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03 लाख : बिकता है बेंगलौर, आप खरीदोगे

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~पुष्पा गुप्ता 

शहरे बैंगलौर पर उतरते ही इतिहास की झलकियां दिखनी शुरू हो जाती है। देवनहल्ली एयरपोर्ट पर कम्पेगौड़ा की विशाल मूर्ति लगी है। दस किलोमीटर दूर देवनहल्ली फोर्ट है। हैदरअली यहां किलेदार था, जहां टीपू का बचपन बीता।   

बेगलौर जानेवाले अक्सर बुल टेम्पल, इस्कांन टैम्पल, टीपू का समर पैलेस, विधानसौंध देखते हैं, और अगले दिन मैसूर निकल जाते है। बंगलौर का किला, एक कम मशहूर जगह है, मगर है बड़ी महत्वपूर्ण … इसलिए कि बंगलौर फोर्ट दरअसल इस शहर का बीज है। 

    जिस कम्पेगौड़ा के नाम पर एयरपोर्ट है, वो महाशय विजयनगर राज्य के सामंत थे। इस इलाके मे पोस्टिंग हुई, तो यहां जंगलों के बीच, एक मिट्टी का किला बनवाया। 

    किला दरअसल, थाना होता था। जहां राजा या सामंत अपनी टुकड़ी के रहने खाने, सुरक्षित नीद का इंतजाम करता। और यहां से सौ पचास किलोमीटर के दायरे मे निश्चित दरो पर सरकारी लूटपाट करता। जिसे आप टैक्स कहते है। 

    कम्पेगौड़ा के बाद की पीढियों के दौरान, उनका इलाका ऑडियारों मे मैसूर मे समाहित हो गया। हैदर इधर का सूबेदार था। मिट्टी के किले का पत्थर की दीवारो मे कनवर्ट किया। ये किला मौजूदा स्वरूप मे आया। 

ऑडियार किग्स, जाने क्यूं लंबा जीवन नही जीते थे। मैसूर मे अक्सर कमउम्र का राजा होता, उसकी मां उसके नाम पर राज करती। हैदर की मालकिन, याने तब की ऑडियार रानी के दो सलाहकार थे, जो बड़े पावरफुल थे, करप्ट थे। 

    उनका पत्ता साफ करने के लिए हैदरअली को राजधानी मैसूर बुलाया गया। रानी के आशीर्वाद से उसने मैसूर का एडमिनिस्ट्रशन और फाइनांस सम्हाल लिया। रानी के पुराने सलाहकार भाग गए, और सेना इकट्ठी करके हैदर पर हमला किया, खेत रहे। 

    अब हैदर काफी पावरफुल हो गया, रानी उससे भय खाने लगी। हैदर को निपटाने के लिए उसने अग्रेजो को चिट्ठी लिखी, वह हैदर के हाथ लग गई। रानी, और अल्पवयस्क राजा को मैसूर पैलेस मे नजरबंद कर दिया। श्रीरंगपट्टनम से राज चलाने लगा। 

हैदर ने 30 गांव के स्टेट को साउथ के बड़े राज्य मे बदल दिया था। उसने मराठो से, बीजापुर के आदिलशाही से, हैदराबाद की आसफजाही, त्रावणकोर और अंग्रेजो से काफी इलाके छीने। हैदर के बाद टीपू आया। हैदर के दुश्मनों ने मोर्चा बनाया, और टीपू को खत्म किया। इलाके बांट लिए और तीस गांव वापस आडियारों को दे दिये। 

    मगर ऑडियार केवल नाममात्र के शासक थे। राजकाज के लिए कमिश्नर नियुक्त हुआ। मशहूर कमिश्नर कब्बन साहब हुए। उनके नाम पर कब्बन रोड, कब्बन गार्डेन वगेरह बने हैं। कब्बन साहब का हैडक्वार्टर मैसूर नही, बंगलौर था। 

     दरअसल टीपू को हराकर अंग्रेजो ने श्रीरंगपट्नम मे छावनी बनाई। मगर जल्द ही वहां से उटाकर छावनी बंगलौर लाई गई। सेना को कपड़े, लत्ते, खाना, पीना, दारू, धोबी नाई चाहिए। इसलिए शहर बस गया। बस यही शहर ए बंगलौर है। 

एक समय मे शिवाजी के पिताजी शाहजी, बीजापुर आदिलशाही के सामंत थे। उन्होने बंगलौर का इलाका, आदिलशाही के लिए जीता और बड़े बेटे इकोजी को इधर का दारोमदार दिया। तो इकोजी उस तरफ के जागीरदार थे, जो अभी बंगलौर का इलाका है। 

     ये बात सौतेले भाइयों याने संभाजी और शिवाजी को हजम नही हुई। पारीवरिक विवाद के बीच इधर मुगलों का जोर बढ़ गया। इकोजी ने ऑडियार राजा को संपर्क किया, और तीन लाख मे इलाका ऑफर किया। ऑडियार ने फटाफट पेमेण्ट किया और इलाका कब्जे मे लिया। 

    मुगलों को कोई आपत्ति नही हुई। जाहिर है ऑडियार साहब के दिल्ली मे औरंगजेब से अच्छे रिश्ते थे। 

     भारत सरकार ने अभी एक बेहतरीन रिफार्म किया है। उसने सभी कैन्टोनमेण्ट एरिया को समाप्त करके, उसकी जमीन स्थानीय नगरनिगम मे समाहित कर दिया है। 

दरअसल कैन्टोनमेण्ट ऐरिया की जमीन सेना के नाम होती है। सेना वहां धोबी, नाई, दुकानदार वगैरह को लिविग राइट देती है। कैन्टोनमेण्ट मे किसी को जमीन का फ्रीहोल्ड राइट नही मिलता। 

    लेकिन नगरनिगम मे कोई टंटा नही। हिंदू-मुसलमान, नकाब -जिहाद के नाम पर पार्षद जिताओ, और फिर एक प्रस्ताव लाकर जमीन का लैंडयूज बदल दो। धडाधड़ बेच दो। 

     कम्पेगौड़, हैदरअली, टीपू सुल्तान, ऑडियार, कप्पन और ब्रिटिश आर्मी की  बसायी हुई प्रॉपर्टी अंततः देशभक्तो के हाथ लग गई है। इसलिए एक बार फिर बोली लगेगी। आपके रिश्ते दिल्ली से अच्छे होने चाहिए। फिर…

3 लाख, 3 लाख, 3 लाख. बिकता है बेंगलौर, बोलो खरीदोगे?

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