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 भारत का धनिक वर्ग और फार्मा सेक्टर पैसे के बदले में मानव अंगों के व्यापार में शामिल

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देश के नामी-गिरामी अस्पताल बन चुके हैं मानव अंगों की खरीद-बिक्री के अंतर्राष्ट्रीय अड्डे

 डीसीपी क्राइम ब्रांच, के पुलिस अधिकारी अमित गोयल ने एक प्रेस वार्ता में बताया है कि उनकी टीम ने एक अंतर्राष्ट्रीय रैकेट का भंडाफोड़ करने में कामयाबी हासिल की है। यह प्रेस कांफ्रेंस कल दिल्ली में हुई थी, लेकिन कार्रवाई पिछले कुछ दिनों से जारी थी। प्रेस मीट के दौरान अमित गोयल के द्वारा कुल 8 गिरफ्तारियों की बात कही गई है। इसमें बताया गया है कि क्राइम ब्रांच की अंतर-राज्यीय शाखा के द्वारा मुख्य अभियुक्त संदीप आर्य और उसके दो सहयोगियों सहित कुल 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ये लोग मरीजों और किडनी डोनर्स की पहचान का काम करते थे। इसके साथ ही ये लोग उनके लिए नकली दस्तावेज तैयार करने और किडनी डोनर्स को मरीज के रिश्तेदार के तौर पर पेश करने से लेकर हॉस्पिटल की ट्रांसप्लांट कमेटी के सामने मंजूरी दिलाने तक का काम संपन्न करते थे। इसके अलावा 5 मरीजों और 2 डोनर्स की भी पहचान कर उनके बारे में सूचना हासिल कर ली गई है।

पुलिस का कहना है कि इससे पहले एक महिला के पति के किडनी ट्रांसप्लांट के लिए संदीप आर्य ने 35 लाख रुपये वसूले थे। उस मामले की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने ट्रैक करना शुरू किया था, जिसके तह पर जाने पर पुलिस को सुनील, संदीप, चीका, प्रशांत, रसेल और रोहित के बारे में जानकारी हासिल हुई। उनसे पूछताछ के बाद पता चला कि रोहित खन्ना का मुख्य काम भावी डोनर्स की तलाश थी, इसके लिए उसने सोशल मीडिया में ढेरों ग्रुप्स में भी शामिल था। संभावित डोनर्स से मिलकर वह उन्हें ग्रूम करता था। इनमें से दो-तीन तो ऐसे भी थे, जो पूर्व में खुद किडनी डोनर्स रहे हैं, लेकिन बाद में पैसे के लालच में, वे भी इसी धंधे में शामिल हो गये थे।

संदीप आर्य को इस पूरे ऑपरेशन का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, जिसके द्वारा हर आदमी का काम बांटा हुआ था, जिसके लिए ये 50,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक मिलते थे। कागजात तैयार करने वाले को 50,000 रुपये, डोनर्स को मरीज के रिश्तेदार के तौर पर ग्रूम कराने वाले को 50,000 रुपये और मरीज को ढूंढने वाले व्यक्ति को 50,000 और डोनर्स को लाने वाले को 1 लाख, और किडनी डोनर्स को 4-5 लाख रुपये दिए जाते थे, जबकि मरीज से 35 से 40 लाख रुपये की रकम वसूली जाती थी।

इसी तरह पत्रकार उमा सुधीर ने 8 जुलाई को आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले के एक ऑटो चालक, मधु बाबू का हाल सोशल मीडिया पर एक वीडियो के माध्यम से जारी किया था। इसमें भुक्तभोगी डोनर्स, जिसकी उम्र 31 वर्ष है स्वयं बता रहा था कि किस प्रकार लोन ऐप के चक्कर में फंसकर उसके सिर पर कर्ज का बोझ चढ़ गया था, जिसके चलते वह फेसबुक पर एक विज्ञापन के माध्यम से एक एजेंट के झांसे में आ गया था। एजेंट ने किडनी के बदले में 30 लाख रुपये देने का वादा किया था। इसके लिए फेक डॉक्यूमेंट तैयार किये गये और विजयवाड़ा के विजया सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में सर्जरी कर किडनी ट्रांसप्लांट का काम संपन्न हो गया था। लेकिन 7 माह बीत जाने के बाद भी ऑटो चालक को मात्र 50,000 रुपये ही प्राप्त हो सके थे।

किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर ये खबरें कोई नई नहीं हैं। अक्सर हम खबरों में सुनते हैं कि देश में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त लोगों के सामने अपने शरीर के अंगों को बेचकर किसी तरह अपने आश्रितों को जिंदा रखने का संकट खड़ा होता जा रहा है। हाल के वर्षों में भारत को हेल्थ टूरिज्म का सबसे बड़ा सेंटर भी कहा जाने लगा था। तमाम पंच सितारा, सात सितारा सुख सुविधाओं से संपन्न निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए पश्चिमी देशों के साथ-साथ बड़ी संख्या में खाड़ी देशों के अमीर आने लगे हैं।

खुद अपने ही देश में अमीरी और गरीबी की विभाजन रेखा इतनी बड़ी हो चुकी है कि किसी अमीर व्यक्ति के लिए चंद सिक्के खर्च कर अपने लिए युवा अंगों का ट्रांसप्लांटेशन कोई बड़ी बात नहीं रह गई है। इसके लिए निजी अस्पतालों के प्रबंधन की ओर से भी आँखें मूँद ली गई हैं। उनके पास तो हर विभाग के लिए एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित है, जो हर साल बढ़ता रहता है। अभी जिस रैकेट का खुलासा हुआ है, उसमें तो यही जानकारी मिल रही है कि सभी डोनर्स और मरीज बांग्लादेश मूल के थे। इसका अर्थ हुआ कि बांग्लादेश के संपन्न मरीजों के लिए अपने ही गरीब नागरिकों की मजबूरी का फायदा उठाने का अवसर भारत के अस्पतालों में मुहैया कराया जा रहा है। संभवतः बांग्लादेश में ऐसे अस्पताल या फैसिलिटी उपलब्ध नहीं हैं।

इस संदर्भ में यथार्थ हॉस्पिटल का नाम फिलहाल सुर्ख़ियों में है। यह अस्पताल नोएडा सेक्टर-39 में स्थित है, और दिल्ली-एनसीआर में इसकी शाखाएं हाल के वर्षों में तेजी से फल-फूल रही हैं। इसी अस्पताल में अपोलो अस्पताल की एक लेडी डॉक्टर, डी विजया राजकुमारी जो कि किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन हैं, के द्वारा पिछले दो वर्षों के दौरान 20 से भी अधिक किडनी ट्रांसप्लांट के मामले संपन्न किये जा चुके हैं। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने यथार्थ हॉस्पिटल की जांच में तमाम फाइलों की जांच में पाया है कि किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन, डी विजया राजकुमारी अपने साथ दिल्ली से छह सदस्यों की टीम के साथ यथार्थ हॉस्पिटल में सर्जरी का काम करने आया करती थी। गिरफ्तार आरोपियों के पास से करीब 26 मरीजों की सूची प्राप्त हुई है। ये सभी मरीज बांग्लादेश के थे, और वहां के डायलसिस सेंटर पर जाया करते थे।

लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। पिछले वर्ष दिसंबर माह में देश के नामी-गिरामी अस्पताल इंद्रप्रस्थ अपोलो का नाम सुर्ख़ियों में कुछ इन्हीं वजहों से आया था। हालाँकि, इस मामले में भी डॉ. डी विजया राजकुमारी अपोलो हॉस्पिटल के साथ ही सम्बद्ध बताई जा रही हैं। अपोलो अस्पताल इससे पहले भी इससे ही मिलते-जुलते कारणों से सुर्ख़ियों में रहा है। इसके एजेंट अब देश ही नहीं विदेशों तक में फैले हुए हैं। ब्रिटेन के अख़बार दि टेलीग्राफ ने करीब 7 माह पहले अपनी खबर में अपोलो हॉस्पिटल पर आरोप लगाया था कि यह पैसे के बदले किडनी रैकेट में शामिल है। इस खबर में बताया गया था कि विपन्न म्यांमार के लोगों की गरीबी का फायदा उठाकर इसके एजेंट डोनर्स तैयार करते हैं।

