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चीन का साम्राज्यवाद रोकने तिब्बत की आजादी बेहद जरूरी : अजय खरे 

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भारत तिब्बत मैत्री दिवस के रूप में मनाया गया  दलाई लामा का जन्मदिन

रीव 7 जुलाई। भारत तिब्बत मैत्री संघ , समता संपर्क अभियान समाजवादी कार्यकर्ता समूह , नारी चेतना मंच, विंध्याचल जन आंदोलन के संयुक्त के संयुक्त तत्वावधान में नेहरू नगर स्थित पूनम जनमासा में शनिवार 6 जुलाई को नोबेल पुरस्कार विजेता एवं तिब्बती धर्म गुरु परम पावन दलाई लामा जी के 89 वें जन्म दिवस को भारत तिब्बत मैत्री दिवस मनाते हुए तिब्बत की आजादी के समर्थन में एक संगोष्ठी का आयोजन किया।

विचार संगोष्ठी को प्रमुख रूप से संबोधित करते हुए भारत तिब्बत मैत्री संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा कि तिब्बत भारत की उत्तरी सीमा एवं हिमालय पर्वतमाला पर भौगोलिक एवं पर्यावरण दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण शांति क्षेत्र है जिसे चीन ने हड़प रखा है। लगभग 25 लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग के तिब्बत भारत और चीन के बीच बफर स्टेट के रूप में भी ऐतिहासिक पहचान रखता था। आजादी के समय भारत की उत्तरी सीमाएं तिब्बत से मिलती थीं जिसका निर्धारण मैक मोहन रेखा करती है। वास्तविकता यह है कि तिब्बत भारत का पड़ोसी देश है , ना कि चीन। सन 1959 में चीन द्वारा तिब्बत पर सैन्य बल के आधार पर जबरिया कब्जा करने की स्थिति में वहां के शासक एवं आध्यात्मिक नेता 14 वें दलाई लामा को अपने हजारों अनुयायिओं के साथ भारत आना पड़ा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा उन्हें भारत का मेहमान मानते हुए राजनीतिक शरण देने की साहसिक पहल की थी। करीब साढ़े तीन साल बाद 20 अक्टूबर 1962 को चीन के विश्वासघाती आक्रमण के चलते भारत को करीब 40000 वर्ग किलोमीटर भूभाग खोना पड़ा। 14 नवंबर 1962 को भारत की संसद के सर्व सम्मत प्रस्ताव के बावजूद आज तक चीन के द्वारा हड़पे गए भारतीय भूभाग को वापस नहीं लिया जा सका है। सन 1965 और 1971 के युद्ध में भारत के द्वारा पाकिस्तान को बुरी तरह हराने के बाद चीन ने अपने आप को तिब्बत तक सीमित कर लिया। सिक्किम के भारत में विलय और अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दिए जाने पर चीन कुछ नहीं कर पाया। देखने में आया कि सन 2014 में मोदी सरकार के समय से भारत चीन के व्यापारिक रिश्ते प्रगाढ़ होने के दौरान चीन की आर्थिक लूट बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया के दावे के बावजूद भारतीय बाजार में चीनी व्यापार फलता फूलता नजर आता है। यही नहीं बात-बात पर चीन आंखें दिखाता रहता है। आए दिन अरुणाचल प्रदेश एवं लद्दाख के भारतीय भूमि में चीन घुसपैठ कर रहा है। डोकलाम एवं गलवान घाटी जैसी वारदातों को अंजाम देकर भारत की सीमाओं पर चीन आक्रामक रुख अपनाए हुए है। 

श्री खरे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुरुआती कार्यकाल से देश की उत्तरी सीमाओं पर चीन की घुसपैठ की बढ़ती घटनाएं गंभीर चुनौती बनी हुई हैं। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के भारतीय भू-भाग में चीन के द्वारा महज़ दावा ही नहीं बल्कि घुसपैठ बनाए रखना देश की एकता अखंडता और संप्रभुता के साथ खिलवाड़ है। चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने का अभियान जारी है। यह भारी विडंबना है कि चीन के द्वारा की जा रही दखलंदाजी के बावजूद भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते बरकरार हैं। श्री खरे ने कहा कि 20वीं शताब्दी के दौरान जब दुनिया के तमाम देश आजाद हो रहे थे उस समय तिब्बत को गुलाम बना लिया जाना स्वतंत्रता के पक्षधरों के लिए एक गंभीर चुनौती है। दुनिया की छत कहा जाने वाला तिब्बत करीब 70 वर्षों से आजादी के हवा के झोंके से वंचित है।तिब्बतियों की अपनी भाषा,भूगोल ,इतिहास और संस्कृति होने के बावजूद उनका अपना स्वतंत्र मुल्क नहीं रह गया है। तिब्बत की आजादी और भारत की सुरक्षा का सवाल परस्पर पूरक है। तिब्बत की शिशु हत्या हुई लेकिन उसकी मजबूती से विरोध नहीं हो पाया। इसके कारण चीन के साम्राज्यवादी मंसूबे बढ़ते जा रहे हैं। सीमावर्ती नेपाल भूटान को भी चीन के विस्तारवाद से खतरा बना हुआ है। चीन की बढ़ती ताकत के कारण भारत की उतरी सीमाओं पर रक्षा बजट बढ़ता जा रहा है। जब तिब्बत स्वतंत्र देश के रूप में था तब भारत और तिब्बत के बीच में सेना नहीं होती थी। श्री खरे ने कहा कि  तिब्बत की आजादी बेहद जरूरी है इससे भारतीय सीमाओं पर स्थित हिमालय परिवार शांति क्षेत्र के रूप में विकसित होगा।

संगोष्ठी के दौरान उपस्थित जनों ने अमेरिका यात्रा पर गए परम पावन दलाई लामा जी को 89 वें जन्मदिन पर बधाई देते हुए उनके सुखद दीर्घायु जीवन की कामना की। उनके जीवन काल में यथाशीघ्र तिब्बत को आजादी मिले ऐसी प्रार्थना की। इसके साथ ही भारत सरकार से यह मांग की गई वह भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से परम पावन दलाई लामा को सुशोभित करे। यह काफी गर्व का विषय है कि दलाई लामा जैसी महान शख्सियत भारत में लंबे समय से मौजूद हैं। इसके साथ-साथ यह सुनिश्चित करे कि तिब्बत की आजादी और भारत की सुरक्षा का सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसे प्रभावी बनाया जाए।  

कार्यक्रम में भारत तिब्बत मैत्री संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजय खरे, कामरेड अरविंद त्रिपाठी, लोकतंत्र सेनानी रामायण पटेल, अनिल सिन्हा, नारी चेतना मंच की पूर्व अध्यक्ष डॉ श्रद्धा सिंह , समाजसेवी शेषमणी शुक्ला , नारी चेतना मंच की नेत्री गीता महंत, समता संपर्क अभियान के गफूर खान , प्रेमनाथ जायसवाल, जगदीश सोंधिया ,मनीष सिंह तिवारी, प्रसून द्विवेदी आदि की सक्रिय भागीदारी रही।

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