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अग्निवीर अमृतपाल को शहीद का दर्जा क्यों नहीं…. सियासत और सड़क दोनों गरम

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नई दिल्ली। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज देश के पहले अग्निवीर शहीद अमृतपाल सिंह के घर जाकर उनके माता-पिता के साथ मुलाक़ात की है और उन्हें 1 करोड़ रुपये, परिवार में एक सदस्य के लिए सरकारी नौकरी और सैनिक की याद में स्मारक एवं खेल स्टेडियम के निर्माण का वादा किया है।

संवाददाताओं के साथ अपनी बातचीत में भगवंत मान का स्पष्ट कहना था कि केंद्र सरकार को अग्निवीर योजना के तहत सेना में शामिल सभी जवानों को स्थायी सैनिक के तौर पर समायोजित करना चाहिए। अग्निवीर स्कीम के तहत फ़ौज में भर्ती सैनिकों के शहीद होने पर सेना द्वारा गार्ड ऑफ़ ऑनर नहीं दिया जाता है तो यह शहीदों का अपमान है।

मान ने अपने बयान में कहा, “आप कैसे एक शहीद की शहादत को सलामी देंगे और दूसरे शहीद को शहीद नहीं मानेंगे? इस दोहरी नीति से देश की रक्षा कैसे हो सकती है? मैं पंजाब विधानसभा सत्र (20-21 अक्टूबर) के तत्काल बाद दिल्ली जाकर रक्षा मंत्री और गृहमंत्री के सामने इस मामले को उठाऊंगा।”

सेना द्वारा ख़ुदकुशी की बात पर मुख्यमंत्री भगवंत मान का तर्क था, “जो जवान फ़ौज में जाने का जिगरा रखता है, वो कभी ख़ुदकुशी नहीं कर सकता। ख़ुदकुशी कायरों का काम है। अब फ़ौज बहाने बना रही है। अमृतपाल 7 बहनों का भाई था, उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी थी।”

उन्होंने 4 वर्ष की अग्निवीर योजना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि अगर जवानों के प्रति यही रवैया रहता है तो अग्निवीर योजना को बंद कर देना चाहिए। या तो उन्हें रेगुलर किया जाये, या उन्हें निकाल दिया जाए।

क्यों नहीं दी गई सलामी?

इस बारे में जानकारी मिल रही है कि सिंह के पार्थिव शरीर को एक जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) और चार अन्य रैंक के जवानों के साथ एक एम्बुलेंस में उनके गृह नगर ले जाया गया। सेना के जवान भी सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। सेना का कहना है कि मौत का कारण खुद को पहुंचाई गई चोट पाए जाने के मद्देनजर, मौजूदा नीति के अनुसार कोई सलामी गारद नहीं दी गई या सैन्य अंत्येष्टि नहीं की गई।

बता दें कि हाल ही में सेना में भर्ती हुए अग्निवीर अमृतपाल सिंह की मृत्यु 11 अक्टूबर 2023 को कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान हुई। सेना की अग्रिम चौकी पर मृत पाए गये अमृतपाल के शरीर पर गोली लगने का जख्म मिला।

सेना की जम्मू स्थित व्हाइट नाइट कमान ने एक्स पर लिखा, “एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में अग्निवीर अमृतपाल सिंह की राजौरी सेक्टर में संतरी ड्यूटी के दौरान खुद को मारी गई गोली से मौत हो गई। अधिक जानकारी का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी जारी है। सशस्त्र बल अग्निपथ योजना के कार्यान्वयन से पहले या बाद में शामिल हुए सैनिकों के बीच हकदार लाभ और प्रोटोकॉल के संबंध में अंतर नहीं करते हैं।”

