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सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी को कहा- आप के आंख-नाक-कान से टपकता है भ्रष्‍टाचार

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सुपरटेक टावर मामले में उच्चतम न्यायालय ने नोएडा अथॉरिटी को जमकर फटकार लगाई। अथॉरिटी को ‘भ्रष्‍टाचारी संस्‍था’ बताते हुए अदालत ने कहा कि वह बिल्‍डर से मिली हुई है और एक तरह से सुपरटेक की पैरवी कर रही है। जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ के समक्ष जब नोएडा अथॉरिटी ने बिल्‍डर के फैसलों को सही ठहराने की कोशिश की तो उसे फटकार पड़ी। पीठ ने नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्राधिकरण के चेहरे ही नहीं, उसके मुंह, नाक, आंख सभी से भ्रष्टाचार टपकता है। पीठ ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि अथॉरिटी को एक सरकारी नियामक संस्‍था की तरह व्‍यवहार करना चाहिए, ना कि किसी के हितों की रक्षा के लिए निजी संस्‍था के जैसे।

पीठ को यह तय करना है कि कंपनी ने अपनी हाउजिंग सोसायटी में जो अतिरिक्‍त टावर बनाए, वह अवैध है और उन्‍हें ढहाने की जरूरत है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2017 में दोनों टावरों को अवैध करार देते हुए ढहाने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए कंपनी को खरीदारों को रिफंड देने को कहा।

पीठ ने कहा कि जिस तरह से आप जिरह कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आप ही प्रमोटर हैं। आप घर खरीदारों के खिलाफ लड़ाई नहीं कर सकते। एक सरकारी प्राधिकरण के तौर पर आपको एक निष्‍पक्ष स्‍टैंड लेना होगा। आपके आंख, कान और नाक से भ्रष्‍टाचार टपकता है और आप घर खरीदारों में कमियां ढूंढने में लगे हो।

सुपरटेक के दोनों टावरों में 950 से ज्‍यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे। 32 फ्लोर का कंस्‍ट्रक्‍शन पूरा हो चुका था जब एमराल्‍ड कोर्ट हाउजिंग सोसायटी के बाशिंदों की याचिका पर टावर ढहाने का आदेश आया। 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे जिनमें से 248 रिफंड ले चुके हैं, 133 दूसरे प्रॉजेक्‍ट्स में शिफ्ट हो गए, लेकिन 252 ने अब भी निवेश कर रखा है। पीठ ने सभी पक्षों को विस्‍तार से सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।

पीठ ने नोएडा अथॉरिटी की हरकतों को ‘सत्ता का आश्‍चर्यजनक व्‍यवहार’ करार दिया। बेंच ने कहा, “जब फ्लैट खरीदने वालों ने आपसे दो टावरों, एपेक्‍स और सीयान के बिल्डिंग प्‍लान्‍स का खुलासा करने को कहा, तो आपने सुपरटेक से पूछा और कंपनी के आपत्ति जताने के बाद ऐसा करने से मना कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही आपने उसकी जानकारी दी। ऐसा नहीं है कि आप सुपरटेक जैसे हैं, आप उनके साथ मिले हुए हैं।

सुपरटेक ने भी अदालत के सामने घर खरीदारों पर ठीकरा फोड़ा। सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा, “घर खरीदार 2009 में हाई कोर्ट नहीं गए, बल्कि 2012 के बाद ही गए। वे तीन साल तक क्‍या कर रहे थे? मोलभाव?” कंपनी ने नोएडा के अन्‍य हाउजिंग प्रॉजेक्‍ट्स का हवाला दिया जिनके टावर्स के बीच 6 से 9 मीटर्स का फासला था जबकि उसके ट्विन टावर्स के बीच 9.88 मीटर की दूरी है।

सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिन दो टावरों को गिराने का आदेश दिया है, उनमें नियमों की अनदेखी नहीं की गई है। उन्होंने खरीदारों की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब 2009 में उन टावरों का निर्माण शुरू हो गया था, तो उन्होंने तीन वर्ष बाद हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया?

इस पर जस्टिस शाह ने कहा, अथॉरिटी को तटस्थ रुख अपनाना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि आप बिल्डर हैं। आप उनकी भाषा बोल रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि आप फ्लैट खरीदारों से लड़ाई लड़ रहे हैं। जवाब में कुमार ने कहा कि वह तो महज अथॉरिटी का पक्ष रख रहे हैं।

दरअसल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस हाउसिंग सोसायटी में एफएआर के उल्लंघन पर दो टावरों को गिराने का आदेश दिया था। साथ ही इससे जुड़े अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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