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किसानों, महिलाओं और युवाओं को बजट से क्या मरहम लगाएगी सरकार

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केंद्र में 10 साल तक बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज रही भाजपा इस बार आम चुनाव में बहुमत से कम सीटों से संतोष करना पड़ा। चुनाव से पहले विपक्षी दलों ने किसानों, बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं, महिलाओं और नौकरीपेशा लोगों की परेशानियों से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरा और वे बहुत हद तक अपने मकसद में सफल भी रहे। ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि इन वर्गों के लोगों को सरकार इस बार बजट में कैसे साधती है।

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई को आएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मंगलवार को अपना लगातार सातवां बजट पेश कर एक रिकॉर्ड बनाएंगीं। आम चुनावों के बाद आने वाले इस बजट में सरकार की घोषणाओं पर सबकी नजर बनी हुई है। इस बार के चुनाव परिणामों में केंद्र में 10 साल तक बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज रही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत से कम सीटों से संतोष करना पड़ा है। सत्ताधारी दल की सीटों में कमी का सबसे बड़ा कारण जनहित के मुद्दों पर केंद्र की अनदेखी को माना जा रहा है।

क्या किसानों, महिलाओं और युवाओं के लिए खजाना खोलेगी सरकार?

चुनाव से पहले विपक्षी दलों ने किसानों, बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं, महिलाओं और नौकरीपेशा लोगों की परेशानियों से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरा और वे बहुत हद तक अपने मकसद में सफल भी रहे। ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि इन वर्गों के लोगों को सरकार इस बार के बजट में क्या तोहफा देती है। जानकारों का मानना है कि अपने तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में सरकार महिलाओं-किसानों और युवाओं के लिए खजाना खोल सकती है। युवाओं के लिए रोजगार बढ़ाने के नए उपाय बजट में दिखाई दे सकते हैं, तो महिलाओं को लखपति बनाने की भाजपा की योजना को आगे बढ़ाने के लिए सरकार भारी निवेश की घोषणा कर सकती है। बजट से पहले इन वर्गों के लोगों की सरकार से अपनी-अपनी अपेक्षाएं हैं। आइए उस पर एक नजर डालते हैं।

अंतरिम बजट में किसानों से जुड़े क्या एलान किए गए?

इस बार किसानों को बजट से क्या अपेक्षाएं हैं यह जानने से पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि इसी साल फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में किसानों के लिए क्या-क्या घोषणाएं की गईं थीं। लोकसभा चुनावों से पहले पेश हुए अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने ग्रामीण विकास पर जोर देते हुए अपने बजट भाषण में बताया था कि किसान हमारे ‘अन्नदाता’ हैं। अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने का एलान किया था। इसके साथ ही सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में नैनो-डीएपी के इस्तेमाल के विस्तार की बात कही गई थी। तिलहनों के लिए आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए ‘आत्मनिर्भर तिलहन अभियान’ शुरू करने का एलान किया गया था। डेयरी विकास के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाने की बात भी वित्त मंत्री ने की थी। इसके साथ ही  जलीय कृषि उत्पादकता बढ़ाने, निर्यात दोगुना करने और अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने की चर्चा की गई। मत्स्य पालन के क्षेत्र  के लिए पांच एकीकृत एक्वा पार्क स्थापित करने का भी एलान वित्त मंत्री ने किया था।

इस बार कृषि क्षेत्र को बजट से क्या अपेक्षाएं हैं?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट से पहले किसानों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों और कृषि से जुड़े विभागों के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की और उनके सुझाव लिए। वित्त मंत्री ने कृषि और किसानों को मजबूत बनाने के लिए उनके विचार समझे। किसानों की बजट से अपेक्षाओं के बारे में बात करते हुए कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि उदारीकरण के बाद से केंद्र सरकारों का पूरा ध्यान बाजारों और बड़ी कंपनियों के विकास की ओर केंद्रित रहा है। इसका असर यह हुआ है कि देश का बहुसंख्यक युवा आज भी बेरोजगार है, किसानों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हुई है। इसका असर हुआ है कि रोजाना किसान खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहा है। वह मजदूर के रूप में जीवन यापन करने को मजबूर हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि देश की आर्थिक तस्वीर बदलनी है, तो केंद्र सरकार की प्रमुखता में कृषि होनी चाहिए, जो आज भी हमारे देश की लगभग 60 फीसदी आबादी के जीवनयापन का मुख्य जरिया है। उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध कराकर किसानों को बड़ी मदद दी जानी चाहिए।

