानुमतिसे पारित हुआ था। उसके बाद सात वर्ष तक आगे कोई कार्यवाही नही हुई थी। फिर 1991 में नियमानुसार लीज निष्पादन करके भूखंड दिया गया था। उसके बाद तीन साल में वहां तत्कालीन अध्यक्ष और सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश लोखंडे तथा सचिव स्वर्गीय सुरेश उन्हेलकर के कार्यकाल में लाखों रुपये खर्च करके भवन बनाया गया था। लेकिन संचालक मंडल में आपसी खिंचतान और लापरवाही के चलते भवन खंडहर में तब्दील हो गया था। उसके बाद 1997 में महाभ्रष्ट प्रोफेसर यशवंत डबीर तथा सुमित्राताई पुत्र मिलिंद महाजन के गुट का बैंक पर कब्जा हो गया था। तीन-चार माह बाद ही लालची-स्वार्थी संचालकों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से बेखौफ काले कारनामे -भ्रष्ट्राचार शुरू कर दिये थे। तभी से एक संचालक रहते अनिलकुमार धडवईवाले ने गैरकानूनी कामकाज – घोटालों के संबंध में शासन को मय पुख्ता सबूत शिकायते करना शुरू कर दिया था। साथ ही बैंक मेम्बर्स – डिपोझिटर्स को भी इस बात से अवगत कराना शुरू कर दिया था। दिग्गज राजनेताओं और कलियुगी साधनों के जरिये शिकायतों पर असरकारक कार्यवाही नही हुई थी। इसी बीच धडवईवाले अज्ञात गुंडों द्वारा जानलेवा हमला किया जाने से गंभीर रूप से घायल हो गये थे । जिसकी वजह लंम्बे अर्से तक उनका इलाज चला। भ्रष्ट्राचार में लिप्त संचालकों ने धडवईवाले को बैंक से निष्कासन पर लाखों रुपये खर्च किये थे। पांच वर्ष बाद वर्ष 2002 में डबीर- महाजन पैनल के सभी प्रत्याशी विजयी हुए थे। फिर उनका भ्रष्ट्राचार का सिलसिला तेजरफ्तार से शुरू हो गया। वर्ष 2002 से ही बैंक घाटे में आ गयी थी। आखिर 2004 में बैंक डूब गयी। उसके बाद 16 साल तक शाखा भवन फिर से खंडहर हो गया था। बैंक द्वारा वर्ष 2000 से इस जगह लीज रेंट का भुगतान नही किया गया था। वास्ते पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर ने दो साल पहले उक्त भूखंड और उस पर बना भवन वापिस लेने संबंधी कार्यवाही तेज की थी। उन्होने सहकारिता विभाग के समक्ष समझौता प्रस्ताव रखा था। जिसे सांठ,, विशेष सेटिंग के जरिये मान्य करवा लिया था। फिर विभाग ने शाखा भवन की मार्केट वेल्यू निकलवाकर सोसायटी से चालीस लाख रुपये लेकर भूखंड व खंडहरनुमा भवन सोसायटी को वापस कर दिया था। लेकिन उसमे रखा रिकार्ड – सामान वैसे ही राख7 था। इसी के साथ बैंक के खातीपुरा स्थित मुख्यालय भवन की नीलामी हो जाने से लोकमान्य सोसायटी ने परिसमापनाधिन बैंक के संचालन हेतु लोकमान्य नगर में ही टंकी भवन मे 700 वर्ग फिट जगह(कुछ कमरे) दिये है। वहां बॅंक का कुछ रिकार्ड पडा है। लेकिन उसका कोई उपयोग नही हो पा रहा है। क्योंकि बैंक के मुख्यालय भवन के निलामी का मामला अदालत में चला गया है। इसलिये बैंक संचालन खतीपुरा स्थित मुख्यालय भवन में ही हो रहा है। लोकमान्य नगर सोसायटी ने वापस लिया खंडहर नुमा भवन उसी हालात में है। यह वहीं भवन है जहां वर्ष 2004 में बैंक पच्चीस करोड़ के घाटे में रहते 26 जनवरी के दिन बैंक के तत्कालीन बैंक अध्यक्ष डबीर और लोकमान्य नगर निवासी डायरेक्टर चंद्रकांत करमरकर आदेश पर सुरक्षा कर्मियों ने 35 हवाई फायर किये थे। उसी समय बेरहम डबीर ने यह भी घोषणा की थी कि हमे रिझर्व बैंक के आदेशानुसार कोई 30 कर्मचारियों को बाहर करना जरूरी है। अतः वे अन्यत्र नौकरी की तलाश करें। कुछ माह पहले ही निर्वाचित प्रबंध समिति के अध्यक्ष अजय वैशंम्पायन और उनके साथी संचालकों ने पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर के कारनामों के खिलाफ कोई कडी कार्रवाई शुरू नही करने से मराठी भाषियों में दबीं जुबां से कई तरह की बातें बोली जा रही है।
पिछले दिनों हुए सोसायटी के प्रबंध समिति के चुनाव मे वैभव ठाकुर अकेले ही निर्वाचित हुए है।
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# अनिलकुमार धडवईवाले