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लेखकों और बुद्धिजीवियों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र

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नई दिल्ली। यूपी के बुद्धिजीवियों, लेखकों, एक्टिविस्टों और संस्कृतिकर्मियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उनसे देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और इन घटनाओं में होने वाली असमानतापूर्ण कार्यवाही पर चिंता जाहिर की है।

पत्र में देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई हिंसा और उसमें प्रशासन द्वारा बरती गयी लापरवाहियों का जिक्र किया गया है। ऐसी घटनाओं का तो खासकर जिक्र है जहां राजनीतिक हस्तक्षेप और सत्ता की पहुंच के चलते पीड़िता को न्याय नहीं मिला। और अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। या फिर कानूनी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गयी। 

पत्र में कहा गया है कि हम देश के नागरिक निम्नलिखित बातें आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं और आशा करते हैं कि आप इन बिंदुओं पर ध्यान देते हुये निष्पक्ष, सुरक्षित तथा संवेदनशील समाज बनाने हेतु समुचित कार्यवाही करेंगी।  

  1. इधर कुछ वर्षों में हर तरह की हिंसा, ख़ासकर महिलाओं पर, बेतहाशा बढ़ी है। हिंसा के इस आलम में यौनिक हिंसा की बढ़ोतरी और उसमें होने वाली दरिंदगी विचलित करने वाली है।
  2. इस दरिंदगी की शिकार 2 साल की बच्चियों से लेकर 70-80 साल तक की बूढ़ी महिलायें हैं। ये दिखाता है कि हमारा समाज गम्भीर रूप से बीमार हो रहा है। ये बीमारी तेज़ी से बढ़ेगी अगर इस मुद्दे पर धार्मिक, जातीय  और क्षेत्रीय राजनीति के दख़ल को रोका न गया।
  3. इन घटनाओं में शासन, प्रशासन और पुलिस के रवैये में ढीलापन बढ़ा है। ऐसा लगता है कि बहुत जल्दी ही इस तरह की घटनायें समाज को नॉर्मल लगने लगेंगी और इसलिये स्वीकृत होने लगेंगी।
  4. ज़्यादा अफ़सोस की बात ये कि सरकार और पुलिस के रवैये में ढिलाई ही नहीं, पक्षपात भी मिलता है। ये पक्षपात अपने आप में जुर्म है। 
  5. पक्षपात और ढीलापन दोनों ही अपराधियों के हौसले बुलन्द करके हिंसा को बढ़ाने में मदद करते हैं। बड़ी संख्या में बलात्कार-क़त्ल जैसे भयंकर अपराधों में “पहुँच” वाले अपराधी और अभियुक्त बड़ी आसानी से, और बार बार, पैरोल या फ़रलो पर या ज़मानत पर छोड़ दिये जाते हैं। इनका सत्तासीन पार्टियों से नाता छिपा नहीं होता। यथा :
    • बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के बलात्कार काण्ड के तीनों अभियुक्त मध्य प्रदेश में एक पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय थे जिसके कारण कई महीनों तक उनकी गिरफ़्तारी नहीं हो सकी, और अभी फिर एक प्रान्त में चुनाव से पहले उन्हें ज़मानत दी गयी है। उनके लिये आज़ाद घूमना आसान कर दिया गया जबकि इस मामले में दोषियों की पहचान करने और गिरफ़्तार करने की माँग उठाने वाले विद्यार्थियों पर हुक्मरान ने शान्ति भंग अपराध का आरोप लगाया है।
    • सज़ायाफ़्ता अपराधी राम रहीम कई बार लम्बे पैरोल पर छोड़ा गया है, मुख्य रूप से किसी न किसी चुनाव के पहले। चन्द दिनों पहले वो और आसाराम फिर छोड़े गये हैं।
    • गुजरात की बिलकीस बानो के गैंग रेपिस्ट और हत्यारे बार बार अत्यंत मामूली कारणों के बहाने छोड़े जाते रहे और जब उनकी सज़ा बीच में ही माफ़ करके छोड़े गये तो रूलिंग पार्टी के कुछ प्रभावशील लोगों ने उनका स्वागत मालाओं, मिठाई और आरती से किया। यानी, समाज में संदेश दिया कि वो पूज्य हैं। इन लोगों को सज़ा पूरी करने के लिये पीड़िता और कुछ नागरिकों को अदालत जाना पड़ा।
    • कठुआ में छोटी सी बच्ची का सामूहिक बलात्कार कर के मार दिया गया और बलात्कारियों की सहानुभूति में राष्ट्रीय ध्वज ले कर रैली निकाली गयी। कोई कार्यवाही उनके ख़िलाफ़ नहीं हुई जबकि देश के तमाम हितैषी अगर वाजिब माँग के लिये प्रदर्शन करते हैं तो उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही होती है।
    • उत्तर प्रदेश में तक़रीबन रोज़ ही दिल हिला देने वाली वारदातें हो रही हैं, जिनमें से एक चन्द दिन पहले ही यूपी की राजधानी क्षेत्र में हुई जिसमें एक एम्बुलेंस ड्राइवर ने एम्बुलेंस में ही मरीज़ को मार डाला और उसकी पत्नी से बलात्कार की कोशिश की।
    • मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में जो हुआ वो बताते भी शर्म आती है। एक ग़रीब महिला का बलात्कार दिन दहाड़े भरी सड़क पर किया गया और कुछ लोग वीडियो बनाते रहे।
    • उदाहरणों की सूची बहुत लम्बी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, ओडिशा, मणिपुर, आदि अन्य बहुत से प्रदेशों में बहुत से शर्मनाक कांड हुये हैं।
  6. हिंसा की बड़ी घटनाओं पर देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे ज़िम्मेदार व्यक्तियों का मौन और उच्च न्यायलयों द्वारा संगीन मामलों में भी स्वतः संज्ञान का अभाव भी हिंसा की स्वीकृति को साधारण सी बात मानने और उसे बढ़ाने में सहयोगी बनते हैं। मणिपुर में साल भर से ज़्यादा चलने वाली हिंसा इसका एक उदाहरण है। 

