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येदि को कमान BJP की मजबूरी:सर्वे में BJP बहुमत से पीछे, RSS के सर्वे में 70 से 75 सीटें, मुस्लिमों का रिजर्वेशन हटाया

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बेंगलुरु

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीखें आ गई हैं। यहां 10 मई को वोटिंग होगी, नतीजे 13 मई को आएंगे। कांग्रेस 25 मार्च को ही 124 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुकी है। BJP की पहली लिस्ट अप्रैल के पहले हफ्ते में आ सकती है। कर्नाटक में अभी BJP की ही सरकार है। पार्टी ने चुनाव की जिम्मेदारी 80 साल के बीएस येदियुरप्पा को सौंपी है, क्योंकि ऐसा करना BJP की मजबूरी है।

येदियुरप्पा की लिंगायतों में मजबूत पकड़ है और लिंगायत सरकार बनाने में अहम रोल अदा करते हैं। BJP सरकार ने चुनाव के चंद दिनों पहले मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए मुस्लिमों को मिलने वाला 4% रिजर्वेशन भी खत्म कर दिया। इसे लिंगायतों और वोक्कालिगा के बीच बांट दिया गया है। पार्टी का टारगेट 150 सीटें जीतने का है। हालांकि सर्वे रिपोर्ट्स में अभी BJP को कांग्रेस से पीछे बताया जा रहा है, लेकिन बहुमत किसी भी पार्टी को मिलता नहीं दिख रहा।

ये चुनाव येदियुरप्पा के लिए फाइनल टेस्ट की तरह है। वे पहले ही चुनावी राजनीति से संन्यास ले चुके हैं और अब बेटों के लिए जगह बना रहे हैं। येदियुरप्पा अगर इस टेस्ट में पास हुए तो उनके बेटों का रास्ता आसान हो जाएगा। उन्होंने इस बार BJP को 130 सीटें जिताने का टारगेट रखा है। हालांकि, 2018 में सरकार बनाने वाले कांग्रेस और JD(S) अभी गठबंधन पर चुप हैं। अगर दोनों पार्टियां साथ आईं, तो BJP की मुश्किलें बढ़ेंगीं।

24 मार्च को गृहमंत्री अमित शाह कर्नाटक के दौरे पर थे। उन्होंने बीएस येदियुरप्पा से मुलाकात की, इस दौरान ज्यादातर वक्त येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र (पीछे) अमित शाह के करीब रहे।

येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र इस बार पिता की सेफ सीट रही शिकारीपुरा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। उन्हें टिकट मिलना करीब तय है। वे पिछली बार भी रेस में थे, लेकिन बताया जाता है कि BJP के एक राष्ट्रीय सचिव के ऑब्जेक्शन की वजह से टिकट पक्का नहीं हो पाया था।

कर्नाटक में येदियुरप्पा ही BJP के सबसे बड़े नेता
कर्नाटक की सियासत तीन कम्युनिटी के इर्द-गिर्द घूमती है। लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरबा। येदियुरप्पा लिंगायत कम्युनिटी के सबसे बड़े नेता हैं। कर्नाटक में इस कम्युनिटी की पॉपुलेशन करीब 17% है। यह कम्युनिटी BJP सपोर्टर मानी जाती है और इसे BJP से जोड़ने का काम येदियुरप्पा ने ही किया था। पहले लिंगायत कांग्रेस के साथ थे। यह कम्युनिटी कर्नाटक विधानसभा की 224 में से 90 से 100 सीटों पर असर डालती है।

राज्य में छोटे-बड़े 500 से ज्यादा लिंगायत मठ हैं। चुनाव के पहले हर पार्टी के नेताओं का इन मठों में आना-जाना शुरू हो जाता है। बड़े मठों पर येदियुरप्पा की स्वीकार्यता एक जैसी है। साल 2021 में जब उन्हें CM पद से हटाया गया था, तब भी उनके समर्थन में ज्यादातर मठ लामबंद हो गए थे। बाद में उन्होंने ही समर्थकों को समझाकर शांत कराया था।

सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं येदियुरप्पा ने इन मठों की बहुत मदद की है। उनके बेटे विजयेंद्र की भी मठों में अच्छी पकड़ है। कहा जाता है कि येदियुरप्पा जो भी वादा करते हैं, उसे पूरा भी करते हैं, इसलिए मठ उनके साथ जुड़े हैं। अभी कर्नाटक की बड़ी कम्युनिटी कुरबा, वाल्मीकि, वोक्कालिगा, पंचमशाली अपने रिजर्वेशन के लिए लड़ रही हैं। यह लड़ाई मठों के जरिए ही होती है।

ट्रल और कित्तूर कर्नाटक में लिंगायतों का दबदबा
सेंट्रल कर्नाटक की सीटों पर लिंगायत समुदाय निर्णायक भूमिका में रहता है। येदियुरप्पा सेंट्रल कर्नाटक के शिवमोगा से ही आते हैं। इस वजह से BJP का शिवमोगा और चिकमंगलूर जिलों में दबदबा है। महाराष्ट्र की सीमा से लगा कित्तूर कर्नाटक रीजन भी लिंगायत समुदाय के दबदबे वाला है। 2018 के चुनावों में सेंट्रल कर्नाटक में कांग्रेस ने 5 और BJP ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, कित्तूर कर्नाटक में कांग्रेस ने 16, BJP ने 26 और JD(S) ने 2 सीटें जीतीं थीं।

साउथ कर्नाटक में वोक्कालिगा का वर्चस्व
ओल्ड मैसूर या साउथ कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय का वर्चस्व है, जिसकी राज्य की आबादी में 15% हिस्सेदारी है। ये आबादी मांड्या, हासन, मैसूर, तुमकुर, कोलार और चिक्काबल्लापुर जिलों में असर रखती है। मांड्या में 50% से ज्यादा वोक्कालिगा हैं। ओल्ड मैसूर सबसे बड़ा रीजन है, लेकिन वहीं पार्टी की हालत बहुत खराब है, इसलिए इस बार यहां सबसे ज्यादा ताकत लगाने की तैयारी है।

दक्षिण कर्नाटक जनतादल सेकुलर का गढ़ भी है। पूर्व PM एच.डी. देवेगौड़ा और कांग्रेस के सीनियर लीडर सिद्धारमैया का यहां काफी प्रभाव है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 20 और JD (S) ने 30 सीटें जीतीं थीं। BJP को 15 सीटें मिली थीं।

चुनाव से पहले लिंगायत और वोक्कालिगा कम्युनिटी को 4% आरक्षण
कर्नाटक सरकार ने 24 मार्च को आरक्षण पर दो बड़े फैसले किए। पहले फैसले के तहत सरकार ने OBC मुसलमानों के लिए 4% कोटा खत्म कर दिया। दूसरा फैसला ये कि इस 4% कोटे को वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों में बांटा गया है।

इस फैसले के बाद वोक्कालिगा के लिए कोटा 4% से बढ़ाकर 6% कर दिया गया है। पंचमसालियों, वीरशैवों और अन्य लिंगायत श्रेणियों के लिए कोटा 5% से बढ़ाकर 7% हो गया है। वहीं, मुस्लिम समुदाय को अब EWS कोटे के तहत आरक्षण मिलेगा।

चुनाव से पहले टीपू सुल्तान पर विवाद
कर्नाटक में चुनाव से पहले टीपू सुल्तान के नाम पर फिर विवाद हो रहा है। BJP का दावा है कि टीपू को ब्रिटिश और मराठा सेनाओं ने नहीं, बल्कि दो वोक्कालिगा नेताओं ने मारा था। दरअसल, पुराने मैसूर के कुछ हिस्सों में अब भी यह दावा किया जाता है कि दो वोक्कालिगा प्रमुखों उरी गौड़ा और नान्जे गौड़ा ने टीपू सुल्तान की हत्या की थी।

