अग्नि आलोक

हलाल को लेकर बवाल खड़ा करने की योगी सरकार की जिद

Share

हलाल इंडिया ने भारत में सौ से अधिक कंपनियों को प्रमाणित किया है, जिसमें फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर भी शामिल है, जो होलसेल कैश एंड कैरी (डब्ल्यूसी एंड सी), निरमा साल्ट, हल्दीराम नमकीन और स्वीट्स, गोल्डविनर ऑयल, बीकानेरवाला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, बाकफो फार्मास्यूटिकल्स, अंबुजा ग्रुप एवं दावत बासमती चावल इत्यादि शामिल हैं। ये सभी कंपनियां भारतीय उत्पादों को मिडल-ईस्ट के देशों में बिक्री के लिए हलाल सर्टिफाइड उत्पाद का सहारा लेती हैं।

नई दिल्ली। पिछले सप्ताह शुक्रवार के दिन योगी सरकार ने हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर एक बड़ा फैसला लेते हुए यूपी में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया था। इस सिलसिले में सोमवार को लखनऊ में फ़ूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) की टीम ने सहारा मॉल, विकास नगर में रिलायंस स्टोर, फन मॉल में स्पेंसर स्टोर, विकास नगर में पतंजलि स्टोर और गोमती नगर में स्थित अपना मेगा मार्ग पर छापेमारी की थी। इस ऑपरेशन का मुख्य जोर कोल्ड ड्रिंक्स, मीट, ड्राई फ्रूट्स पर हलाल सर्टिफाइड उत्पादों के लेबल का पता लगाना था, जिस पर राज्य सरकार ने तत्काल प्रतिबंध लागू कर दिया है।

इस बारे में एफएसडीए के अपर आयुक्त एसपी सिंह ने बताया, “टीम ने तमाम हलाल सर्टिफाइड उत्पादों की सघन जांच में पाया कि निजी कंपनियों द्वारा प्रमाणित इनमें से एक भी उत्पाद कानूनों का उल्लंघन नहीं करते हैं।”

यूपी सरकार ने ये कदम हलाल भोजन, दवाओं और कॉस्मेटिक वस्तुओं के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर त्वरित कार्रवाई के तहत लिए हैं। इस कदम को सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं उपभोक्ताओं के बीच भ्रम को कम करने के लिए बताते हुए तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।

आज भी प्रदेश के विभिन्न जिलों में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर बैन को अमली जामा पहनाने के लिए एफएसडीए (फ़ूड सेफ्टी एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन उत्तर प्रदेश) के अधिकारी दुकानों और मॉल में हलाल फ़ूड की तलाश में छापेमारी करने में जुटे हुए हैं। मंगलवार को हरदोई के वी मार्ट, विशाल मेगा मार्ट सहित शहर की विभिन्न दुकानों एवं मॉल में जांच का काम किया जा रहा है।

इस दौरान खाद्य विभाग की टीम द्वारा कोल्ड ड्रिंक, ड्राई फ्रूट सहित तमाम प्रोडक्ट की पड़ताल की गई। हालांकि खाद्य विभाग की टीम को कोई भी हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट नहीं मिला, लेकिन हलाल सर्टिफाइड उत्पाद बाजार में न बिक सके इसको लेकर सरकार के निर्देश को अमली जामा पहनाने के उद्देश्य से खाद्य विभाग पूरी कर्तव्य परायणता से जुटा हुआ है।

न्यूज़ 18 के अनुसार, खाद्य विभाग के अधिकारी सतीश कुमार का कहना है कि, “सरकार ने हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट पर पूर्णतया बैन लगा दिया है। ऐसे में कोई बाजार में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट न बेच सके इसको लेकर चेकिंग चल रही है। अभी तक कोई प्रोडक्ट ऐसा नहीं मिला है जो हलाल सर्टिफाइड हो, यदि ऐसा कोई प्रोडक्ट मिलता है तो कार्रवाई की जाएगी।” इसके साथ ही उनका कहना था कि किसी भी तरह से हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट को बिकने नहीं दिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश और योगी आदित्यनाथ की चर्चा एक बार फिर से खाड़ी के देशों ही नहीं पश्चिमी देशों के समाचार पत्रों में हो रही है। रॉयटर्स ने भी इसे सोमवार को कवर किया है और बताया है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हलाल सर्टिफाइड उत्पादों की बिक्री को प्रतिबंधित करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को भारत में हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाली संस्थाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे।

शुक्रवार शाम को लखनऊ में दर्ज की गई एफआईआर में कई उत्पादों को ‘हलाल’ लेबल वाले प्रमाणपत्र जारी करने वाली संस्थाओं, जैसे कि हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई; जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, नई दिल्ली; और हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया, मुंबई जैसी संस्थाओं को नामित किया है। इनके ऊपर आरोप लगाया गया है कि उत्पादों को हलाल सर्टिफिकेट जारी कर उपभोक्ताओं के ‘विश्वास’ के साथ खिलवाड़ करने का काम किया जा रहा है।

एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 153 ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा), 384 (जबरन वसूली), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना), 467 (महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) और 505 (सार्वजनिक शरारत पैदा करने वाले बयान) जैसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

क्या है हलाल सर्टिफिकेशन?

