जस्थान में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं. यहां भाजपा ने चुनाव के पहले किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही प्रचार का चेहरा बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा. चुनावों में उसे 199 में से 115 सीटों पर जीत हासिल हुई.
केंद्रीय पर्यवेक्षकों की प्रतिक्रिया के आधार पर अब भाजपा का संसदीय बोर्ड मुख्यमंत्री का फैसला करेगा. मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने काफी लंबी-चौड़ी बैठक की. लेकिन पार्टी ने अभी तक केंद्रीय पर्यवेक्षकों की घोषणा नहीं की है और यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि विधायक दल की बैठक कब होगी. लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, इसलिए पार्टी का नेतृत्व ऐसे चेहरे की तलाश में है जो सभी 25 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत सुनिश्चित कर सके. पिछले दो आम चुनावों में कांग्रेस को राज्य में कोई भी सीट नहीं मिली है.
आइए एक नज़र डालते हैं मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदारों पर.
वसुंधरा राजे
दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं राजे राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी नेता हैं. वह साल 2003 में राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. दस साल बाद 2013 में फिर एक बार उन्होंने यह पद संभाला.
राजे के वफादारों की संख्या सबसे अधिक है, इसलिए उनका दावा सबसे मजबूत है. पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, 115 में से करीब 40 विधायक राजे के करीबी माने जाते हैं.
सोमवार को कम से कम 47 नवनिर्वाचित विधायकों ने राजे से उनके जयपुर आवास पर मुलाकात की. अगले दिन कुछ और विधायक भी उनसे मिले. लेकिन शाम तक उनसे मिलनेवालों की संख्या कम हो गई, इससे अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि शायद मोदी और शाह के दिमाग में कुछ और है.
वीर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए बहादुर सिंह कोली ने राजे से मिलने के बाद कहा, “जनता की मांग है वसुंधरा जी. उन्हें सीएम बनाया जाना चाहिए,” चुनाव अभियान की शुरुआत में राजे और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच मतभेद खुलकर सामने आए. उन्हें घोषणापत्र और चुनाव प्रबंधन से जुड़ी दो प्रमुख समितियों से बाहर रखा गया. अक्टूबर में भाजपा के 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में राजपाल सिंह शेखावत और नरपत सिंह राजवी सहित उनके कुछ वफादारों को शामिल नहीं किया गया था. लेकिन बाद की सूचियों में उनके समर्थकों को शामिल करके पार्टी ने उनकी नाराज़गी कुछ हद तक कम की.
प्रचार अभियान के अंत तक उन्होंने 50 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया. राज्य में भाजपा के सूत्रों का कहना है कि अगर पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया होता तो और अधिक सीटें मिल सकती थीं. लेकिन मोदी और शाह दांव खेलने के लिए तैयार थे.
ओम प्रकाश माथुर
राजस्थान के पाली में जन्मे माथुर मोदी और शाह के नजदीकी माने जाते हैं. इसलिए वह मुख्यमंत्री की दौड़ में छुपा रुस्तम साबित हो सकते हैं.
पिछले साल उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया गया था. बीजेपी की जीत के बाद उन्होंने ट्वीट किया, ‘कहा जा रहा था यह असंभव है. हमने कर दिखाया.’ माथुर अपने संगठनात्मक कौशल के लिए जाने जाते हैं. वह उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं.
दो बार राज्यसभा सांसद रह चुके माथुर जनवरी 2008 से जुलाई 2009 के बीच राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष थे. उन्होंने 1972 में आरएसएस प्रचारक के रूप शुरुआत की थी. माथुर आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचारक भी रहे हैं. वह वर्तमान में भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य हैं.
अश्विनी वैष्णव
नौकरशाह से नेता बने वैष्णव मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के सह-प्रभारी थे. 2021 में केंद्रीय कैबिनेट फेरबदल के दौरान उनके चुनाव ने सभी को चौंका दिया था, जब उन्हें रेलवे, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख विभाग दिए गए. 53 वर्षीय वैष्णव ओडिशा से राज्यसभा सांसद हैं.
जोधपुर में जन्मे वैष्णव ने 1991 में जिले के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय से शीर्ष सम्मान के साथ ग्रेजुएशन किया. 1994 में आईएएस अधिकारी बनने से पहले उन्होंने आईआईटी-कानपुर से एमटेक भी किया.
1999 में अपने करियर के शुरुआती चरण में वह ओडिशा में प्रौद्योगिकी की सहायता से सुपर-साइक्लोन को ट्रैक करने के लिए नज़र में आए. बाद में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में काम किया. लेकिन पेंसिल्वेनिया में व्हार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए करने के कारण उन पर कर्ज का बोझ बहुत था. इसलिए उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर जनरल इलेक्ट्रिक और सीमेंस जैसी निजी कंपनियों में काम किया.
गजेंद्र सिंह शेखावत
जल शक्ति मंत्री शेखावत केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक और सदस्य हैं, जो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं. उनका राजनैतिक करियर कॉलेज के समय से शुरू हुआ और वह 1992 में जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष बने.
