महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रण में सूरमा आमने-सामने खड़े हैं। इस बार महाराष्ट्र के जो सियासी समीकरण दिखाई दे रहे हैं उसने इस चुनाव को बेहद रोमांचक बना दिया है। पिछला चुनाव महाविकास अघाड़ी जीत कर भी पांच साल सत्ता में टिक नहीं पाई। और तो और महाविकास अघाड़ी के दो प्रमुख दल रहे शिवसेना और एनसीपी में भी दो फाड़ हो गया। जिसका फायदा हुआ एनडीए खेमे को और उसने महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार खड़ी कर ली थी। महाराष्ट्र की जनता ये पूरी सियासी-पिक्चर देखती रही, अब उसके सीने में क्या सुलग रहा है, वो उसके जनादेश से साफ हो ही जाएगा। लेकिन इस बार के समीकरण क्या कहते हैं और अबकि बार महाराष्ट्र विधानसभा में किस खेमे की सरकार का झंडा बुलंद करने जा रहे हैं, इसे समझते हैं।
महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए बुधवार को मतदान होगा। इस चुनाव में जहां सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन सत्ता बरकरार रखने की कोशिश कर रहा है। वहीं विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को सत्ता में शानदार वापसी की उम्मीद है। महाराष्ट्र विधानसभा की सभी 288 सीट पर मतदान सुबह सात बजे शुरू होगा और शाम छह बजे समाप्त होगा। वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कई केंद्रीय मंत्रियों जैसे प्रमुख नेताओं ने अपने अपने उम्मीदवारों के लिए राज्य में प्रचार किया।
महायुति ने लगाया है जोर
सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अलावा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना और उपमुख्यमंत्री अजित पवार नीत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) घटक हैं। गठबंधन को महिलाओं के लिए शुरू की गई ‘माझी लाडकी बहिण’ जैसी अपनी लोकप्रिय योजनाओं की बदौलत सत्ता में बने रहने की उम्मीद है। बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान प्रमुखता से बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं जैसे नारे लगाए। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि महायुति इन नारों के जरिये धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है।
चुनाव प्रचार में क्या रहा खास?
कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के घटक वाले महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे और प्रधानमंत्री मोदी के एक है तो सेफ हैं नारे की आलोचना की। बीजेपी के सभी सहयोगी दलों ने इन नारों का समर्थन नहीं किया। अजित पवार ने खुद को इनसे अलग कर लिया। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नारों का मतलब स्पष्ट करने का प्रयास किया, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। एमवीए गठबंधन ने जाति आधारित गणना, सामाजिक न्याय और संविधान की रक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रचार का मुकाबला किया। विपक्ष का लक्ष्य उन मतदाताओं से अपील करना था जो सरकार द्वारा उपेक्षित महसूस करते थे।