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1.50लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 30 सितंबर को सड़क पर उतरेंगी

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मध्यप्रदेश में अब डेढ़ लाख से ज्यादा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका 30 सितंबर को सड़क पर उतरेंगी। इससे प्रदेश भर में बीएलओ, फायलेरिया जनगणना, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाना, किशोरी किशोरियों को आयरन सहित अन्य स्वस्थ्य सेवाएं, पल्स पोलियो ड्रॉप, कुष्ट उन्मूलन कार्य, टीबी मरीजों का चिन्हांकन एवं दवा सेवन कराने जैसे काम प्रभावित होंगी। मध्यप्रदेश आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका संघ की प्रदेश महामंत्री संगीता श्रीवास्तव और मध्यप्रदेश मजदूर संघ के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह ने कहा कि अब पानी सिर से ऊपर उठ गया है। अप्रैल मई से वेतन नहीं मिल रहा है। जो मिल रहा है वह भी टुकड़ों में दे रहे हैं। ऐसे में घर चलाना मुश्किल हो गया है। हम 30 सितंबर को सड़कों पर उतरेंगे। अगर फिर भी सरकार ने 15 दिनों के अंदर हमारी मांगें नहीं मानी तो हम उग्र प्रदर्शन करेंगे।

किराए के कमरे में चल रहे केंद्र

संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि आंगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन किराए के भवन में हो रहा है। 16 वर्ष के बच्चों का अनौपचारिक शिक्षा एवं 6 माह से 6 वर्ष के बच्चों को पोषण आहार उपलब्ध कराने का कार्य किया जाता है। महिला एवं बालविकास विभाग के माध्यम से पिछले 35 वर्षों से आंगनबाड़ी के माध्यम से पूरी निष्ठा के साथ कार्य किया जा रहा है। शासन की सभी जनहित योजनाओं का हमारे माध्यम से ही कराया जा रहा है। सिर्फ 10 हजार के मानदेय पर बिना किसी समय अवधि निर्धारण के अनवरत सेवाएं दे रहें हैं।

सभी तरह के कार्य कराए जा रहे

महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यों के साथ-साथ अतिरिक्त समय-समय पर अन्य दिनों के कार्य जैसे बीएलओ, फायलेरिया जनगणना, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाना, किशोरी किशोरियों को आयरन सहित अन्य स्वास्थ्य सेवाएं एवं योजनाओं का लाभ दिलाना, पल्स पोलियो ड्रॉप पिलाना, कुष्ट उन्मूलन कार्य टीबी मरीजों का चिन्हांकन एवं दवा सेवन कराना, आयुष कार्यक्रम आदि में भी ड्यूटी कराई जाती है।

घर चलाना मुश्किल हो गया

तीन-तीन चार-चार महीनों तक भुगतान नहीं किया जा रहा है। सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं सहायिकाओं, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। परिवार का भरण-पोषण तक नहीं हो पा रहा है। कई बार मांग करने के बाद भी प्रशासन की नींद नहीं खुल रहा है। ऐसे में अब हमारे पास सड़क पर उतरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।

यह हैं मांग

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