राज्य के प्रमुख राजपूत नेताओं में से एक, शेखावत भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं. 56 वर्षीय शेखावत आरएसएस की आर्थिक शाखा, स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक और सीमा जनकल्याण समिति के महासचिव के रूप में भी काम कर चुके हैं. यह संगठन सीमावर्ती कस्बों और गांवों को विकसित करके राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने हेतु समर्पित है.
उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव जोधपुर से 2014 में जीता. पांच साल बाद, उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हराकर फिर से अपनी सीट जीती. 2020 में सचिन पायलट के करीबी विधायकों के विद्रोह के समय कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया था कि शेखावत गहलोत सरकार को गिराने की कोशिश में शामिल हैं. गहलोत ने मोदी को पत्र लिखकर शेखावत और अन्य बीजेपी नेताओं पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया था.
गहलोत ने शेखावत पर 900 करोड़ के संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी “घोटाले” में शामिल होने का भी आरोप लगाया था, जिसकी जांच राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप कर रहा है.
बाबा बालकनाथ
बालकनाथ “राजस्थान के योगी आदित्यनाथ” के रूप में जाने जाते हैं. विधानसभा चुनावों से पहले और बाद में बाबा मस्तनाथ मठ के यह मुख्य पुजारी काफी चर्चा में रहे. प्रचार के दौरान उन्होंने चुनाव की तुलना भारत-पाकिस्तान मैच से की. वह अलवर के तिजारा विधानसभा क्षेत्र से 6,173 वोटों से विजयी रहे. बालकनाथ उन सात भाजपा सांसदों में से एक हैं जिन्हें राज्य का चुनावी मैदान में उतारा गया था.
बालकनाथ अपने गुरु चांदनाथ के कारण राजनीति में आए. चांदनाथ भी अलवर से लोकसभा सांसद थे. 2017 में चांदनाथ की मृत्यु के बाद, बालकनाथ ने अलवर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाते हैं, दोनों ही नाथ संप्रदाय से हैं. बिजनेसमैन योग गुरु रामदेव से भी बालकनाथ की निकटता है. तिजारा में चुनाव प्रचार करने आने वाले वरिष्ठ नेताओं में आदित्यनाथ प्रमुख थे.
एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक, राजस्थान में बीजेपी के सबसे पसंदीदा संभावित मुख्यमंत्रियों में बालकनाथ का नाम राजे से भी आगे था. राज्य में चुनाव के कवरेज के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री को कई बीजेपी समर्थक मिले जो उन्हें सीएम के रूप में देखना चाहते थे.
दीया कुमारी
दीया कुमारी भी राजस्थान के उन भाजपा सांसदों में से हैं जिन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था. कुमारी ने जयपुर की विद्याधर नगर सीट पर कांग्रेस के सीताराम अग्रवाल को 71,368 वोटों के बड़े अंतर से हराया.
चुनाव के दौरान, उन्हें व्यापक रूप से राजे की प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा था. राजपरिवार की सदस्य होने के साथ-साथ, कुमारी को जिस सीट से चुनाव लड़ाया गया, उससे भी इस भावना को बल मिला. अनुकूल जातीय समीकरणों के कारण विद्याधर नगर को भाजपा के लिए सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है. पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी लगातार तीन बार यह सीट जीत चुके हैं. राजे के करीबी सहयोगी राजवी को पार्टी ने इस बार चित्तौड़गढ़ से चुनावी मैदान में उतारा.
कुमारी 2013 में भाजपा से जुड़ीं- इसी साल उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव भी लड़ा. वह जयपुर की भूतपूर्व रियासत के अंतिम शासक मान सिंह द्वितीय की पोती हैं. उन्होंने 2019 में राजसमंद से लोकसभा का चुनाव जीता था.
अर्जुन राम मेघवाल और किरोड़ी लाल मीणी
अगर भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले अनुसूचित जाति और आदिवासी मतदाताओं को लुभाना चाहती है, तो वह कानून मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, और राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा का भी चुनाव कर सकती है. राज्य की आबादी में इन दोनों समुदायों की संयुक्त हिस्सेदारी 31 प्रतिशत से अधिक है.
मीणा ने 22,510 वोटों से सवाई माधोपुर सीट जीती है. वह भाजपा की राज्य इकाई से अलग हटकर अपने विरोध प्रदर्शनों के लिए जाने जाते हैं. मीणा ने 1985 में भाजपा के टिकट पर अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. वह 2003 से 2008 तक पहली राजे सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे. बाद में उन्होंने राजे से मतभेदों के कारण भाजपा छोड़ दी और 2018 में फिर से पार्टी में वापस आ गए.
अर्जुन राम मेघवाल भी नौकरशाही छोड़कर नेता बने हैं और मोदी-शाह के करीबी हैं उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 2009 में बीकानेर से जीता. तब से उन्होंने यह सीट नहीं हारी है. मेघवाल अपनी राजस्थानी टोपी पहनकर संसद में आते हैं और अक्सर मोदी के साथ दिखते हैं. पहले वह संसद परिसर में साइकिल से आते थे. लेकिन 2018 में कैबिनेट में शामिल होने के बाद से उन्होंने ऐसा नहीं किया है.