देवेंद्र शर्मा ने कहा कि देश के बजट का वित्तीय निवेश आबादी के अनुपात में होना चाहिए। देश का आधा बजट देश की आधी आबादी पर खर्च होना चाहिए। इस दृष्टि से देश का आधा बजट देश के किसानों पर खर्च होना चाहिए। इससे न केवल देश के सभी किसानों को उनकी संपूर्ण उपज के लिए उचित मूल्य (MSP) प्रदान किया जा सकता है, बल्कि इससे सभी किसान परिवार के लोगों, युवाओं-महिलाओं को रोजगार भी दिया जा सकता है जो कि किसी भी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होता है।         

केंद्र सरकार का पिछला बजट लगभग 48 लाख करोड़ रुपये का था। पूरे देश के किसानों के लिए इसमें से केवल सवा लाख करोड़ रुपये के करीब खर्च किए गए थे। इसमें से भी लगभग 65 हजार करोड़ रुपये प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के जरिए दिया गया था। जबकि केंद्र सरकार का ध्यान पूरी कृषि को मजबूती देने की ओर होना चाहिए। उनका मानना है कि हर महीने 500 रुपये के करीब नकद सहायता देकर किसानों या कृषि की आर्थिक स्थिति नहीं बदली जा सकती।

कषि मामलों के विशेषज्ञ पी. साईनाथ ने अमर उजाला से कहा कि हर वस्तु का मूल्य बढ़ रहा है। इसी क्रम में किसानों के लिए फसल उत्पादन की कीमत इतनी अधिक बढ़ गई है कि अब कृषि एक घाटे का सौदा बन चुका है। इससे पूरे देश का किसान लगातार कर्ज के जाल में डूबता जा रहा है। 

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुसार हर किसान को एमएसपी की कानूनी गारंटी से बांधना चाहिए जिससे कृषि को आर्थिक तौर पर लाभ का सौदा बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि अनेक विकसित देशों में किसानों को भारी आर्थिक सहायता देकर उसे बेहतर स्थिति में लाया जाता है। यह कोशिश भारत में भी अपनाई जानी चाहिए। 

महिलाओं को पिछले बजट में क्या मिला?

अंतरिम बजट में महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए 83 लाख स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी नौ करोड़ महिलाओं में से तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य तय किया गया था। इन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं में से एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने में सफलता पहले ही मिल चुकी है।

अंतरिम बजट में 30 करोड़ महिला उद्यमियों को मुद्रा योजना लोन दिए जाने और उच्च शिक्षा में महिलाओं के एडमिशन लेने में बीते 10 सालों में 28 प्रतिशत का उछाल आने की बात कही गई। सरकार ने फरवरी के बजट में सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए 9 से 14 वर्ष की उम्र की बालिकाओं का टीकाकरण कराने का भी एलान किया था। माताओं और बच्चों को बेहतर पोषण उपलब्ध कराने के लिए ‘सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0’ के अंतर्गत आंगनवाड़ी केंद्रों के उन्नयन में तेजी लाने का एलान किया गया। मिशन इंद्रधनुष  के तहत टीकाकरण के लिए U-WIN प्लेटफॉर्म बनाने का एलान किया गया जिससे जिससे घर बैठे ही टीकाकरण संबंधी जानकारी उपलब्ध हो सके। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भी आयुष्मान भारत योजना के तहत अस्पतालों में इलाज की सुविधा देने का भी एलान वित्त मंत्री ने किया था।

इस बार के बजट में महिलाओं को क्या चाहिए?

देश में करीब 12 साल पहले तक महिलाओं के लिए अलग टैक्स की सुविधा थी। इसमें महिला करदाताओं के लिए इनकम टैक्स में बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट पुरुषों की तुलना में थोड़ी अधिक होती थी। यानी महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम टैक्स चुकाती थीं। लेकिन कांग्रेस सरकार ने वित्त वर्ष 2012-13 ने इस प्रणाली को खत्म कर दिया था। तब सरकार ने महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए समान टैक्स स्लैब पेश किया था। तब से महिलाओं के लिए कोई अलग आयकर स्लैब नहीं है। हालांकि इस बार महिलाओं को मोदी सरकार से उम्मीद है कि महिलाओं के लिए अलग से टैक्स स्लैब आएगा।

सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि महिला वोटर को ध्यान में रखते हुए सरकार महिला करदाताओं के लिए अलग से टैक्स स्लैब ला सकती है। यानी उन्हें अलग और ज्यादा छूट बजट में मिल सकती है। अभी नई कर व्यवस्था में 7 लाख तक कोई टैक्स नहीं देना होता है। अब सरकार इसे 8 लाख रुपये तक कर सकती है