इसके लिए एक संवावदाता ने अपोलो के एजेंट से संपर्क साधा और अपनी एक रिश्तेदार के लिए किडनी डोनर्स के बारे में यह कहकर पूछताछ की कि उनके पास निजी संबंधी न होने की वजह से दानदाता उपलब्ध नहीं है। एजेंट ने एक 27 वर्षीय म्यांमार के युवक को डोनर्स के तौर पर उपलब्ध करा दिया, और बदले में खर्च की सूची गिना दी थी, जो इस प्रकार से है। मेडिकल बोर्ड में पंजीकरण शुल्क 16,700 रुपये, म्यांमार से भारत की हवाई यात्रा का एक तरफ का किराया 21,000 रुपये, मरीज और डोनर्स के बीच में फॅमिली ट्री को स्थापित करने के लिए खर्च 33,000 रुपये। कुल मिलाकर मरीज को 1.79 लाख रुपये चुकाने थे। इसके अलावा किडनी डोनर्स को 70-80 लाख रुपये अलग से चुकाने होंगे।

टेलीग्राफ की रिपोर्ट में डॉ. संदीप गुलेरिया का नाम भी शामिल है, जिन्होंने यूके में प्रशिक्षण प्राप्त किया है और पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित हैं। मरीजों और एजेंटों ने अखबार को बताया कि गुलेरिया ही वह सर्जन थे जिन्होंने प्रत्यारोपण किया था। डॉ. संदीप गुलेरिया के बारे में जब जानकारी जुटानी चाही तो पता चला कि वे तो अपोलो अस्पताल के जाने-माने डॉक्टर हैं। उनके बायोडाटा में बताया गया है कि वे 33 वर्षों के अनुभव वाले एक ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ सर्जन हैं। वे नई दिल्ली में अपोलो हॉस्पिटल इंद्रप्रस्थ से संबद्ध हैं। डॉ. संदीप गुलेरिया के पास MBBS, MS, DNB, FRCS, FRCP, MNAMS की डिग्री है। वे सिरोसिस, हेमोक्रोमैटोसिस, लिवर रोग, हेपेटाइटिस बी, ब्रेकिडैक्टली और अन्य जैसी कई तरह की ट्रांसप्लांट सर्जरी स्थितियों का इलाज कर सकते हैं।

इस बारे में अंग्रेजी वेब पोर्टल फर्स्टपोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि, “द टेलीग्राफ अख़बार ने डेक्कन हेराल्ड की 2016 की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया है, जिसमें बताया गया है कि गुलेरिया को “अपोलो के दिल्ली अस्पताल से जुड़े एक अलग किडनी घोटाले के सिलसिले में पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, जिन्हें नहीं पता, उन्हें बता दें कि इंद्रप्रस्थ अस्पताल में अपोलो सचिवालय टीम के दो सदस्यों को दलालों और दानदाताओं के एक समूह के साथ किडनी रैकेट में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में 2016 में गिरफ्तार किया गया था। आरोपी की जांच अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।

यहां पर बड़ा सवाल उठता है कि हमारे क्राइम ब्रांच के द्वारा हर 4-6 महीने बाद इस प्रकार के ऑपरेशन को अंजाम देने का फायदा ही क्या है, जब आपको पहले से पता है कि इस धंधे में असल में बड़े-बड़े शार्क तो खुद सात सितारा अस्पताल हैं, जो अपने डॉक्टर्स के पैनल को देश ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय कर दनादन नोट छापने के लिए किसी भी सूरत में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।

सोशल मीडिया पर बांग्लादेशी रैकेट की सूचना एक अफवाह के तौर पर उछालकर दक्षिणपंथी ट्रोल यह बताने में लगे हुए हैं कि कैसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या हमारे देश के गरीबों की किडनी से खुद को जिंदा रख रहे हैं। वे खबर की तह तक आम भारतीय को ले जाने ही नहीं देते, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और पश्चिमी देश देख रहे हैं कि कैसे भारत का धनिक वर्ग और फार्मा सेक्टर एक तरफ पैसे के बदले में मानव अंगों के व्यापार में शामिल है तो दूसरी तरफ स्तरहीन दवाओं के उत्पादन और निर्यात को रोक पाने में एक के बाद एक असफल सिद्ध हो रहा है। विकराल होती बेरोजगारी और गरीबी लाखों लोगों को इस रैकेट के चंगुल में जाने से कैसे रुक सकते हैं, अगर देश की सरकार इनके असल अपराधियों को जेल के सलाखों के पीछे डालने के बारे में विचार ही नहीं कर रही।

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