पहली बार यह दावा मैसूर में हुए एक नाटक में किया गया था। राइटर और डायरेक्टर अडांडा सी करियप्पा ने इस नाटक ‘टीपू निंजा कनसुगलु’ यानी Real Dreams Of Tipu को लिखा है। इतिहासकार इस दावे पर आपत्ति जताते हैं, लेकिन BJP के कई नेताओं ने इस दावे को सही ठहराया है। इन लोगों में वोक्कालिगा नेता और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि और मंत्री अश्वथ नारायण और गोपालैया शामिल हैं। अश्वथ नारायण और शोभा करंदलाजे जैसे भाजपा के केंद्रीय मंत्री यह भी दावा करते हैं कि उरी गौड़ा और नान्जे गौड़ा के होने के बारे में ऐतिहासिक सबूत मौजूद हैं।

सर्वे में BJP बहुमत से पीछे, RSS के सर्वे में 70 से 75 सीटें
मुख्यमंत्री रहते हुए येदियुरप्पा पर घोटालों के आरोप लगे थे। उन्होंने अपनी संपत्ति डिक्लेयर की थी, जिसमें 500% की बढ़ोतरी दिखाई गई थी। यह बढ़ोतरी मुख्यमंत्री पद से पहले और पद पर रहने के बाद की थी। कहा जाता है कि BJP ने 2011 में जबर्दस्ती उनसे इस्तीफा दिलवाया था।

लंबी जांच के बाद अक्टूबर 2016 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था। एक वक्त पार्टी ने भी येदियुरप्पा से दूरी बना ली थी, लेकिन पार्टी के सर्वे में पता चला कि येदियुरप्पा के दूर होने का नेगेटिव इम्पैक्ट हो रहा है। तब हाईकमान ने उनसे बातचीत शुरू की।

कर्नाटक में BJP 20 जुलाई 2019 से सत्ता में है। इन 4 साल में उसे एक बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 28 जुलाई 2021 से यहां बसवराज बोम्मई CM हैं। कर्नाटक में फरवरी में RSS ने एक सर्वे रिपोर्ट BJP को सौंपी है। इसमें उसे 70 से 75 सीटें जीतते बताया गया। बहुमत के लिए 113 सीटें जरूरी चाहिए।

सूत्र बताते हैं कि मंत्रियों और विधायकों पर करप्शन के आरोप लगने से BJP हाईकमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से नाराज है। BJP के एक सीनियर लीडर ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि राज्य में गृहमंत्री अमित शाह, कर्नाटक सरकार और संगठन ने अपना अलग-अलग सर्वे करवाया है। ये सभी रिपोर्ट्स PM मोदी के ऑफिस में पहुंच चुकी हैं। ये साफ है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ही मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के कामकाज से खुश नहीं हैं। कर्नाटक में सरकार एक भी बड़ा काम पूरा नहीं कर पाई।

6 रीजन में बंटा कर्नाटक, बेंगलुरु अर्बन और ओल्ड मैसूर में BJP कमजोर

मोटे तौर पर कर्नाटक को 6 रीजन में बांटा जाता है। इसमें बेंगलुरु अर्बन, ओल्ड मैसूर, कित्तूर कर्नाटक (पहले मुंबई कर्नाटक), कोस्टल कर्नाटक, हैदराबाद कर्नाटक और सेंट्रल कर्नाटक शामिल हैं। बेंगलुरु अर्बन की 28 सीटों में से BJP 2018 में सिर्फ 11 सीटें जीत पाई थी। इसी तरह ओल्ड मैसूर की 66 सीटों में से सिर्फ 15 सीटों पर जीत मिली थी। मुंबई कर्नाटक रीजन की 44 में से 26 सीटें BJP के पास हैं।

कोस्टल कर्नाटक की 19 में से 16 BJP ने जीतीं, क्योंकि यहां हिंदुत्व का एजेंडा मजबूत है। हैदराबाद कर्नाटक रीजन की 40 में से 15 सीटें और सेंट्रल कर्नाटक की 27 में से 21 सीटें पार्टी ने जीती थीं। ओल्ड मैसूर सबसे बड़ा रीजन है, लेकिन वहीं पार्टी की हालत बहुत खराब है, इसलिए इस बार यहां सबसे ज्यादा ताकत लगाने की तैयारी है।

