टिकटों के दावेदारों को भोपाल से लेकर दिल्ली तक के काटने पड़ रहे हैैं चक्कर
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भोपाल अब विधानसभा चुनाव होने में महज छह माह का समय बचा है, ऐसे में टिकटों के दावेदारों ने अपने आकाओं के चक्कर काटने तेज कर दिए हैं, लेकिन इस बार बदले हुए राजनैतिक माहौल में आका भी कोई गारंटी देने को तैयार नही हैं, जिसकी वजह से अब भाजपा के दावेदारों को भोपाल से लेकर दिल्ली तक की परिक्रमा करनी पड़ रही है। दरअसल दावेदारों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल उनके आकाओं की वजह से ही खड़ी हुई है।
इन आकाओं के भरोसे ही दावेदार अब तक बेफ्रिक नजर आ रहे थे, लेकिन अब समय पास आते ही दिग्गज नेताओं ने टिकट की गारंटी देने से इंकार कर दिया है। इसकी वजह है इस बार चुनाव में संगठन सिर्फ उन नेताओं को टिकट देने की रणनीति बना चुकी है , जो हर हाल में जीतने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि अब तक पिछले चुनावों के पहले जिस तरह के संकेत दावेदारों को दे दिए जाते थे, वह भी इस बार नहीं मिल पा रहे हैं। दरअसल, परंपरा के अनुसार बीते चुनावों तक विधायक या स्थानीय नेताओं की तैयारियों को देखकर शीर्ष स्तर से चुनाव के लिए सक्रिय हो जाने का इशारा कर दिया जाता था, लेकिन इस बार हालात अलहदा बने हुए हैं।
दावेदारों को उनके आका इस बार साफ कह रहे हैं कि उनके हाथ में अब कुछ नही है। वे सिर्फ नाम सुझा सकते हैं। इसकी वजह से अब इस बार अभी तक दावेदार चुनावी तैयारी करने की जगह नेताओं और भोपाल से लेकर दिल्ली तक के चक्कर काटने में अपना समय लगा रहे हैं। प्रदेश भाजपा में यह हाल तब हैं, जबकि विधानसभा में भाजपा विधायकों का आंकड़ा 127 है। दरअसल हाल ही में संगठन और केंद्रीय नेतृत्व द्वारा कराए गए सर्वे में तीन दर्जन से अधिक विधायकों की हालत उनके क्षेत्रों में खराब बताई गई है। ऐसे में इनके टिकटों को लेकर सर्वाधिक असमंजस बना हुआ है। उधर, इस बार प्रदेश संगठन में कई पॉवर सेंटर हैं, जिसकी वजह से भी नेता परेशान हैं। दावेदारों को इस बार यह समझ नहीं आ रहा है कि वे किस सेंटर पर दस्तक दें, जिससे उनका टिकट तय हो जाए।
एक -एक सीट पर हैं कई-कई दावेदार
प्रदेश में भाजपा की सरकार अठारह सालों से होने की वजह से दावेदारों की संख्या भी अधिक हो चुकी है। हालत यह है कि हर सीट पर लगभग चार से छह दावेदार हैं। इनमें पूर्व विधायक, पूर्व सांसद, नगरपालिका अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, मंडी अध्यक्ष, भाजयुमो अध्यक्ष, महिला मोर्चा अध्यक्ष, किसान मोर्चा के अध्यक्ष सहित कई नेता शामिल हैं। इसके अलावा इस बार संगठन में रह चुके वे चेहरे भी प्रत्याशी बनने के लिए दावेदार बनकर सामने आ रहे हैं, जो संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद अब निगम मंडलों में नियुक्त हो चुके हैं।
सर्वे का दिया जा रहा है हवाला
उधर, पार्टी द्वारा बार-बार सभी विधायकों को सर्वे का हवाला देकर उनका परफार्मेंस कमजोर बताया जा रहा है। दरअसल इसके पीछे की वजह है , संगठन चाहता है कि इससे विधायक अपने क्षेत्र में गंभीरता से अभी से सक्रिय हो जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी विधायकों से वन टू वन में भी कई बार विधायक और दावेदारों को इशारों में बता दिया करते थे कि उनका प्रत्याशी बनना तय है, लेकिन इस बार हालात अलहदा हैं। टिकट के बंटवारे में जिन नेताओं की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है, उनमें से अधिकांश इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नही हैं। आमतौर पर मुख्यमंत्री, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष, संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी स्तर के नेता अपने खास लोगों में शामिल दावेदारों को चुनाव से पहले ही प्रत्याशी बनाए जाने का आश्वासन देकर चुनावी तैयारियों को लेकर संकेत दे देते थे। फिलहाल ऐसे नेताओं में अभी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, संगठन महामंत्री हितानंद, प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल और राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश शामिल हैं।