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रीट पेपर आउट प्रकरण में शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष डीपी जारौली का मुंह बंद क्यों कराया?

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एस पी मित्तल, अजमेर

राजस्थान में कांग्रेस के चार वर्ष के 16 बार भर्ती परीक्षाओं के पेपर आउट हुए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं कि पेपर आउट करने वालों को पकड़ा गया है। गहलोत का कहना है कि भाजपा शासित राज्यों में भी पेपर आउट होते हैं, लेकिन वहां आरोपियों के खिलाफ राजस्थान जैसी प्रभावी कार्यवाही नहीं होती है। गहलोत के दावे में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा, लेकिन अभी हकीकत यह है कि रीट परीक्षा के पेपर आउट मामले में यदि शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष डीपी जारौली का मुंह बंद नहीं करवाया जाता तो पेपर आउट गिरोह को संरक्षण देने वालों को पकड़ लिया जाता। सब जानते हैं कि रीट का पेपर आउट होने के बाद अजमेर स्थित माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारौली को बर्खास्त कर दिया गया। अपनी बर्खास्तगी पर जारौली ने कहा था कि रीट पेपर के प्रकरण में राजनीतिक संरक्षण की भी जांच होनी चाहिए। जारौली का इशारा गहलोत सरकार के एक मंत्री के दखल की ओर था। लेकिन तब जारौली का मुंह बंद करवा दिया और फिर जारौली को क्लीन चिट भी दे दी गई। लेकिन जांच तक भी यह पता नहीं चला कि जयपुर के शिक्षा संकुल में बनाए गए स्ट्रॉंग रूप (रीट के पेपर रखने का स्थान) में गड़बडिय़ां किसने करवाई। रीट का पेपर इसी स्ट्राँग रूम से बाहर निकला था। तब जांच में यह सामने आया कि प्रदेश भर में रीट के पेपर सरकारी ट्रेजरी में रखे गए, लेकिन जयपुर में ट्रेजरी के स्थान पर शिक्षा संकुल में रखे गए। इतना ही नहीं जयपुर में रीट परीक्षा का समन्वयक भी गैर सरकारी व्यक्तियों को बना दिया। कुछ लोग तो कोचिंग कारोबार से जुड़े थे। जांच में यह भी सामने आया कि सुभाष गर्ग (अभी राज्यमंत्री) जब शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष थे, तब हुई रीट परीक्षा में जिस कम्प्यूटर फर्म और प्रिंटिंग प्रेस को काम दिया उन्हीं फार्मों को फिर से काम दे दिया गया। रीट परीक्षा की जिम्मेदारी राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े कॉलेज व्याख्याताओं को दी गई। यानी रीट परीक्षा की तैयारियां पूरी तरह राजनीतिक शिकंजे में थीं। लेकिन जांच में असली गुनाहगारों को बचाया गया। तब यदि असली गुनहगारों पर कार्यवाही हो जाती तो पुलिस कांस्टेबल, सैकंड ग्रेड अध्यापक परीक्षा के प्रश्न पत्र आउट नहीं होते। सब जानते हैं कि गहलोत सरकार को बनाए खन में मंत्री सुभाष गर्ग की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सीएम गहलोत पेपर आउट प्रकरणों में आरोपियों को पकडऩे का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले चार वर्ष में एक भी आरोपी को सजा नहीं मिली है। गंभीर बात तो यह है कि बदमाश पुलिस कांस्टेबल परीक्षा के आरोपी रहे उन्होंने राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा जी जाने वाली सैकंड ग्रेड अध्यापक परीक्षा का पेपर आउट करवाया। यानी पेपर आउट करने वालों को कानून का कोई डर नहीं है। राज्यसभा के सांसद किरोडीलाल मीणा ने ही सबसे पहले बताया था कि रीट का पेपर जयपुर के शिक्षा संकुल से आउट हुआ है। इस बार मीणा ने ही सबसे पहले कहा है कि सैकंड ग्रेड अध्यापक भर्ती परीक्षा का सामान्य ज्ञान के प्रश्न अजमेर स्थित आयोग की गोपनीय शाखा से बाहर निकले हैं। यह सही है कि आयोग की गोपनीय शाखा में ही कई शिक्षाविदों से प्रश्न मंगाए जाते हैं और एक प्रश्न पत्र तैयार कर प्रिंटिंग प्रेस में भेजा जाता है। प्रश्न पत्र को तैयार करने का कार्य आयोग के अध्यक्ष की देखरेख में होता है। जालोर में किसी गिरोह या परीक्षार्थियों के पास प्रिंटिंग प्रेस वाला पेपर नहीं मिला है, जबकि आयोग में तैयार होने वाले प्रश्न प्राप्त हुए हैं। ये प्रश्न प्रिंटिंग प्रेस वाले पेपर के प्रश्नों से मिलते हैं। यानी आयोग में जो कार्मिक प्रश्नों को तैयार करते हैं उनका संबंध पेपर आउट गिरोह से है। इनमें कोचिंग सेंटरों के संचालक भी शामिल हैं। सामान्य ज्ञान का पेपर लीक होने के प्रकरण में आयोग अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। चूंकि पिछले प्रकरणों में जांच में खामियां रही, इसलिए अब विपक्ष सीबीआई की मांग कर रहा है। विपक्ष कितना भी हो हल्ला मचा ले, लेकिन सीएम गहलोत पेपर घोटालों की जांच सीबीआई से नहीं करवाएंगे। गहलोत की प्राथमिकता अपनी सरकार को बचाए रखने की है। वैसे भी राजनीतिक कारणों से गहलोत सीबीआई जांच की सिफारिश नहीं करेंगे। गहलोत तो पहले ही सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। गहलोत का मानना है कि उनके अधीन काम करने वाली जांच एजेंसियां तो निष्पक्ष है और केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी आदि जांच एजेंसियां स्वतंत्र नहीं है। 

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