,मुनेश त्यागी
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी ताकतें, भारत के क्रांतिकारी रूपांतरण की बात कर रही थीं, क्रांति द्वारा समाज को पलट कर किसानों और मजदूरों का राज काम करना चाह रही थीं। मगर इसी बीच हमारा देश आजाद हुआ। भारत ने अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ा। आजादी मिलने के बाद भारत की जनता ने अपनी मुक्ति के ख्वाब देखे थे, मगर तभी भारत के कम्युनिस्टों ने उस समय की परिस्थितियों के अनुसार उसे एक “झूठी आजादी” बताया था।
आज आजादी के 75 साल में जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे उस समय भारत की कम्युनिस्ट ताकतें ठीक कह रही थीं। आजादी के बाद नेहरू की सरकार ने जनता को राहत देने के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए। पब्लिक सेक्टर को कायम किया, जनता को शिक्षा और रोजगार के साधन मुहैया कराए। मगर 90 के दशक तक आते-आते यह सब बदल सा गया और आजादी की भावना को लगभग समाप्त कर दिया गया और1991 में एक नए निजाम का आरंभ किया गया जिसे उदारीकरण के निजाम से जाना जाता है।
नव उदारवादक के इस निजाम ने भारत की जनता पर संकटों के पहाड़ खड़े कर दिए हैं। जनता रोजी रोटी स्वास्थ्य रोजगार रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रक्षा के सपने लगभग चकनाचूर हो गए हैं और अब जनता की परवाह न करते हुए चंद पूंजीपतियों के पेट और तिजोरियां भरी जा रही हैं। भारत के क्रांतिकारी आंदोलन और वामपंथी ताकतों ने मिलकर इस जनविरोधी निजाम को और उसकी ताकतों को बदलने की पूरी कोशिश की है, वे आज भी कोशिश कर रही हैं मगर अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही हैं। इस जनविरोधी और पूंजीवादी निजाम ने भारत के क्रांतिकारी परिवर्तन के अभियान को भी धीमा कर दिया है और भारत के क्रांतिकारी रूपांतरण के रास्ते में निम्नलिखित अवरोध खड़े कर दिए गए हैं और इसके निम्नलिखित कारण हैं,,,,
पहला, सांप्रदायिकता ताकतों ने इस देश का क्रांतिकारी रूपांतरण लगभग रोक दिया है। उन्होंने हिंदू मुसलमान के नाम पर जनता को विभाजित कर दिया है। उसकी एकता को तोड़ दिया है, अब जनता खंड खंड हो गई है और क्रांति और क्रांतिकारी सोच तो उसके जैसे एजेंडे में ही नहीं रह गई है।
दूसरा, जातिवादी ताकतों ने भी भारत की जनता को जनता की एकता को तोड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने जनता को जातिवाद के कोढ़ में बांटकर उसकी एकता तोड़ दी है। उस की एकता को जातिवाद के नाम पर बांट दिया है और अब जनता जातियों में बंटकर खड़ी हो गई है, इन जातिवादी ताकतों ने जनता की क्रांतिकारी मुक्ति का रास्ता और कठिन बना दिया है।
तीसरा, भारत के क्रांतिकारी रूपांतरण को रोकने के लिए एनजीओ ने भी काफी बड़ी भूमिका अदा की है। ये एनजीओ के संगठन आज भारत के किसानों, मजदूरों, नौजवानों और जनता को क्रांतिकारी रूपांतरण की तरफ जाने से रोक रहे हैं और इन सब ने मिलकर उनकी राह को अवरुद्ध कर दिया है, उन्हें भटका दिया है और उन्हें क्रांति से गुमराह कर दिया है। क्रांति आज एनजीओ की गतिविधियों के कारण जनता के अधिकांश लोगों के एजेंडे में नहीं है।
