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आजम ने नहीं खोले अपने पत्ते? सपा में उलझे समीकरणों ने बढ़ाया सस्पेंस

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जेल से बाहर आने पर आजम खां ने कई सवालों के जवाब दिए। पर कई मामलों में खामोशी ओढ़ना बेहतर समझा।  उनकी ओर से खुल कर जवाब आने के अनुमान लगाए जा रहे थे। वह साफगोई के लिए जाने भी जाते हैं। रामपुर पहुंच कर उन्होंने अपना दर्द भी जाहिर किया और कई तरह के इरादे भी जताए लेकिन उन्होंने शिवपाल यादव व अखिलेश यादव को लेकर कोई राय जाहिर नहीं की। शायद वह सपा में उलझे सियासी समीकरणों को समझने में और वक्त लेना चाहते हैं। 

शिवपाल काफी समय से उनके पक्ष में पैरवी कर रहे हैं लेकिन आजम खां ने सभी का एक साथ शुक्रिया अदा कर दिया। उन्होंने अपनी बातों से कहीं जाहिर नहीं होने दिया कि वह शिवपाल के करीबी हो गए हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तो आजम खां के करीबी लोग परोक्ष रूप से मदद न करने का आरोप लगा चुके हैं लेकिन आजम खां उस उपेक्षा के मुद्दे पर नहीं बोले जिसको लेकर सपा सवालों के घेरे में हैं।

अलबत्ता, आजम खां ने कुछ लोगों के धोखा देने की बात कही। राजनीतिक गलियारों में इसे आजम खां का सपा पर वार माना जा रहा है लेकिन साफ तौर पर आजम खां का इशारा उनकी ओर था, जिन्होंने अच्छी खासी रकम लेकर जमीन बेची और बाद में आजम खां पर मुकदमा कर दिया।

आजम खां ने नहीं खोले अपने पत्ते 

असल में अभी तक आजम खां सियासी राह के बारे में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उन्होंने यह  साफ नहीं किया कि वह अखिलेश के साथ हैं या शिवपाल के । यह भी साफ नहीं कि क्या वह अकेले हैं? क्या वह वास्तव में सपा व उनके अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज हैं। क्या वह कोई अलग मोर्चा बना सकते हैं। असल में आजम खां के लिए आगे की राह आसान नहीं है। अभी वह अंतरिम जमानत पर हैं। आगे के लिए सियासी राह तय करना तब तक मुश्किल होगा जब तक पूरी तरह से जेल से बाहर नहीं आ जाते हैं।

21 मई को अखिलेश की बैठक में शामिल होंगे आजम खां ?

विधानसभा सत्र से पहले अखिलेश यादव ने 21 मई को पार्टी कार्यालय में सभी विधायकों की बैठक बुलाई है। इसमें सभी विधायकों को शामिल होना अनिवार्य किया गया है। सपा के वरिष्ठ विधायक आजम खां इस बैठक में शामिल नहीं होते हैं तो इससे संदेश जाएगा कि वह सपा नेतृत्व से नाराज हैं। अभी आजम खां को विधायक की शपथ लेनी है। उसके बाद वह 23 मई से शुरू हो रहे विधानमंडल सत्र में शिरकत कर सकेंगे। वहां वह क्या बोलते हैं, किस पर तंज करते हैं सदन में सामने बैठी भाजपा सरकार होती उनके निशाने पर है या साथ बैठे अपने? इन सब पर सबकी निगाह होगी।   

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