युद्ध विरोधी दिवस पर अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन द्वारा चर्चा आयोजित
युद्ध मानवजाति के लिए केवल विनाश लेकर आता है, यह किसी के लिए भी हितकारी नहीं। संसाधनों पर वर्चस्व और मुनाफ़े की हवस के साम्राज्यवादी मंसूबे हमेशा से विश्व में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और मानवता के लिए खतरा रहे हैं। शस्त्रों की सौदागर ताकतें अपने स्वार्थ के लिए तनाव और युद्धों को बढ़ावा देती हैं। सतत समावेशी मानव विकास हेतु विश्व शांति अपरिहार्य है। यह बात 1 सितंबर- युद्ध विरोधी दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन, इंदौर जिला इकाई द्वारा आयोजित चर्चा में विभिन्न वक्ताओं ने कही।
चर्चा में भाग लेते हुए एप्सो के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि युद्धों को प्रोत्साहित करने वाले पूँजीवादी देश भी जब उनके आर्थिक हितों पर युद्ध का विपरीत असर होने लगता है तो शांति का नारा लगाते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवाद एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था चाहता है और दुनिया के पिछड़े हुए कमजोर देशों पर यह कहकर हमले करता है कि वह वहां प्रजातंत्र स्थापित करना चाहता है। इराक और अफगानिस्तान की बर्बादी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं जहां पर्याप्त आर्थिक संसाधन होने के बावजूद जनता को बेतहाशा संकट झेलने पड़े हैं । रुस और यूक्रेन के मध्य जारी युद्ध का ज़िक्र करते हुए उनने कहा कि युक्रेन में स्थित जपोरिशिश्या परमाणु संयंत्र विश्व के दस सबसे बड़े परमाणु संयंत्रों में से एक है और यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र है। अगर युद्ध की कोई चिंगारी इस परमाणु संयंत्र तक पहुँची तो परमाणु विकिरण से होने वाली तबाही का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। रूस और युक्रेन दोनों देशों की सरकारों पर यह अन्तरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाना चाहिए कि परमाणु संयंत्रों के इर्दगिर्द किसी तरह की सैन्य कार्यवाही न हो।
गांधीवादी विचारक और वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी ने कहा कि पिछले 20 -25 सालों में दुनिया बहुत बदल गई। युद्ध जनित विनाश और विध्वंस के स्थापित आर्थिक और राजनीतिक परिणामों के अलावा भी नये- नये दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। रूस -यूक्रेन युद्ध के कारण वहां मेडिकल शिक्षा के लिए गए साधारण परिवारों के 20 से 25 हजार विध्यार्थी पढ़ाई अधूरी छोड़कर सुरक्षित भारत तो आ गए लेकिन अब उनका भविष्य अधर में लटक गया। निशस्त्रीकरण तो चाहिए ही लेकिन देश में विचारों से लेकर हर क्षेत्र में आंतरिक युद्ध चल रहा है वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है।हमें इस आंतरिक संघर्ष के लिए युद्ध स्तर पर जनता के बीच जाना होगा।
ज़िला इकाई के उपाध्यक्ष विजय दलाल ने कहा कि प्रथम महायुद्ध से लेकर जितने भी युद्ध हुए सभी के मुख्य कारण आर्थिक, खासतौर से साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपने बाजार विस्तार की भूख व वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण शस्त्रों का व्यापार रहा है। इसलिए वो हमेशा दुनिया में तनाव चाहते हैं और हरेक देश द्वारा अपने बजट का सेनाओं पर अधिक से अधिक खर्च हो यह चाहते हैं ताकि हथियारों की मांग बनी रहे और उनकी खपत होती रहे। यह दुनिया बगैर युद्धों के होती तो आज इस दुनिया में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं सोता।सोवियत रूस के बिखराव का एक बहुत बड़ा कारण अमेरिका से शस्त्रों और स्पेस की प्रतिस्पर्धा में होने वाला बजट का बड़ा हिस्सा जो उस देश की आबादी के विकास पर खर्च होना था व्यर्थ जाना था।
ज़िला सचिव कैलाश लिम्बोदिया ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध साम्राज्यवादी अमेरिका और नाटो समूह द्वारा थोपा गया है। इस युद्ध से रुस और चीन को कमजोर करने के मंसूबे थे मगर अमेरिका उसमें कामयाब नही हो सका।
चर्चा उपरांत यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया कि रुस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को जल्द से जल्द संवाद के माध्यम से समाप्त करना चाहिए ताकि मानवता का और अधिक नुकसान न हो।
चर्चा में सोशलिस्ट पार्टी के रामस्वरूप मंत्री, किसान मोर्चा के अरुण चौहान, सीटू के भगीरथ कछवाय, महिला फ़ेडरेशन की सारिका श्रीवास्तव , प्रलेस के केसरी सिंह चिडार, वित्त निगम के सुनील चंद्रन , एमपीबीईए के मोहन कृष्ण शुक्ला , बी एस सोलंकी, योगेन्द्र महावर, एटक के भारत सिंह ठाकुर , दिलीप कौल सहित बड़ी संख्या में सदस्य उपस्थित थे ।
संचालन रूद्रपाल यादव ने किया और आभार प्रदर्शन विवेक मेहता ने किया ।
-अरविंद पोरवाल,
महासचिव,
अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन