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अच्छी-खासी रहने वाली है इस बार मोदी कैबिनेट में सहयोगी दलों की हिस्सेदारी

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री पद से नरेंद्र मोदी के इस्तीफे देने के साथ ही 17वीं लोकसभा भंग हो गई है. अब तीसरी बार मोदी सरकार के गठन की कवायद शुरू हो गई. एनडीए ने भले ही 293 सीटों के साथ बहुमत का नंबर जुटा लिया हो, लेकिन बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई. इसका सियासी इफैक्ट यह है कि बीजेपी को अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की मजबूरी होगी, क्योंकि मोदी सरकार 3.0 का सारा दरोमदार उन्हीं पर टिका हुआ है. ऐसे में मोदी कैबिनेट का स्वरूप इस बार 2014 और 2019 से अलग होगा. मोदी कैबिनेट में इस बार सहयोगी दलों की भागीदार बढ़ेगी तो नए चेहरों मंत्रिमंडल में नजर आएंगे.

प्रधानमंत्री आवास पर बुधवार को हुई मीटिंग में नरेंद्र मोदी को एनडीए का नेता चुना गया. टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार सहित 16 पार्टियों के 21 नेता शामिल हुए थे. माना जा रहा है एनडीए की सात जून को बैठक होगी और उसी दिन सरकार बनाने का दावा पेश किया जाएगा. 2014 और 2019 में बीजेपी अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा जुटाने में कामयाब रही थी. इस बार पार्टी को 240 के खाते में सीटें आईं हैं, जो बहुमत के आंकड़े 272 से 32 सीटें कम हैं. हालांकि, एनडीए 293 सीटों के साथ बहुमत का नंबर जुटाने में सफल रहा, जिसके चलते सरकार बन जाएगी.

बीजेपी का बहुमत से 32 नंबर होने से सहयोगी दलों का रोल बेहद अहम हो गया है.एनडीए के घटक दलों की बारगेनिंग पावर बढ़ गया है, क्योंकि उनके सहयोगी के बिना सरकार चलाना आसान नहीं होगा. बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में कुल 24 पार्टियां शामिल है, लेकिन 2024 में 15 दलों के 293 सांसद जीतकर आए हैं. बीजेपी के लिए टीडीपी, जेडीयू, शिवेसना, एलजेपी (आर) और आरएलडी जैसे एनडीए के दलों को साधकर रखना सियासी मजबूरी है.

बीजेपी को मिली 240 सीटों के बाद एनडीए में चंद्रबाबू नायूड की टीडीपी 16 सीटों के साथ दूसरी और नीतीश कुमार की जेडीयू के 12 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. इसके अलावा एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 7, चिराग पासवान की एलजेपी (आर) के 5 और जयंत चौधरी की आरएलडी के दो सांसद जीतकर आए हैं. ऐसे में टीडीपी से लेकर जेडीयू और शिवसेना जैसे दल फिलहाल बीजेपी के लिए जरूरी है और इनके बिना बीजेपी को सरकार बनाना मुश्किल है. बीजेपी पिछली बार मनमानी करने की स्थिति में थी, लेकिन इस बार सहयोगी दलों के हाथ में सत्ता की चाबी है.

मोदी कैबिनेट में इस बार एनडीए के सहयोगी दलों की हिस्सेदारी अच्छी-खासी रहने वाली है, क्योंकि टीडीपी से लेकर जेडीयू और शिवसेना के बैसाखी के सहारे ही बीजेपी तीसरी बार सरकार बनाने की स्थिति बन रही है. 2019 में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों को केंद्र में एक-एक मंत्री पद दिया था, लेकिन इस बार टीडीपी की डिमांड पांच मंत्री पद की है तो जेडीयू भी तीन से कम मंत्री पद नहीं चाहती है. इसके अलावा शिवसेना और चिराग पासवान भी मंत्री पद की ख्वाहिश में है. इतना ही नहीं एक-एक सीट जीतने वाले जीतनराम मांझी और अनुप्रिया पटेल भी मंत्री बनने की इच्छा रखती हैं.

