अहमदाबाद: गुजरात में पहले चरण के लिए कुल 89 सीटों पर लगभग 60 फीसदी वोट पड़े। कड़े सुरक्षा इंतजामों के बीच कच्छ, सौराष्ट्र और साउथ गुजरात के 19 जिलों में मतदान हुआ। इसी के साथ 788 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है। पहले फेज में गुरुवार शाम 5 बजे तक 60.29 फीसदी वोटिंग हुई जो कि 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम है। पिछले चुनाव में पहले चरण में 68 फीसदी मतदान हुआ था।
चुनाव आयोग के अनुसार, तापी जिले में शाम 5 बजे तक सबसे अधिक 72.32 फीसदी वोटिंग हुई जबकि 68.09 फीसदी वोटिंग के साथ नर्मदा दूसरे नंबर पर और 64.84 फीसदी के साथ डांग तीसरे नंबर पर रहा है। पहले चरण में ग्रामीण और आदिवासी वोटरों ने बड़ी संख्या में मतदान किया जबकि शहरी वोटर्स ने इतना जोश नहीं दिखाया।
कहां कितना हुआ मतदान?
चुनाव आयोग के सात बजे तक आंकड़ों के अनुसार अमरेली में 52.93, भरूच में 63.28, भावनगर में 57.81, बोटाद में 57.15, डांग में 64.84, देवभूमि द्वारका 59.11, गिर सोमनाथ 60.46, जामनगर में 53.98, जूनागढ़ में 56.95, कच्छ में 54.91, मोरबी में 67.60, नर्मदा में 68.09, नवसारी में 65.91, पोरबंदर में 53.84, राजकोट में 50.48, सूरत में 57.83, सुरेंद्र नगर में 60.71, तापी 72.32 और वलसाड में 65.24 फीसदी वोट पड़े।
सातवीं बार जीत की कोशिश में बीजेपी
गुजरात में लंबे वक्त से बीजेपी की सरकार है और पार्टी सातवीं बार यहां जीत की कोशिश में है। वहीं नरेंद्र मोदी यहां सबसे लंबे वक्त (2001-2014) तक मुख्यमंत्री रहे हैं। वहीं कांग्रेस ग्रामीण वोटरों को लुभाने के लिए गांवों का दौरा कर रही है और अपने लिए तीन दशक का सूखा खत्म करने की अपील कर रही है। इस बार गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी (AAP) त्रिकोणीय मुकाबला है। आम आदमी पार्टी ने इसुदान गढ़वी को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है।
आप का दावा- परिवर्तन होगा
आम आदमी पार्टी (आप) के सीएम फेस इसुदान गढ़वी ने पहले फेस की वोटिंग के बाद ट्वीट किया और लिखा कि परिवर्तन हो गया। इसुदान गढ़वी द्वारका जिले की खंभालिया से चुनाव लड़ रहे हैं। पहले चरण में उनकी सीट पर वोटिंग थी। इसुदान गढ़वी ने ट्वीट में एक पुराना वीडियो भी रखा है। जिसमें वे डांस करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसुदान गढ़वी ने लिखा कि यह पुराना वीडियो है।
कम वोटिंग के मायने क्या?
कम वोटिंग के चलते चुनावी एक्सपर्ट अब इसके मायने तलाशने में जुट गए हैं। आमतौर पर कम मतदान को सत्ताधारी दल के लिए फायदे के रूप में देखा जाता है। एक्सपर्ट्स की मानें कई बार वोटर्स जब मौजूदा सरकार से संतुष्ट होते हैं तो वोटिंग के लिए घरों से कम निकलते हैं। जबकि वोटिंग फीसदी में इजाफे को परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। हालांकि असली तस्वीर 8 दिसंबर को ही स्पष्ट होगी।