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‘संघ के दबाव में PM मोदी जातिगत जनगणना कराने से कर रहे इनकार’-RJD

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पटना: जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बीते कुछ दिनों से बिहार की राजनीति में भूचाल मचा हुआ है. अब जातीय जनगणना के मुद्दे पर भी सियासी पारा चढ़ गया है. दरअसल केंद्र सरकार (Central Government) ने नीतिगत मामलों के रूप में जनगणना में एससी-एसटी के अतिरिक्त कोई जातीय जनगणना नहीं करने का फैसला किया है. इसपर राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला किया.

संसद के मानसून सत्र में सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि 2021 की जनगणना जाति आधारित नहीं होगी. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उक्त जानकारी दी. इसपर राजद ने हमला किया है और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रभाव के कारण जातिगत जनगणना नहीं कराना चाहते हैं.शिवानंद तिवारी ने साधा पीएम पर निशाना

अगले जनगणना की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. लेकिन इस बीच कई राज्यों से जातिगत जनगणना की भी मांग तेज होती जा रही है. कई राज्य केंद्र पर जातिगत जनगणना कराने को लेकर दबाव बनाने की कोशिशों में जुटे हैं.

‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति आधारित जनगणना का विरोधी है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर दिया है. जब जरूरत होती है तब प्रधानमंत्री अपने को पिछड़ी जाति का बताकर राजनीतिक लाभ ले लेते हैं लेकिन जब पिछड़ों को उनका हक देने का सवाल उठता है तो वह संघ के दबाव में आ जाते हैं.’- शिवानंद तिवारी, वरिष्ठ नेता, राजद

शिवानंद तिवारी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना देशभर के सामाजिक न्याय आंदोलन के जितने भी नेता हैं उनकी मांग रही है. शिवानंद तिवारी ने कहा कि दुर्भाग्य से आज तक जाति आधारित जनगणना नहीं हो पाई है. इसकी वजह से देश को बहुत नुकसान हो रहा है. विभिन्न सरकारों ने अब तक विकास के जो कार्यक्रम चलाए हैं उनका क्या परिणाम निकला इसकी सही सही जानकारी सरकार के पास भी नहीं है.

राजद के वरिष्ठ नेता ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हमारे देश में दलित आदिवासी और पिछड़े वर्गों की विशाल आबादी है और जब तक इनका सामाजिक और आर्थिक स्तर पर विकास नहीं होगा तब तक देश के विकास की कल्पना बेमानी है.

दरअसल बिहार में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही जातिगत जनगणना के पक्ष में है. इसे विधानसभा चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के एक हथकंडे के रूप में भी देखा जा सकता है. चूंकि बिहार की राजनीति में पिछड़ी जातियों का प्रभाव काफी अधिक है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना से इस वोट बैंक में अपनी पैठ को और प्रभावी बनाने में पार्टियों को मदद मिलेगी.

आपको बता दें कि नित्यानंद राय ने संसद में कहा था कि संविधान के मुताबिक लोकसभा और विधानसभा में जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं. महाराष्ट्र और ओडिशा की सरकारों ने आगामी जनगणना में जातीय विवरण एकत्रित करने का अनुरोध किया है. भारत सरकार ने नीतिगत मामले के रूप में फैसला किया है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अतिरिक्त कोई जातीय जनगणना नहीं होगी.

गौरतलब है कि भारत में आधिकारिक तौर पर जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी. 1931 और 1941 की जनगणना में जाति के बारे में आकडे़ होने के बावजूद इसका अलग से ‘टैबुलेशन’ यानि सारणीबद्ध नहीं किया गया था. स्वतंत्रता के बाद 1951 में पहली बार जनगणना की गई और उस समय से ही जाति के बारे में आंकड़े इकट्ठा किया जाना लगा था.

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