पहली बात तो किसी को भी अपने दिलो-दिमाग से इस बात को झटक कर हटा देना चाहिए कि हलाल का अर्थ यहां पर बकरे की गर्दन कैसे काटी जायेगी, से है। यह झटका और हलाल मीट का मुद्दा नहीं है, बल्कि मुस्लिम खाद्य परंपरा में हलाल (जायज) और हराम (नाजायज) से जुड़ा है। याद कीजिये कुछ दशक पहले तक भारत के भीतर भी हिंदू धर्म के मतावलंबियों में बाहर किसी भी दुकान से खाने की चीज का सेवन त्याज्य माना जाता था।

ब्राह्मणों और वैश्यों के बारे में किस्से मशहूर हैं कि वे यात्रा के दौरान घर में तैयार की गई वस्तुओं या चना-चबैना से ही गुजारा कर लेते थे। भारतीयों के लिए विदेशों में जाकर पढ़ने या यात्रा को लेकर तमाम तरह की पाबंदियां थीं। आज भी पश्चिमी देशों या पूर्वी एशिया के देशों में जाने पर कई लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके भोजन में कहीं गलती से बीफ या हमारी सोच से परे वाली वस्तुओं का इस्तेमाल न हो।

इस्लामिक देशों सहित इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में रहने वाले मुस्लिमों के लिए दुनियाभर के देशों से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति की जा रही है। हलाल सर्टिफिकेट की जरूरत इन देशों को महसूस हुई, और इसका चलन इस्लामिक देशों में ही नहीं बल्कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में भी आम है।

अमेरिकन हलाल फाउंडेशन की वेबसाइट में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया है कि 2024 तक हलाल खाद्य उद्योग के वैश्विक स्तर पर 2.0 ट्रिलियन डॉलर के कारोबार की उम्मीद है। अकेले अमेरिका में करीब 34.5 लाख मुस्लिम हलाल जीवन शैली का अनुसरण कर रहे हैं, और अमेरिका में 2024 तक 8.17 बिलियन डॉलर कारोबार का अनुमान है।

वेबसाइट में विस्तार से बताया गया है कि हलाल का आशय नॉन-वेज और वेज भोजन एवं बीवरेज सभी के साथ जुड़ा हुआ है। हलाल भोजन में फल से लेकर मांस और मिठाइयां तक शामिल हैं। कोई भी भोजन जो स्वच्छ है और अल्कोहल, हानिकारक (या विषाक्त) सामग्री, नशीले पदार्थों एवं सूअर के मांस से रहित है, और कोई भी मांस जो हलाल वध और उस प्रक्रिया से गुजरा हो, को हलाल की श्रेणी में रखा जा सकता है।

इसके अनुसार, ताजे फल और सब्जियां हमेशा हलाल भोजन की श्रेणी में होती हैं। लेकिन यदि फलों और सब्जियों पर गैर-हलाल रसायनों का छिड़काव या हराम परिरक्षकों को इंजेक्ट किया गया हो, तो उसे खाने की मनाही है। हलाल के अनुयायी अन्य पौधों पर आधारित भोजन के अलावा सेब, ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी जैसे सामान्य जैविक फलों का आनंद ले सकते हैं। पनीर और डेयरी उत्पादों को हलाल (जायज) माइक्रोबियल एंजाइमों या जीवाणु संस्कृतियों से तैयार किया जाना चाहिए।

शराब या अन्य हराम उत्पादों से तैयार मिठाइयों और सूप का सेवन निषिद्ध है। इसी प्रकार बड़ी संख्या में ऐसे पेय पदार्थ भी हैं जिन्हें हलाल-प्रमाणित किया जाता है, जैसे कि कार्बोनेटेड पेय, फलों के रस, चाय, कॉफी, बादाम का दूध, सोया दूध और गाय या बकरी का दूध, लेकिन यदि इनमें हराम (प्रतिबंधित) घटक मिलाया जाता है, तो ये पेय पदार्थ हलाल नहीं कहे जा सकते हैं।

यहां पर बता दें कि मुस्लिमों और यहूदियों के द्वारा अपने खानपान को लेकर कुछ नियम और दिशा निर्देश जारी किये गये हैं, जबकि भारत से उत्पन्न विभिन्न धर्मों की भी कुछ मान्यताएं हैं, लेकिन इसके अलावा अधिकांश देशों के लोगों में खानपान को लेकर इस प्रकार के नियम नहीं हैं। इस्लामी हलाल पद्धति में हलाल मीट के नियम को छोड़ दें तो बाकी सभी नियम स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित जान पड़ते हैं। हां, सुअर और शराब के सेवन के बारे में धार्मिक प्रतिबंध इसमें एक विशिष्ट धार्मिक पहलू है।

इसी बात को यदि हम दूसरे पहलू से देखें तो भारत में आमतौर पर गाय को मां का दर्जा दिया जाता है, और गौ-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है, (गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों को अपवाद माना जा सकता है, हालांकि वहां भी बैल और भैंसे के मीट का प्रचलन है)। अब यदि कोई हिंदू अपनी धार्मिक मान्यता का पालन करना चाहता है तो क्या उसे यह जानने का हक नहीं होना चाहिए कि वह जिन नॉन-वेज उत्पादों का सेवन कर रहा है, उनमें बीफ का इस्तेमाल किया गया है या नहीं?