सेना में आत्महत्या या खुद से चोट लगने की स्थिति का खुलासा करते हुए पोस्ट में आगे लिखा गया है, “आत्महत्या/स्वयं को लगी चोट के कारण होने वाली मृत्यु की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं, फ़ौज में भर्ती के प्रकार की परवाह किए बिना सशस्त्र बलों द्वारा परिवार के साथ गहरी सहानुभूति के साथ-साथ उचित सम्मान देने की परंपरा है। हालांकि, ऐसे मामले प्रचलित 1967 के मौजूदा सेना आदेश के मुताबिक सैन्य अंत्येष्टि के हकदार नहीं हैं।”

पोस्ट में आगे कहा गया है कि “इस विषय पर बिना किसी भेदभाव के नीति का सतत पालन किया जा रहा है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2001 के बाद से 100 से 140 सैनिकों के बीच औसत वार्षिक क्षति हुई है, जिसमें आत्महत्याएं/स्वयं को लगी चोटों के कारण मौतें हुईं, और ऐसे मामलों में सैन्य अंत्येष्टि की अनुमति नहीं दी जाती है। पात्रता के अनुसार वित्तीय सहायता/राहत के वितरण को उचित प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें अंत्येष्टि के संचालन के लिए तत्काल वित्तीय राहत भी शामिल है।”

पोस्ट में आगे लिखा है, “क्षति की ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं परिवार और एक बिरादरी के रूप में बलों पर भारी पड़ती हैं। ऐसे समय में, परिवार के सम्मान, गोपनीयता और प्रतिष्ठा को बनाए रखना और दुख की घड़ी में उनके साथ सहानुभूति रखना समाज के लिए महत्वपूर्ण और अनिवार्य है। सशस्त्र बल नीतियों और प्रोटोकॉल के पालन के लिए जाने जाते हैं और पहले की तरह ऐसा करना जारी रखेंगे। भारतीय सेना अपने स्थापित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए समाज के सभी वर्गों से समर्थन का अनुरोध करती है।”

Unfortunate Death of Agniveer Amritpal Singh on 11 Oct 2023. There has been some misunderstanding and misrepresentation of facts related to unfortunate death of Agniveer Amritpal Singh. Further to the initial information given out by White Knight Corps on 14 Oct 2023, following additional details are shared to clear the perspective. It is a grave loss to the family and the Indian Army that Agniveer Amritpal Singh committed suicide by shooting himself while on sentry duty. In consonance with the existing practice, the mortal remains, after conduct of medico – legal procedures, were transported under Army arrangements alongwith an escort party to the native place for the last rites. Armed Forces do not differentiate between the soldiers who joined prior to or after implementation of the Agnipath Scheme as regards entitled benefits and protocols. Unfortunate instances of death arising out of suicide/ self inflicted injury, irrespective of the type of entry, are accorded due respect by the Armed Forces along with deep and enduring empathy with the family. Such cases, however, are not entitled Military Funerals as per the extant Army Order of 1967, in vogue. Policy on the subject has been consistently followed ever since, without any discrimination. As per data held, there has been an average yearly loss ranging between 100 – 140 soldiers since 2001 where deaths occurred due to suicides / self inflicted injuries, and Military Funeral in such cases was not accorded. The disbursement of financial assistance / relief, as per entitlement, is given due priority including immediate financial relief for conduct of funerals. Such unfortunate instances of loss bear heavy on the family and the Forces as a fraternity. During such times, it is important and incumbent on the society to uphold the respect, privacy and dignity of the family while empathising with them in their moment of grief. Armed Forces are known for adherence to the policies and protocols and will continue to do so as hithertofore. The Indian Army requests support of all sections of the society while it follows its established protocols. #IndianArmy

शहीद सैनिक को पूरे सम्मान के साथ विदाई की मांग

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने X पर अपनी पोस्ट में लिखा है, “पंजाब के अग्निवीर शहीद अमृतपाल सिंह के पार्थिव शरीर को न तो सैन्य-सम्मान मिला न राजकीय-सम्मान। ये एक त्रुटिपूर्ण सैन्य-भर्ती का दुष्परिणाम है। सैनिकों को उनका यथोचित सम्मान हर दशा-अवस्था में मिलना ही चाहिए। हम इस शहादत को शत-शत नमन करते हैं। हम अग्निवीर योजना के अपने विरोध को पुनः रेखांकित करते हैं और परम्परागत भर्ती की पुनर्बहाली की मांग उठाते हैं। देश की सुरक्षा व देश के युवा के भविष्य के साथ हमें कोई भी समझौता मंज़ूर नहीं। जय हिंद!”

सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा है- पंजाब के 19 वर्षीय अमृतपाल सिंह 10 दिसंबर 2022 को ‘अग्निवीर’ बने थे। 11 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर में गोली लगने से शहीद हो गए। जवान का पार्थिव शरीर सेना के वाहन की बजाय एंबुलेंस में आया। गार्ड ऑफ ऑनर भी सेना की टुकड़ी ने नहीं दिया। ये शहीद का अपमान है।

एक अन्य X यूजर विनोद नरूला लिखते हैं, “अग्निवीर योजना के तहत सेना में भर्ती हुए पंजाब के मानसा जिले स्थित गांव कोटली कलां के जवान अमृतपाल सिंह की जम्मू-कश्मीर में शहादत हो गई। पर भारतीय सेना ने बिना तिरंगा दिए उसका शव परिवार के पास भेज दिया। सेना ने उसे अंतिम सलामी तक नहीं दी।”

भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव अभय सिंह चौटाला ने एक वीडियो जारी करते हुए X पर अपनी पोस्ट में लिखा है, “हम शुरू से कहते आ रहे हैं कि अग्निवीर योजना देश के जवानों के साथ अन्याय है। देश के पहले अग्निवीर जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, उन्हें कोई सैन्य सम्मान नहीं मिला, कोई सेना की औपचारिकता नहीं हुई। सेना की जगह पंजाब पुलिस के जवान वहां आए थे वो भी ग्रामीणों के अनुरोध पर, यहां तक कि उनके पार्थिव शरीर को भी निजी एंबुलेंस में लाया गया।”

अभय चौटाला ने आगे लिखा, “जिस देश में एक शहीद को पीढ़ियों तक याद किया जाता था वहां ऐसा होना निंदनीय है। इसे किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। केन्द्र सरकार यह स्पष्ट करे कि अग्निवीरों को सेवाकाल के दौरान पूर्ण रूप से एक सैनिक का दर्जा और सम्मान मिलेगा या नहीं। अगर मिलेगा, तो शहीद अमृतपाल सिंह की शहादत का अपमान क्यों किया गया, इसकी माफ़ी मांगी जाए।”

सेना द्वारा खुद को गोली मारे जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। एक यूजर ने सवाल किया है, “क्या कोर्ट ऑफ इंक्वायरी इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी है कि सैनिक ने खुद को गोली मारी थी? यदि हां, तो वे कौन से कारण थे जिनके कारण यह घटना हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार था, क्योंकि रिपोर्टों के अनुसार वे अपने घरेलू मोर्चे पर बेहद खुश थे? और यदि कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी ने अभी तक निष्कर्ष नहीं निकाला है तो आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच गए कि यह आत्महत्या थी?”

एक अन्य पोस्ट में सेना के जवाब में हर वर्ष 100-140 आत्महत्याओं पर सवाल पूछा गया है, “अगर हर साल 100-140 आत्महत्याएं हो रही हैं, तो क्या यह आपके लिए चिंताजनक नहीं है? क्या ये इंसान नहीं हैं। क्या आपको नहीं लगता कि सेना के भीतर वाकई कुछ गलत हो रहा है?”

ड्यूटी पर जान गंवाने वाले सैनिक को सम्मान क्यों नहीं?

