ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से शिवलिंग निकलने के बाद काशी फोकस में है। देश के हर चौक-चौराहे पर लोगों की जुबान पर सिर्फ एक मसला है- ज्ञानवापी। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख भी सामने आ गया है। यह निचली अदालत से मिलता-जुलता ही है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी मस्जिद के उस हिस्से को संरक्षित करने का आदेश दिया है जहां से शिवलिंग निकलने का दावा हुआ है। इससे शिवभक्तों का जोश हाई है। घर-घर में हर-हर महादेव की लहर है। हालांकि, पूरे मामले में एक बात गौर करने वाली है। विपक्ष ने चुप्पी साध रखी है। कोई खुलकर सामने नहीं आया है। मैदान में सिर्फ ओवैसी (Asaduddin Owaisi) जैसे मुस्लिम नेता विरोध में उतरे हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) जैसे विपक्षी दल ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर सूम बन गए हैं। मामले में बार-बार अयोध्या (Ayodhya) का जिक्र भी आ रहा है। राम पर तो यही विपक्ष बोलता था फिर शिव पर खामोशी क्यों है?
शिव की लोकप्रियता राम से बड़ी
शिव के मुद्दे पर विपक्ष की चुप्पी यूं ही नहीं है। इसके पीछे शिव की लोकप्रियता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि शिव की लोकप्रियता का दायरा राम से कहीं ज्यादा बड़ा है। विपक्ष राम को लेकर बयानबाजी करने की हिम्मत जुटा लेता था। मसलन, उन्हें अयोध्या का राजा बताया गया तो कई ने उनके विष्णु अवतार होने पर सवाल उठाया। लेकिन, शिव के संदर्भ में ये बातें न सोची जा सकती हैं न कहीं जा सकती हैं। शिव त्रिदेवों में शामिल हैं। उन्हें त्रिदेवों में सृष्टि का संहारक माना जाता है। काल भी उनसे खौफ खाता है।
यह भी समझना होगा कि राम को पुरुषोत्तम यानी पुरुषों में सबसे उत्तम माना गया है। उन्होंने अपने श्रेष्ठ चरित्र से मानव को जीने की राह दिखाई। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उनकी लोकप्रियता उत्तर भारत में ही ज्यादा है। रामचरितमानस अवधी में लिखी गई, जिसने उत्तर भारत के घर-घर में राम नाम को पहुंचा दिया। कह सकते हैं कि राम का प्रभाव इसी क्षेत्र में ज्यादा है। वहीं, शिव सूत्र में पूरा देश बंधा है। दक्षिण भारत में राम शिव जितना लोकप्रिय नहीं हैं। दक्षिण भारत में शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां शिव मंदिर नहीं मिले। देश के हर हिस्से में शिवभक्तों की भरमार है। पर्वतों से लेकर मैदानों तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक शिव लोगों में रचे बसे हैं। ऐसे में विपक्ष भूलकर भी इस मुद्दे पर नहीं बोलना चाहता है। डर है कि कहीं शिव पर बोलकर उनकी राजनीति ही भस्म न हो जाए।
मुसलमानों की हठधर्मिता ने हिंदुओं का धैर्य तोड़ा
हिंदू पक्ष कह रहा है कि मुसलमान अगर शिवलिंग की जगह पर हाथ-पांव धो सकता है, कुल्ला कर सकता है तो फिर गंगा-जमुनी तहजीब सिर्फ धोखेबाजी है या फिर इसे ढोने की जिम्मेदारी एकतरफा हिंदुओं पर डाल दी गई है। वह इस बात से बहुत ज्यादा खफा है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जिस जगह से शिवलिंग निकलने का दावा हुआ है वहां वजूखाना बना था। यह वो जगह होती है जहां मुसलमान इबादत से पहले हाथ-पांव धुलते हैं। हिंदुओं का एक वर्ग इस बात से बहुत ज्यादा नाखुश है। उसका मानना है कि यह बात समझ के परे है कि सालों से इस बात का पता होते हुए भी कि वहां भगवान शिव मौजूद हैं उनका तिरस्कार किया जाता रहा। हिंदू पक्षकारों का कहना है कि जैसे ही वजूखाने का पानी खाली कराया गया वहां शिव की आकृति जैसा कुछ मिला।
बीते चार दशकों में पूरी तरह से बदल गई है राजनीति
अयोध्या आंदोलन के वक्त और आज के दौर की राजनीति बिल्कुल अलग है। हिंदू वोटबैंक लगातार कंसोलिडेट हो रहा है। चुनाव में बार-बार बीजेपी की जीत के पीछे यह बड़ा फैक्टर है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हिंदुओं की आक्रामक राजनीति करती आई है। हिंदुओं के मसले पर वह मुखरता से बोलती है। यह मुखरता हिंदुओं को और किसी दल में नहीं दिखती है। सपा, बसपा और कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की पॉलिटिक्स करते रहे हैं।
हालांकि, मुस्लिमों के मसले पर बोलकर इन्होंने हिंदू वोटबैंक को खुद से दूर भी किया है। ज्ञानवापी मस्जिद में शिव के प्रकट होने के मुद्दे पर बोलने का अंजाम ये पार्टियां जानती हैं। हिंदुओं को पता है आज वो एकजुट होकर किसी को भी हरा सकते हैं। चार दशक पहले तक यह बात नहीं थी। तब हिंदू वोटबैंक काफी कुछ बंटा हुआ था। यह तमाम तरह के समीकरणों को बनाने की इजाजत देता था। उसमें मुस्लिम वोट बैंक का छौंक लग जाने से खिचड़ी आसानी से बन जाती थी। अब सीन पूरी तरह से बदल गया है।
केवल मुस्लिम नेता हैं मुखर
जिस दिन से ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण की बात सामने आई है तब से इसके खिलाफ सिर्फ मुस्लिम नेताओं के ही बयान आए हैं। उनमें भी सबसे मुखर आवाज ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी की रही है। वह बार-बार सर्वे से आहत होने की बात कहते रहे हैं। साथ ही 1991 के वर्शिप ऐक्ट का हवाला देते रहे हैं। वहीं, सपा हो या बसपा कांग्रेस हो या टीएमसी ज्यादातर ने इस मामले में चुप रहने में ही अभी तक भलाई समझी है।