भारत में कुछ वर्ष पहले दुनिया की विख्यात मल्टीनेशनल कंपनी नेस्ले के उत्पाद किटकेट को लेकर सोशल मीडिया पर काफी विवाद हुआ था, जिसमें कहा जा रहा था कि किटकैट के क्रंची चाकलेट की वजह बीफ के जूस का होना है। फैक्ट चेक के बाद यह बात सामने आई कि नेस्ले इंडिया के उत्पाद पूरी तरह से भारतीय उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर वेज उत्पादों से तैयार किये जाते हैं।

रामदेव और हल्दीराम के उत्पाद भी हलाल प्रमाणपत्र के साथ बाजार में हैं

फिर हलाल सर्टिफाइड उत्पाद का प्रमाणपत्र तो हमारे बाबा रामदेव को अपने पतंजलि उत्पादों के लिए भी चाहिए होता है? हल्दीराम फूड्स के उत्पादों को हलाल सर्टिफिकेट जारी किया गया है। मिडिल ईस्ट ब्रीफिंग की वेबसाइट में बताया गया है कि हलाल इंडिया ने भारत में सौ से अधिक कंपनियों को प्रमाणित किया है, जिसमें फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर भी शामिल है, जो होलसेल कैश एंड कैरी (डब्ल्यूसी एंड सी), निरमा साल्ट, हल्दीराम नमकीन और स्वीट्स, गोल्डविनर ऑयल, बीकानेरवाला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, बाकफो फार्मास्यूटिकल्स, अंबुजा ग्रुप एवं दावत बासमती चावल इत्यादि शामिल हैं। ये सभी कंपनियां भारतीय उत्पादों को मिडल-ईस्ट के देशों में बिक्री के लिए हलाल सर्टिफाइड उत्पाद का सहारा लेती हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने भारत में मौजूद हलाल प्रमाणन कंपनी, हलाल इंडिया की वेबसाइट के हवाले से जानकारी दी है कि हलाल सर्टिफाई होने के लिए प्रयोगशाला परीक्षण और ऑडिट की कठोर प्रक्रिया से गुजरना होता है। हलाल इंडिया का प्रमाणन कतर के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय, संयुक्त अरब अमीरात के उद्योग एवं उन्नत प्रौद्योगिकी मंत्रालय और मलेशिया के इस्लामी विकास विभाग सहित अन्य के द्वारा मान्यता प्राप्त है। ये अंतर्राष्ट्रीय मान्यताएं इस्लामिक देशों को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

केंद्र और यूपी की डबल इंजन सरकारों की उलटबांसी

खुद केंद्र सरकार ने इस वर्ष अक्टूबर माह में हलाल प्रमाणन निकायों की मान्यता और निर्यात इकाइयों के पंजीकरण की समय सीमा को 5 अप्रैल, 2024 तक के लिए बढ़ा दिया था। विदेशों में भारतीय माल कैसे अधिक से अधिक बिकें, इसके लिए मोदी सरकार तमाम उपाय कर रही है। उधर 80 सांसदों वाले प्रदेश में योगी आदित्यनाथ हलाल सर्टिफािइड फ़ूड प्रोडक्ट्स पर एक व्यक्ति की लिखित शिकायत पर पूरे प्रदेश को एक पैर पर खड़ा कर चुके हैं।

भाजपा की डबल इंजन की सरकारों का परस्पर विरोधी रुख उसकी अपनी मनोदशा को बताता है, जिसे भारतीय कॉर्पोरेट का भी हित साधना है और दूसरी तरफ हिंदुत्व समर्थक आधार को भी लगातार धीमी आंच पर खदबदाते रहते देखना है।

लेकिन अपने राजनीतिक एजेंडा की बलिवेदी पर यूपी के उद्योगों और कारोबार पर चोट से फायदा किसको होगा, या मुस्लिम देशों के पर्यटकों के लिए यूपी में क्या आकर्षण रह जायेगा, इस बारे में दूरदृष्टि का अभाव उत्तर प्रश को अवश्य पिछली पांत में धकेलने वाला सिद्ध हो रहा है। पहले ही कानपुर का चमड़ा उद्योग इसी वोट बैंक का शिकार होकर बांग्लादेश में शिफ्ट हो चुका है। आगरा का प्रसिद्ध जूता उद्योग मरणासन्न स्थिति में है।

बता दें कि एमएसएमई उद्योगों में यूपी आज से नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से अग्रणी रहा है, लेकिन सरकारी उपेक्षा और पुलिसिया तंत्र की मार ने आज उत्तर प्रदेश की बीमारू राज्य की छवि को और अधिक बदरंग बना डाला है, और हलाल को लेकर बवाल खड़ा करने की राज्य प्रायोजित जिद एक और भस्मासुरी मुहिम साबित होने जा रही है।

Exit mobile version