देश में बड़ी संख्या में कपड़ा और हस्तकला उद्योगों से जुड़ी है। वे बजट में कपड़े पर कम करने की उम्मीद कर रही है, ताकि इससे जुड़े बिजनेस को बढ़ावा मिले। उनकी दूसरी बड़ी मांग है कि महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा बैंकिंग से जोड़ा जाएं। महिलाएं स्वरोजगार और स्किल डेवलपमेंट बजट में सरकार से विशेष एलान की उम्मीद भी कर रही हैं। सैलेरी पाने वाले कर्मचारी को हाउसिंग लोन में इंटरेस्ट के डिडेक्शन का नई टैक्स व्यवस्था में कोई लाभ नहीं होता है। महिलाओं का कहना है कि सरकार को इस दिशा में कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे यह लाभ मिल सके।

फिक्की लेडीज ऑर्गेनाइजेशन जुड़ीं राधिका डालमिया ने कहा, महिला उद्यमियों के लिए कर में छूट और कामकाजी माताओं के लिए पेड हॉलिडे बढ़ने की उम्मीद है। इस बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना भत्ता बढ़ाना और लड़कियों के लिए शिक्षा लाभ बढ़ाना महत्वपूर्ण कदम हैं। भारत के लिए विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता देने के साथ-साथ वित्तीय समावेशन और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।

युवाओं के लिए पिछले बजट में क्या एलान हुए?

वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट भाषण में बताया था कि स्किल इंडिया मिशन के तहत देश में 1.4 करोड़ युवाओं को ट्रेंड किया गया है। साथ ही 54 लाख अपस्किल या रि-स्किल किया गया है। पीएम मुद्रा योजना के तहत युवा उद्यमियों को 43 करोड़ के मुद्रा योजना लोन दिए गए। देश में 3000 नए आईटीआई बनाए गए हैं। साथ ही देश में सात आईआईटी, 16 आईआईआईटी, सात आईआईएम, 15 एम्स और 390 यूनिवर्सिटीज का निर्माण किया गया है।  हालांकि विपक्षी दलों ने सरकार पर हमेशा ही युवा वर्ग की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। विपक्षी दलों के अनुसार सरकार युवा वर्ग में बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या को लगातार नजरअंदाज कर रही है। इसके साथ ही सेना में अग्निवीर जैसी योजनाएं लाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। 

इस बार के बजट में युवाओं को सरकार से क्या अपेक्षा है?

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट से बेरोजगारी की मार झेल रहे युवा वर्गा को भी कई अपेक्षाएं हैं। वर्तमान में देश में युवा वर्ग के सामने सबसे बड़ी समस्या रोज-रोटी सुनिश्चित करने की है। युवा वर्ग की ओर से लगातार सरकार से इस दिशा में मजबूत कदम उठाने की अपील की जा रही है। मोदी सरकार के पहले दो कार्यकाल में स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया मिशन के जरिए युवाओं को राोजगार से जोड़ने के लिए कई कदम उठाए गए पर वे कदम जमीन पर नाकाफी ही साबित हुए हैं। ऐसे में युवा वर्ग इस बार उम्मीद कर रहा है सरकार उनकी भलाई के लिए कुछ ऐसे कदम उठाए जो गंभीरतापूर्वक जमीन पर उतारे जा सकें, ना कि वे केवल हवा-हवाई बनकर रह जाएं।

नेशनल करियर सर्विस पोर्टल पर लिस्टेड पदों की संख्या बढ़कर 1.09 करोड़ हो गई है, जबकि नौकरी के लिए पंजीकरण करवाने वालों की संख्या 87.2 लाख ही है। नौकरी की संख्या बढ़ने के बावजूद युवाओं को काम नहीं मिल पा रहा इसकी वजह जॉब के लिए पैरामीटर्स पर उम्मीदवार का खरा न उतरना है। कुछ मामलों में संविदा या कम वेतन होने पर लोग नौकरी के लिए आवेदन नहीं करते हैं। इस स्थिति में सुधार के लिए भी सरकार से इस बजट में कदम उठाने की अपेक्षा है। बजट पूर्व बैठकों में सीआईआई ने सुझाव दिया है कि नए रोजगार पैदा करने के लिए कौशल विकास को बढ़ावा देना चाहिए। देश में पीएम कौशल विकास योजना चलाई जा रही है, जिसमें आने वाले सालों में ज्यादा से ज्यादा युवाओं को नौकरी देने का लक्ष्य रखा जा चाहिए।

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