ओल्ड मैसूर या साउथ कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय का वर्चस्व है, जिसकी राज्य की आबादी में 15% हिस्सेदारी है। ये आबादी मांड्या, हासन, मैसूर, तुमकुर, कोलार और चिक्काबल्लापुर जिलों में असर रखती है। मांड्या में 50% से ज्यादा वोक्कालिगा हैं।

दक्षिण कर्नाटक जनतादल सेकुलर का गढ़ भी है। पूर्व PM एच.डी. देवेगौड़ा और कांग्रेस के सीनियर लीडर सिद्धारमैया का यहां काफी प्रभाव है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 27 और JD (S) ने 25 सीटें जीतीं थीं। BJP को तब सिर्फ 4 सीटें मिली थीं।

भारत की सिलिकॉन वैली माने जाने वाले बेंगलुरु में ज्यादातर मिडिल क्लास और पढ़े-लिखे युवा पेशेवर वोटर हैं। कर्नाटक के इकोनॉमिक सर्वे 2021-22 के मुताबिक, बेंगलुरु में प्रति व्यक्ति आय 5.41 लाख रुपए है, जो सबसे निचले पायदान वाले जिले कलबुर्गी से 5 गुना ज्यादा है। यहां BJP और कांग्रेस बराबरी के मुकाबले में रही हैं। 2013 में कांग्रेस को 13 और BJP ने 12 सीटें जीती थीं।

माइनिंग बेल्ट होने के बावजूद ये रीजन आर्थिक तौर पर पिछड़ा है। 16 हजार करोड़ के माइनिंग घोटाले से चर्चा में आए रेड्डी बंधु और कांग्रेस का गढ़ रहा बेल्लारी इसी रीजन में है। सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव बेल्लारी से ही लड़ा था।

बंजारा समुदाय की इस रीजन में अच्छी खासी आबादी है। PM मोदी ने 19 जनवरी को रैली कर समुदाय के 52,000 लोगों को पट्टा दिया था। इस रीजन में बीदर, बेल्लारी, कलबुर्गी, कोप्पल, रायचूर और यादगिर जिले आते हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बीदर जिले से ही हैं।

कांग्रेस BJP पर इस रीजन को हिंदुत्व की लैबोरेटरी बनाने के आरोप लगाती रही है। 2018 के चुनाव में BJP ने अपने फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ और अनंत हेगड़े से प्रचार करवाया था। हिंदूवादी संगठन श्रीराम सेना का प्रभाव इसी इलाके में हैं। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां की 19 सीटों में से 14 जीती थीं। तब येदियुरप्पा के नई पार्टी बनाने से BJP के वोट बंटे हुए थे।

सेंट्रल कर्नाटक में लिंगायत समुदाय दावणगेरे में एक निर्णायक भूमिका में रहता है, वहीं चित्रदुर्ग में यही स्थिति धार्मिक मठ की होती है। येदियुरप्पा सेंट्रल कर्नाटक के शिवमोगा से ही आते हैं। इस वजह से BJP का शिवमोगा और चिकमंगलूर जिलों में दबदबा है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां की 15 सीटें जीती थीं।

महाराष्ट्र की सीमा से लगा ये रीजन लिंगायत समुदाय के दबदबे वाला है। यहां पानी की कमी बड़ी समस्या है। 2004 और 2008 में इस रीजन में येदियुरप्पा का दबदबा था, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की।

एक इंडिपेंडेंट एजेंसी ने रीजन में कांग्रेस को 27 से 28 सीटें और BJP को 14 से 16 सीटें मिलने का अनुमान जताया है। महाराष्ट्र के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस रीजन का नाम 2021 में मुंबई कर्नाटक से बदलकर कित्तूर कर्नाटक कर दिया था।

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