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प्रियंका गांधी को विदाउट पोर्टफोलियो वाली इस जिम्मेदारी के क्या हैं सियासी मायने

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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ है। इस फेरबदल में कई राज्यों के प्रभारी बदले गए हैं। प्रियंका गांधी की जगह यूपी में अविनाश पांडे को प्रभारी बनाया गया है। इस नए फेरबदल में प्रियंका गांधी वाड्रा के पास किसी राज्य की जिम्मेदारी नहीं है। वह महासचिव हैं लेकिन उनके पास किसी राज्य का प्रभार नहीं है। मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो वाली स्थिति से इसको समझा सकता है। अब इस फैसले के सियासी मतलब और नफा-नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। आने वाले समय में उनकी क्या भूमिका बदलेगी। किसी एक राज्य तक सीमित न रखकर पार्टी क्या उन्हें एक अलग भूमिका में देख रही है। कर्नाटक, हिमाचल, तेलंगाना और दूसरे राज्यों में प्रियंका गांधी ने सक्रिय भूमिका निभाई। हिमाचल में पार्टी की जीत का श्रेय उनको दिया गया। हालांकि इस नए फेरबदल पर बीजेपी की ओर से तंज कसा गया है। 2024 के चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले इस बदलाव के आखिर क्या मायने हैं।

विदाउट पोर्टफोलियो वाली इस जिम्मेदारी का क्या मतलब

किसी राज्य की जिम्मेदारी भले ही प्रियंका गांधी के पास नहीं है लेकिन इसका मतलब कतई यह नहीं है कि उनका कद कम हुआ है। विदाउट पोर्टफोलियो मिनिस्टर वाले कई उदाहरण हैं। हालांकि यह प्रयोग अब संगठन के भीतर भी है। सिर्फ मिनिस्टर ही नहीं सीएम विदाउट पोर्टफोलियो का भी जिक्र होता है। इसके उदाहरण खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास किसी महकमे की जिम्मेदारी नहीं है। साउथ में पहले जयललिता इसका उदाहरण थीं। अरविंद केजरीवाल सरकार और पार्टी दोनों का काम प्रमुखता के साथ देखते हैं। कांग्रेस पार्टी पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि पार्टी लोकसभा चुनावों में प्रियंका गांधी को बड़ी भूमिका में देख रही है।

एक राज्य नहीं पूरे देशभर में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी
जो बदलाव हुए हैं उसमें जो भी महासचिव हैं उनके पास अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी है। प्रियंका गांधी के पास किसी राज्य की जिम्मेदारी नहीं है। पिछले कई चुनावों से वह पार्टी की ओर से स्टार प्रचारक रही हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की जिम्मदारी उनके पास है और अब अलग-अलग राज्यों में वह अलग-अलग भूमिका में नजर आएंगी। पार्टी की रणनीति ऐसी दिखती है कि उनकी लोकप्रियता को पार्टी अधिक से अधिक भुनाने की कोशिश करेगी। वर्तमान समय में वह इस मामले में कांग्रेस के दूसरे नेताओं से आगे दिखती हैं। हालांकि उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। हिमाचल और कर्नाटक में जीत के बाद हाल के तीन राज्यों में हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है।

जवाबदेही से बच पाना… इस सवाल का भी देना होगा जवाब

प्रियंका गांधी के पास यूपी जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी थी। हालांकि पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनावों में ठीक नहीं रहा। बात करें पिछले विधानसभा चुनाव की तो यहां पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। लड़की हूं लड़ सकती हूं के पूरे केंद्र में प्रियंका गांधी रहीं। इस चुनाव वह पार्टी का प्रमुख चेहरा थीं और पार्टी उनके चेहरे पर भी आगे बढ़ी। उन्होंने भले ही चुनाव नहीं लड़ा लेकिन पार्टी का चेहरा राज्य में वही थीं। नतीजे उनके पक्ष में बिल्कुल नहीं रहे। अब नए बदलाव पर विपक्ष की ओर से निशाना साधा जा रहा है। यही वजह है कि पार्टी पार्टी को सफाई भी देनी पड़ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि प्रियंका गांधी को हटाया नहीं गया है बल्कि खुद उन्होंने पूरे देश में काम करने की इच्छा जताई है। प्रियंका गांधी का प्रमोशन हुआ है। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक पार्टी को मजबूत करने का वह काम करेंगी। कांग्रेस पार्टी ने उनकी देखरेख में कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल का चुनाव जीता।

राहुल गांधी का नाम लेकर विपक्ष ने साधा निशाना
कांग्रेस संगठन में हुए फेरबदल पर बीजेपी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कोई पोर्टफोलियो (प्रभार) नहीं दिया जाना कांग्रेस में गांधी परिवार के गैर जिम्मेदार होने की तरह है, और इसे राहुल गांधी के प्रतिद्वंद्वी खेमे के लिए एक मौके के तौर पर देखा जाना चाहिए। बीजेपी आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा इसे राहुल गांधी के प्रतिद्वंद्वी खेमे के लिए पदोन्नति और हाथ आए एक मौके के रूप में देखा जाना चाहिए।

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