मुनेश त्यागी
आज गढ़वाल सभा भवन मेरठ में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के जन्मदिन पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर आरपी जुयाल ने कहा कि चंद्र सिंह गढ़वाली ने अपने हिसाब से परिस्थितियों का सही इस्तेमाल किया था और उन्होंने गोली न चलाने का जो अंग्रेजों का आदेश की अवहेलना की थी वह किसी आवेश में आकर नहीं की थी, बल्कि वह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी।
चंद्र सिंह गढ़वाली हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के विचारधारा से प्रभावित थे। वे चंद्रशेखर भगत सिंह बिस्मिल अशफाक उल्ला खान की राह पर चलने वाले आजादी के एक क्रांतिकारी सेनानी थे। एच एस आर ए उन दिनों जनता में संघर्ष के साथ-साथ भारतीय सेवा में भी अपनी सशस्त्र शाखा कायम करना चाहती थी और वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथ साथी सिपाही इसी कार्य नीति का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि आज सरकार चंद्र सिंह गढ़वाली के सपनों की सरकार नहीं है वह उनके सपनों को धरती पर नहीं उतर रही है। इसी वजह से गढ़वाल में और उत्तराखंड में किसानों की समस्याओं ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
उन्होंने कहा कि गढ़वाल में उत्तराखंड में खेती की जमीन घट रही है, जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथी समाज में जातीय और धार्मिक नफ़रत के खिलाफ थे। वे एक ऐसे समाज की स्थापना करने चाहते थे जिसमें सब लोग सारे भारतीय मिलजुल कर रहें।
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि पहाड़ों से पलायन जारी है, वहां उद्योग धंधे कायम करने की जरूरत है, लोगों को रोजगार देने से ही पलायन की समस्या का समाधान हो सकता है। एक वक्त ने कहा कि चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड की शान थे। वे सत्ता के विरुद्ध खड़े रहे मगर उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। वे अहिंसा के पुजारी थे गांधी के चेले थे। उन्होंने आजादी के लिए लड़ रहे हिंदुस्तानी हिंदू मुस्लिम सिपाही पर गोली नहीं चलाई उन्होंने उत्तराखंड को नई पहचान दिलाई उन्होंने अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा नुकसान उठाया मगर अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा।
इस अवसर पर बोलते हुए जनवादी लेखक संघ मेरठ के सचिव मुनेश त्यागी ने कहा कि चंद्र सिंह गढ़वाली उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से कम कर रहे थे। वह समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे। चंद्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में नमक सत्याग्रह कर रहे स्वतंत्रता सेनानियों पर, अंग्रेजों के आदेश के बावजूद, गोली चलाने से मना कर दिया था। इसमें उनके साठ साथी सिपाही भी शामिल थे। इस पर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। बहुत सारे जोर दबाव के बावजूद भी उन्होंने इस घटना के लिए माफी मांगने से मना कर दिया था
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की इस घटना ने एक क्रांतियों की श्रृंखला पैदा की थी, जिसे 1942 के करो या मरो आंदोलन में देखा जा सकता है, जिसे आजाद हिंद फौज के रूप में देखा जा सकता है जिसमें 3000 गढ़वाली सैनिक शामिल थे और इसका बहुत जीता जागता परिणाम 1946 के नेवी विद्रोह में देखा जा सकता है, जहां भारत के नेवी सैनिकों ने अंग्रेजों के आदेशों का पालन करने से मना कर दिया था और अपने जहाजों से अंग्रेजी झंडा उतार कर उनके स्थान पर कांग्रेस का तिरंगा झंडा, कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा और मुस्लिम लीग का हरा झंडा लगा लिया था। इन सैनिकों की इस कार्यवाही से अंग्रेजी सरकार डर गई थी और उसने भारत को आजाद करने का फैसला कर लिया था।
जेल में रहते रहते गढ़वाली जी भगत सिंह के साथियों शिव वर्मा, यशपाल, पी सुंदरिया आदि के विचारों से प्रभावित हो गए थे और वे समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा में विश्वास करने लगे थे। जेल से छूटने के बाद में वे कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और पूरी जिंदगी किसानों मजदूरों की लड़ाई लड़ते रहे। उनका कहना था कि इस देश की जनता की समस्याओं का समाधान आतंकवाद में नहीं, बल्कि समाजवाद और साम्यवाद में है।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली चाहते थे कि इस देश में सबको रोटी मिले, सबको कपड़ा मिले, सबको रोजगार मिले, सबको स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं मिलें। पहाड़ों के विकास के लिए किसानों और महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाया जाएं और उनकी बेरोजगारी की समस्या का हल किया जाए। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली कमाल की शख्सियत थे। उनके कई नाम थे जैसे,,,, गढ़वाली, भंडारी, पहाड़ी, कमांडर इन चीफ, बड़े भाई, राहुल सांकृत्यायन के अनुसार पेशावर क्रांति के नेता और जनक।
आज यह बेहद आश्चर्य का विषय है कि आज हमारी सरकार चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों को भी याद नहीं कर रही है। उसने उन्हें भुला दिया है और आज भारत का शासक वर्ग चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके विचारों से भयभीत है, डरा हुआ है। आज जब हम पिछले 70 साल के इतिहास पर नजर दौड़ आते हैं तो हम पाते हैं की चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथियों ने जो सपना देखा था, यह उनके सपनों का भारत नहीं है।आज यहां की जनता परेशान है, जातीय, धार्मिक विद्वेष जन्म ले रहा है, जनता के बीच में धार्मिक नफरत बढ़ाई जा रही है, अधिकांश जनता के पास रोजगार नहीं है। विकास के नाम पर लोगों को सिर्फ और सिर्फ धोखा दिया जा रहा है,उनका सम्पूर्ण विकास नही किया जा रहा है।बस उन्हें बहकाया और गुमराह किया जा रहा है।
किसानों और मजदूरों की समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है। आज यह बात पूरी तरह से सही साबित हो रही है कि भारत की जनता की, किसानों मजदूरों की बुनियादी समस्याओं का समाधान वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के विचारों पर चलकर ही किया जा सकता है। आज उनके सपनों को धरती पर उतरने की जरूरत है और उनकी विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है। आज हमें नौजवान पीढ़ी को, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के विचारों से अवगत कराने की सबसे ज्यादा जरूरत है।
मीटिंग की अध्यक्षता प्रेमचंद नेगी ने की तथा संचालन विजेंद्र ध्यानी ने किया। बैठक में वीरेंद्र सेमवाल, वीर सिंह रावत, ओम प्रकाश रतूड़ी, डॉक्टर शोभा रतूड़ी, सत्येंद्र भंडारी, विश्वास चंद्र, देवेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, हरेंद्र सिंह, चंद्र सिंह नेगी, दिनेश बहुगुणा, ऋषि राज उनियाल, राकेश बसालियाल, बीपी चमोला, गिरीश जुयाल, पीतांबर सुंदरियाल, भगत राम रतूड़ी, आदित्य गोसाई, भगवान सिंह, सुरेंद्र भंडारी, मधु रावत, विक्रम नेगी, दर्शन सिंह रावत आदि गढ़वाल सभा के लोग मौजूद थे।