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 निजीकरण को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी में सरकार

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 मोदी सरकार ने सरकारी कंपनियों के निजीकरण के लिए महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। माना जा रहा था कि तीसरी बार सरकार बनने पर इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन अब सरकार ने इस योजना से पीछे हटने का संकेत दिया है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार 200 से ज्यादा सरकारी कंपनियों का मुनाफा सुधारने की योजना पर काम कर रही है। यह इस बात का संकेत है कि मोदी सरकार प्राइवेटाइजेशन प्रोग्राम को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार ने 600 अरब डॉलर के सरकारी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से के निजीकरण के लिए साल 2021 एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी।

अप्रैल-मई में आम चुनाव से पहले इस मोर्चे पर सरकार की रफ्तार धीमी पड़ गई थी। इन चुनावों में बीजेपी अपने दम पर बहुमत पाने में नाकाम रही और वह सरकार चलाने के लिए एनडीए गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर है। सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को पेश होने वाले बजट में नई योजना की घोषणा कर सकती है। इसमें कंपनियों के पास मौजूद बिना उपयोग वाली जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेचना और अन्य एसेट्स का मॉनिटाइजेशन शामिल है। इसका मकसद चालू वित्तीय वर्ष में 24 अरब डॉलर जुटाना और इन्हें फिर से कंपनियों में निवेश करना शामिल है। प्रत्येक कंपनी के लिए अल्पकालिक लक्ष्यों के बजाय पांच साल का प्रदर्शन और उत्पादन लक्ष्य तय किया जाएगा।

इस बारे में वित्त मंत्रालय ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। चुनाव से पहले फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में सरकार ने एक दशक से अधिक समय में पहली बार हिस्सेदारी बिक्री पर कोई आंकड़ा नहीं दिया। एक अधिकारी ने कहा कि सरकार अंधाधुंध संपत्ति बिक्री से ध्यान हटाकर अब अपनी कंपनियों के आंतरिक मूल्य को बढ़ाने पर जोर दे रही है। सरकार अपनी मैज्योरिटी वाली कंपनियों में उत्तराधिकार योजना भी शुरू करना चाहती है। साथ ही इन कंपनियों में 230,000 मैनजरों को सीनियर रोल्स के लिए तैयार करने के लिए ट्रेनिंग देने का भी प्रस्ताव है।

साल 2021 में घोषित योजना के मुताबिक दो बैंक, एक बीमा कंपनी और स्टील, ऊर्जा और दवा सेक्टर की सरकारी कंपनियों को बेचा जाना था। साथ ही घाटे में चल रही कंपनियों को बंद किया जाना था। लेकिन सरकार केवल कर्ज में डूबी एयर इंडिया को ही टाटा ग्रुप को बेचने में सफल रही। कुछ अन्य कंपनियों को बेचने की योजना को उसे वापस लेना पड़ा। एलआईसी में सरकार ने केवल 3.5% हिस्सेदारी बेची गई है। साथ ही कुछ अन्य कंपनियों में शेयर बेचे गए हैं। इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि बहुमत नहीं होने के कारण मोदी सरकार के लिए सरकारी कंपनियों की बिक्री को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा।

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