नीतीश कुमार की जेडीयू भले ही 2014 में साथ मिलकर चुनाव न लड़ी हो, लेकिन 2017 में एनडीए में शामिल हो गई थी. इसके बाद 2019 में एनडीए के साथ चुनाव लड़ी थी, लेकिन दोनों ही कार्यकाल में मोदी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनी. 2019 में नीतीश कुमार अपनी पार्टी के लिए मोदी कैबिनेट में दो मंत्री पद चाहते थे, लेकिन बीजेपी एक ही मंत्री पद दे रही थी. इसके चलते बात नहीं बन सकी थी. हालांकि, आरसीपी सिंह जेडीयू अध्यक्ष रहते हुए नीतीश की मर्जी के बिना मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन गए थे. जेडीयू इस बार जिस तरह अहम रोल में आई है, उसके चलते कैबिनेट में उसकी भूमिका भी महत्वपूर्ण रनहे वाली है.

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में टीडीपी सरकार में शामिल थी, लेकिन 2018 में चंद्रबाबू नायडू ने विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर एनडीए का साथ छोड़ दिया था. केंद्र में अपने कोटे के दो मंत्रियों ने भी इस्तीफा दिला दिया था. 2024 में फिर से नायडू एनडीए का हिस्सा बने हैं और उनकी पार्टी को 16 सीटें आई हैं, जो एनडीए में बीजेपी के बाद दूसरा सबसे बड़ा दल है. इसके चलते मोदी कैबिनेट में वो अपनी हिस्सादारी बढ़ाने ही नहीं बल्कि अहम भूमिका मंत्रालय भी चाहते हैं.

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में कई नए चेहरों को कैबिनेट की हिस्सेदारी मिल सकती है. चिराग पासवान पहले से एनडीए का हिस्सा रहे हैं, लेकिन उनके पिता राम विलास पासवान और बाद में उनके चाचा पशुपति पारस के मंत्री बनने के चलते उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी. चिराग पासवान के अगुवाई में इस बार के चुनावी मैदान में उतरी थी और उनकी पांच सीटें जीती है. इसके चलते चिराग पासवान का मंत्री बनने का लगभग तय माना जा रहा है. चुनाव से ठीक पहले एनडीए में आए आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी की दो सीटें आईं हैं.

जयंत चौधरी को पहली बार केंद्र में मंत्री बनने का मौका मिल सकता है. जीतनराम मांझी सांसद बने हैं, जिसके चलते उन्होंने मंत्री बनने की मांग शुरू कर दी है. एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 7 सीट जीतने में सफल रहे हैं, जिसके चलते मोदी कैबिनेट में उनकी पार्टी को भी मौका मिल सकता है. अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) की दो सीटों से घटकर एक सीट पर आ गई है. अनुप्रिया जीतने में सफल रही है, जिसके चलते उनके मंत्री बनने की डिमांड कर सकती है. हालांकि, पिछले दोनों ही कार्यकाल में अनुप्रिया मंत्री रह चुकी हैं.

लोकसभा चुनाव में इस बार मोदी सरकार के करीब डेढ़ दर्जन मंत्री चुनाव हार गए हैं. हारने वालों में स्मृति ईरानी, संजीव बालियान, महेंद्रनाथ पांडे, निरंजन ज्योति, अजय मिश्रा टेनी, अर्जुन मुंडा, आरके सिंह जैसे दिग्गज मंत्री भी शामिल हैं. इसके चलते नए लोगों को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. जब 2014 में मोदी पीएम थे तो उनकी कैबिनेट में कुल 46 मंत्री थे, लेकिन जब मोदी 2.0 सरकार आई तो उन्होंने अपने मंत्रिमंडल से 25 मंत्रियों को हटा दिया था. ऐसे में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में बीजेपी के दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल में रिपीट किया जा सकता है और उनके अलावा बाकी नए चेहरों को जगह मिल सकती है. सहयोगी दलों को एडजस्ट करने के चलते बीजेपी कोटे से इस बार कम मंत्री बन सकते हैं और सहयोगी दलों को हिस्सेदारी ज्यादा मिल सकती है.

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