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मध्य प्रदेश की इस लेडी IPS के नाम से कांपते थे डकैत, पहली बार महिला अफसर से पड़ा था पाला

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भोपाल. मध्य प्रदेश की पहली महिला आईपीएस आशा गोपाल को जब शिवपुरी जिले की कमान मिली तब यह इलाका डकैतों का गढ़ हुआ करता था. IPS गोपाल उस समय देशभर में कुल 16 महिला अधिकारियों में से एक थीं. देश में यह पहली बार था जब डकैतों के खिलाफ विशेष अभियान का नेतृत्व एक महिला अधिकारी कर रहीं थीं. आशा गोपाल का यह सख्त कदम उन्हें रातों-रात सुर्खियों में ले आया. आईपीएस आशा गोपाल मध्य प्रदेश की ऐसी महिला आईएसएस अधिकारी बनीं, जिनके नाम से गुंडे-बदमाश से लेकर डाकू तक थर-थर कांपते थे. 1976 में आशा ने यूपीएससी क्लियर की थी. इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश कैडर मिला था.

आशा गोपाल के पिता अधिकारी थे और मां शिक्षाविद् थीं. आशा का जन्म 14 सितंबर 1952 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ. उन्हें बचपन से ही पुलिस अधिकारी बनने की ख्वाहिश थी, लेकिन उस समय महिलाएं पुलिस में कम ही जाती थीं. माता-पिता की सलाह पर शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय भोपाल से वनस्पति विज्ञान में एमएससी की. इसके बाद उन्हें प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. लेकिन उनका मन प्रोफेसरी में नहीं लगा, क्योंकि बचपन से ही खाकी वर्दी उनके जेहन में थी. इसलिए यूपीएससी क्लियर करके 1976 में इसमें कामयाब भी हो गईं

डाकुओं से प्रभावित इलाके शिवपुरी में मिली तैनाती
आशा गोपाल की पहली पोस्टिंग ही डकैत प्रभावित इलाके शिवपुरी में हुई. उन दिनों दुर्दांत डाकू देवी सिंह का इलाके में आतंक था. किरण बेदी के बाद आशा गोपाल दूसरी महिला थीं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से एक जिले की कमान मिली थी. उन्होंने इसे चैलेंज के रूप में लिया और डाकुओं का एनकाउंटर करने का निर्णय लिया. हालंकि उस दौर में यह बेहद कठिन काम माना जाता था.

पहली तैनाती में ही इनामी डकैत देवी सिंह को किया ढेर
आईपीएस आशा गोपाल को मुखबिर से मशहूर डाकू देवी सिंह के गैंग के साथ छिपे होने की जानकारी मिली. उन्होंने लगभग 100 पुलिसकर्मियों के साथ शिवपुरी से 125 किमी पूर्व में राजपुर गांव की ओर धावा बोल दिया. रात के अंधेरे में पुलिस ने उस गन्ने के खेत को घेर लिया, जिसमें देवी सिंह और उसका गिरोह छिपा हुआ था. पुलिस ने सुबह तक इंतजार किया और फिर डकैतों को सरेंडर करने के लिए कहा. लेकिन डकैतों ने सरेंडर करने की बजाय गोलियां चलानी शुरू कर दीं. जिस पर पुलिस की ओर से भी फायरिंग की गई और इस एनकाउंटर में डकैत देवी सिंह सहित चार दस्युओं की मौत हुई.

महिला आईपीएस को बहादुरी के लिए मिले अवॉर्ड
1980 के दशक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध डकैत प्रभावित क्षेत्रों में कई कठिन पोस्टिंग को उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया. आईपीएस आशा गोपाल की बहादुरी और डकैत प्रभावित क्षेत्र में सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उन्हें 1984 में वीरता के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक और मेधावी सेवा पदक से सम्मानित किया गया था.

एसपी का तबादला रुकवाने के लिए जनता सड़क पर उतरी
आईपीएस आशा गोपाल से जुड़ी एक और दिलचस्प कहानी है. वे 1987 में जबलपुर की एसपी थीं. उनका ऐसा खौफ था कि बड़े-बड़े गुंडे उनका नाम सुनते ही कांप उठते थे. उन्होंने शहर में गुंडा विरोधी अभियान चलाया और दर्जनों गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचाया. ऐसे में शहर में अपराध और अपराधी दोनों कम हो गए. करीब सात महीने के कार्यकाल के बाद उनका सागर ट्रांसफर होने की सूचना मिलने पर जनता सड़क पर आ गई. चेंबर ऑफ कॉमर्स जैसे संगठनों ने भी उनका स्थानांतरण आदेश वापस लेने की मांग की. ऐसे में खुद उन्होंने सामने आकर लोगों को समझाया था.

आशा गोपाल ने जर्मन पुलिस अधिकारी से की थी शादी
आशा गोपाल ने एक जर्मन पुलिस अधिकारी से शादी की थी. उन्होंने 24 सालों तक मध्य प्रदेश पुलिस को अपनी सेवा दी, जिसके बाद उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली.

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