एक अन्य मौके पर 15 अक्टूबर को पंजाब के मुख्यमंत्री ने हाल ही में 10 पर्वतारोही सैनिकों के बर्फ के तूफ़ान में फंसने की वजह से उनमें से 7 जवानों की मौत पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि क्या ये लोग तफरीह के लिए गए थे, या अपनी ड्यूटी पर थे। और यदि ड्यूटी पर किसी जवान की मौत हो जाती है, या उन्हें -40 डिग्री तापमान में ड्यूटी करने के कारण उच्च रक्तचाप, हृदयाघात या ब्रेन हेमरेज का शिकार होना पड़ता है तो उनके लिए शहादत और गार्ड ऑफ़ ऑनर नहीं होना चाहिए?

पंजाब सरकार ने 1 करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि की नीति बनाई है। अगर कोई -40 डिग्री पर दिल का दौरा पड़ने से मर जाता है, तो भी उसे शहीद माना जाना चाहिए क्योंकि वह वहां देश की सेवा कर रहे हैं। जरूरी नहीं कि दुश्मन की गोली से उनकी जान चली जाए। हम इसके लिए अग्निवीर योजना का भी विरोध करते हैं।

एक अन्य ट्वीट में भगवंत मान के वीडियो को साझा करते हुए कर्नल अमित कुमार ने लिखा है, “वे जो बताना चाह रहे हैं उसका एक मतलब है। कृपया कोई इसे इशू न बनाए, बल्कि पुनर्विचार करे। ड्यूटी के दौरान मरने वाले किसी भी व्यक्ति के अंतिम संस्कार पर सैन्य सम्मान की तुलना करने से बहादुर दिलों की बहादुरी या शहादत कम नहीं हो जाती है, बल्कि यह एक प्रकार से उस परिवार को सम्मान देता है जो इस सम्मान का गवाह बनता है।”

उन्होंने आगे लिखा, “पॉलिसी बदलने में कोई बुराई नहीं है। युद्ध में हताहत मानी जाने वाली चोट के प्रकार और तरीके में कई बार खामियां निकलती हैं। लकीर का फकीर रवैया संगठन को बर्बाद कर सकता है। इस बात पर विचार करें कि हमारे जवान अपने मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंधों की वजह से किस प्रकार के तनाव एवं दबाव का सामना करते हैं। वे इसके हकदार हैं। समस्या यह है कि हममें से कुछ लोग हैं जो नकारात्मक धारणाओं के साथ शुरुआत करते हैं। कम से कम, हम उस दुःख की घड़ी में मृतक के परिवार को उनकी सेवाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित कर सकते हैं।”

भारतीय सेना के सामने अनुत्तरित प्रश्नों का जखीरा बढ़ता जा रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में सेना में भर्ती, सेनाध्यक्ष पद पर नियुक्ति से लेकर नवीनतम सूचना के अनुसार सेना के सैकड़ों प्रमुख स्थानों पर सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने का नया फरमान आया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ सेल्फी को साझा किया जाना है।

अभी कुछ दिन पहले सूचना थी कि सेना में उच्च पदों पर हजारों की संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। सेना के पास देश की सीमाओं के साथ-साथ आंतरिक मामलों पर भी दायित्व निर्वहन की जिम्मेदारी है। ऐसे में एक सेना में दो श्रेणी के सैनिकों को संभालने की जिम्मेदारी, जिनमें अस्थायी सैनिकों के लिए सेवा शर्तों में अलग नियम का पालन कराना कहीं न कहीं मनोबल को कम करना है।

यह कमांड लीडर की अपरिहार्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है, जिससे उसकी नेतृत्वकारी क्षमता के प्रभावित होने का संकट बढ़ जाता है। अग्निवीर अभी भर्ती होने शुरू हुए हैं, और यह पहली मौत है। केंद्र सरकार की अदूरदर्शी नीति के चलते जल्द ही यह प्रश्न बड़े पैमाने पर लाखों सैनिकों के परिवारों और देश को प्रभावित कर सकता है। इस पर तत्काल पुनर्विचार की जरूरत है।    

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