अगर मौन टूटता भी है या स्वतः संज्ञान होता भी है तो उसमें विभाजित सम्वेदना के दर्शन होते हैं। मणिपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, इत्यादि के लिये मौन और केवल बंगाल के लिये सम्वेदना, ये परिदृश्य डर और तकलीफ़ देने वाला है।

  1. हमें ख़ुशी है कि बंगाल में हुई घटना के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने स्वतः संज्ञान ले कर मेडिकल कर्मियों की सुरक्षा के विषय में पड़ताल करने और निर्देश देने का निर्णय लिया है।  हम अधिक आश्वस्त होते अगर माननीय न्यायालय देश में बड़ी संख्या में हर प्रकार के वर्ग की महिलाओं और बच्चियों पर होने वाली हिंसा के समस्त दौर/ट्रेंड का संज्ञान लेते और सामान्य स्त्री की गरिमा को भी उतना ही महत्व देते हुये पूरे परिदृश्य पर समाधान खोजते। हम अधिक आश्वस्त होते अगर मणिपुर में लम्बे समय से तार तार होने वाली गरिमा का संज्ञान लिया जाता। 
  2. ऐसा होता तो समाज में संदेश जाता कि देश में हर स्त्री और बच्ची की गरिमा एक समान मूल्यवान है, उनकी सुरक्षा के मामले में हमारे संरक्षक समान दृष्टि रखते हैं और इस विषय पर हमारी संवेदना विभाजित नहीं है।

हमारी आप से ये सुनिश्चित करने की आशा और प्रार्थना है कि  इन घटनाओं पर संवैधानिक संस्थायें निष्पक्ष दृष्टि और निष्पक्ष संवेदना से क़ानून के अनुरूप बिना समय खोये मुस्तैद कार्यवाही करें, व्यवस्था में समाज का विश्वास पुनर्स्थापित करें और महिलाओं की गरिमा व सुरक्षा सुनिश्चित करें।

हस्ताक्षरकर्ता:

  1. प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा
  2. श्री असग़र मेहदी, जन संस्कृति मंच
  3. ग्रुप कैप्टन दिनेश चंद्रा 
  4. सुश्री वंदना मिश्रा, पत्रकार व लेखक
  5. श्री कौशल किशोर, जन संस्कृति मंच 
  6. प्रोफ़ेसर रमेश दीक्षित
  7. प्रोफ़ेसर नदीम हसनैन 
  8. श्री नवीन जोशी, लेखक 
  9. श्री राजीव ध्यानी, व्यंग्यकार
  10. श्री राकेश वेदा, इप्टा
  11. सुश्री मीना सिंह, ऐपवा
  12. डॉ दुर्गेश कुमार चौधरी, शिक्षक  
  13. सुश्री सबीहा अनवर, लेखक 
  14. डॉ मीना काला, रिटायर्ड शिक्षक
  15. डॉ चंद्रेश्वर, शिक्षक 
  16. श्री राम किशोर, सोशलिस्ट फ़ाउंडेशन
  17. श्री दिनकर कपूर, श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता 
  18. सुश्री मधु गर्ग, जनवादी महिला समिति
  19. श्री दया शंकर राय, लेखक  
  20. सुश्री कान्ति मिश्रा, महिला फ़ेडरेशन
  21. श्री प्रताप दीक्षित, लेखक 
  22. सुश्री ममता सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता
  23. सुश्री आकांक्षा आज़ाद 
  24. श्री ज्ञान चंद्र शुक्ला, रंगमंच कर्मी  
  25. श्री नजम ए फ़ारूक़ी, लेखक
  26. श्री अरुण खोटे, श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता 
  27. सुश्री अरुंधती धुरू, एनएपीएम 
  28. सुश्री यासमीन फ़ातिमा, शिक्षक 
  29. श्री राजू पाण्डेय, नाटककार 
  30. सुश्री किरण पाण्डेय, होम मेकर 
  31. श्री शहज़ाद रिज़वी, इप्टा
  32. सुश्री नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता 
  33. प्रोफ़ेसर राजेन्द्र वर्मा 
  34. श्री फ़रज़ाना मेहदी, जन संस्कृति मंच 
  35. श्री शावेज़ वारिस, सामाजिक कार्यकर्ता
  36. सुश्री तसनीम फ़ातिमा, सामाजिक कार्यकर्ता 
  37. सुश्री अंकिता मिश्रा, सामाजिक कार्यकर्ता
  38. सुश्री तज़ीन फ़ातिमा, सामाजिक कार्यकर्ता
  39. श्री कुलदीप सिंह चौहान, संगीतज्ञ
  40. श्री लाल बहादुर सिंह, लेखक 
  41. ऐडवोकेट मोहम्मद शोएब
  42. श्री रफ़ीक़ ख़ान, उत्तर प्रदेश डेमोक्रैटिक फ़ोरम  
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