Site icon अग्नि आलोक

 महिला आरक्षण :दूर के  ढोल सुहावने 

Share

                             –सुसंस्कृति परिहार

ये तो मानना ही पड़ेगा कि साहिब जी ने लुकाछिपी के बीच एक बड़ा खेला किया है।देश की सबसे कमज़ोर नस जिसका बड़ा हिस्सा धार्मिकपाखंड में ,आज़ादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी डूबा हुआ उसे एक ऐसा दिवा स्वप्न दिखा दिया है जिससे लगता है वे  भोली भाली महिलाएं चपेट में आ जाएंगी।ये एक ऐसा हथियार है जो नगरनिकायों से लेकर पंचायतों में पहले से मिल चुका है और अब महिलाएं इसे कम ही सही इस्तेमाल कर रही हैं।लगता है,पांच दिन का विशेष सत्र महिला आरक्षण के नाम ही रहेगा ऐसा लगता है।

क्योंकि जिस तरह का प्रारुप सामने आया है ऐसा तो कांग्रेस राज्यसभा में पहले पारित कर चुकी थी जिसमें एससी और एसटी को आरक्षण के अंदर आरक्षण की बात थी बात तो तब भी पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के आरक्षण पर अटकी थी आज भी यही सवाल फिर उठ खड़ा हुआ था।यह कांग्रेस का ही महिला आरक्षण बिल है वह इस पर भी आसानी से मुहर लगा देती किंतु यह इंडिया गठबंधन में दरार  पैदा कर देता इसलिए आज कांग्रेस भी पिछड़े वर्ग के महिला आरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है । कहने का आशय यह कि जैसा कि साहिब जी ने कहा कि प्रभु की इच्छा से ही यह नेक काम मेरे हाथों होना था हो सकता है बहुमत के कारण यह बिल दोनों सदन में पास भी हो जाए किंतु अमली जामा 128वां संशोधन विधेयक तभी पहन पाएगा जब देश की जनगणना होगी ।1973 के बात नया परिसीमन होगा।तब तक बहुत कुछ आया राम गया राम हो चुका होगा। उम्मीद की जा रही है कि यह सन् 2029 के आमचुनाव तक ही यह कानून का स्वरूप धारण कर पाएगा वह श्रेय किसे मिलेगा यह  आगत वक्त ही बताएगा।यह भी तभी संभव हो सकता है बशर्ते जनगणना जो 1921से लम्बित है 2026तक हो जाए।विशेष यह भी है कि इस बार जातिगत जनगणना पर खास जोर रहेगा।

मतलब यह है कि नारी शक्ति वंदन विधेयक की दूर के ढोल सुहावने जैसी स्थिति बन रही है।भारत सरकार और उनकी प्रदेश सरकारें इन दिनों महिलाओं पर केंद्रित बड़ी लोक-लुभावन चुनावी घोषणाएं कर उन्हें अपना कवच बनाने पर तुली हुई हैं।यह दूर की कौड़ी लगभग वैसी ही है जैसे पंद्रह लाख खाते में आना,दो करोड़ युवाओं को रोजगार देना या भ्रष्टचार रोकने लोकपाल बनाना वगैरह थीं।देश की आधी आबादी को लुभाने का यह तरीका उनके अनुसार फायदेमंद और ऐतिहासिक होगा। लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि यह उनको सफलता दिलाएगा क्योंकि यह मन मानकर जल्दबाजी में इसलिए किया जा रहा है ताकि अंदर से संघ और कट्टर भाजपाई मुखर ना हो पाएं।वे पहले से महिला विरोधी हैं।साहिब महिलाओं की पीड़ा भुनाना चाहते हैं।

महिलाओं को सोचना चाहिए कि महिलाओं को घर बैठकर रहने की बात कहने वाले लोग जिस तेजी से आज बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और उन्हें विशेष सुविधाओं की बात कर रहे हैंऔर क्यों ।अचानक महिला आरक्षण नारी वंदन कैसे सामने और क्यों सामने आ गया।याद करिए  विदेश में देश की शान बढ़ाने वाली महिला पहलवानों के साथ भाजपा सांसद की करतूतों पर इन्होंने कैसा मौन साधा।वे न्याय पाने। चीखती चिल्लाती  रहीं, यहां तक कि इन पहलवान लड़कियों को अश्रु भी बहाने पड़े। मणिपुर में डबल इंजन सरकार का महिलाओं के प्रति क्या व्यवहार रहा सबने देखा है। मध्यप्रदेश में महिला संविदा शिक्षकों को इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने अपने मुंडन भी कराए ।देश की बहू सोनिया गांधी और बेटी उमाभारती की स्थिति इनकी नज़र में क्या है।ये हम देख ही रहे हैं।सुषमा स्वराज जैसी मेधावी नेत्री जो प्रधानमंत्री बनने की हैसियत रखती थीं उनका हश्र भी सबने देखा।आज सदन में भाजपा की जो नेत्रियां हैं वे इतनी कमज़ोर बना दी गई हैं कि सरकार के गलत निर्णयों पर या महिला अत्याचार पर भी अपनी जुबां खोल नहीं पाती हैं। चुनावी दौर में उनका सम्मान और महिला आरक्षण बिल को नारी वंदन नाम दे देने से उनकी भलाई नहीं होगी।जब तक हाथरस, उन्नाव,कश्मीर ,बेगुसराय ,, मणिपुर और देश की उन तमाम बेटियों के अपराधियों को सख्त सजा नहीं मिल जाती तथा सर्वाधिक  अत्याचार  पीड़िता बिल्किस बानों के अपराधी ताजिंदगी के लिए फिर जेल नहीं जाते तथा पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारे पनाहगाहों से निकालकर जेल नहीं पहुंचाए जाते।तभी नारी वंदन कहलाएगा और भारत माता की जय होगी।इस नारी वंदन में प्रमिला दंडवते,गीता मुखर्जी सहित हजारों हजार महिलाओं का वंदन भी ज़रुरी है जिन्होंने अपने आंदोलनों के ज़रिए महिला आरक्षण को ज़िंदा रखा और इसकी बुनियाद रखी।

पिछले  दिनों पुराने संसद भवन से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल जी और उनके परिवार जनों का स्मरण किया गया तो आश्चर्य  हुआ कैसे कैसे लोग होते हैं नेहरू जी और उनके परिवार को जितना जलील अब तक इन्होंने किया गया है उससे देश वासियों के दिलों के नासूर ठीक नहीं हो सकते। राष्ट्र पिता बापू को उन्होने नहीं छोड़ा उनके हत्यारे  की पूजा की।जी 20 में आए मेहमानों को मजबूरन राजघाट ले जाते हैं ।यह गिरगिट रंग पहचानने की ज़रुरत है। अब महिलाओं को पिछले दस सालों से सताने के बाद आरक्षण और सहूलियत से फुसलाकर वोट हथियाना उतना आसान नहीं।वह सजग हो रही है झूठ और सच को पहचानने लगी है।अवाम को सावधान करते हुए मुनव्वर राणा लिखते हैं – 

हुकूमत इस तरह जनता पे, ऐहसान करती है

कि आंखें छीन लेती है और चश्मा दान करती है।

।आमीन।

Exit mobile version