चौथा, पूंजीपतियों के पैसों पर पलने वाले दल आज जनता की, किसानों मजदूरों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए कोई काम नहीं कर रहे हैं। वे जनता से बिल्कुल विमुख हो गए हैं। जनता के कल्याण की नीतियां उनके एजेंडे में नहीं हैं। बस अब उनका एक ही एजेंडा है,,, शाम दाम दंड भेद की नीतियों का पालन करके सत्ता में बना रहा जाए और पूंजीपतियों की तिजोरियां भरी जाती रहें, वे अपना घर भरते रहें, बस यही उनका एजेंडा रह गया है। कांग्रेस, बीजेपी और दूसरे कई दलों ने यह भूमिका बखूबी निभाई है। इन नेताओं ने भी भारत में क्रांतिकारी रूपांतरण को रोक रखा है।
पांचवां, जनता का आपसी बिखराव क्रांति के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ा हो गया है क्योंकि इस देश के शासक वर्ग को पता है कि जब जनता एकजुट होकर, जागृत होकर संघर्ष करेगी, लड़ाई के मैदान में आएगी और क्रांति के तरफ बढ़ेगी, तब भारत के क्रांतिकारी परिवर्तन को कोई नहीं रोक सकता, इसलिए उन्होंने हर संभव उपाय कर के जनता को जातियों में बांट दिया है, उसकी अखंडता, उसकी एकता को खंडित कर दिया है और उसे क्रांतिकारी रूपांतरण के एकजुट संघर्ष से बहुत दूर कर दिया है।
छटा, जनता के बड़े हिस्से में क्रांतिकारी चेतना का बिल्कुल अभाव है। क्रांति तो जैसे उसके एजेंडे में ही नहीं है और आज उसके एजेंडे में सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ, और अपना परिवार, बस यही उसके एजेंडे में है। उसका क्रांति से या क्रांतिकारी परिवर्तन से कुछ लेना देना नहीं है और क्रांति उसके एजेंडे में ही नहीं है। क्रांति विरोधी विभिन्न कारणों ने क्रांतिकारी चेतना को विकसित ही नहीं होने दिया।
सातवां, भारत में क्रांतिकारी ताकतों में भयंकर बिखराव है। भारत की क्रांतिकारी ताकतों में बात बात को लेकर झगड़ा है। देश की परिस्थितियों के अनुसार उनका कोई एजेंडा नहीं है, भारत के क्रांतिकारी रूपांतरण को लेकर उनकी अलग अलग राय और समझ है और ऐसे लगता है कि जैसे लेफ्ट फ्रंट को छोड़कर अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टियां और अधिकांश कम्युनिस्ट धडे क्रांति के विकास को रोक रहे हैं, वे उसके मार्ग में बाधा बनकर खड़े हो गए हैं और वे इस बिखराव से, इस लुटेरे पूंजीपति निजाम की सबसे ज्यादा मदद कर रहे हैं।
आठवां, समाज में फैला भ्रष्टाचार भी क्रांति को रोक रहा है। भ्रष्टाचार की वजह से आदमी अपनी समस्याओं को पैसे के बल पर अकेले अकेले दूर करना चाहता है। वह एकजुट संघर्ष नहीं करना चाहता, वह एकजुट संघर्ष में भाग भी लेना नहीं चाहता और यह भावना समाज के सामूहिक क्रांतिकारी प्रयास को रोक रही है क्योंकि वह आदमी संगठन को छोड़ देता है, संगठित शक्ति में विश्वास करना बंद कर देता है और अपनी समस्याएं अकेले-अकेले भ्रष्टाचार के बल पर निपटाना चाहता है। इस वजह से भी क्रांतिकारी रूपांतरण में एक बड़ी बाधा आई है।
नौवां, पूंजीपति वर्ग में भारत में क्रांतिकारी प्रचार प्रसार को आगे बढ़ने से लगभग रोक दिया है क्योंकि मीडिया पर उन्हीं का अधिकार है। वे क्रांति के बारे में जनता को नहीं बताना चाहते, क्रांतिकारी गतिविधियों से जनता को अनभिज्ञ रखना चाहते हैं। उनके सफ़ल कार्यक्रमों की जानकारी भी जनता को नहीं देते। इसके अलावा क्रांतिकारी ताकतें भी इतनी सक्षम नहीं है कि वे परिस्थितियों के अनुसार बड़े पैमाने पर क्रांतिकारी कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार आम जनता के बीच में कर सकें। इसलिए भी भारत के बहुत सारे लोग क्रांतिकारी व्यवस्था, क्रांतिकारी महान कारनामों और समाजवादी व्यवस्था बारे में नहीं जानते हैं, इसलिए वे क्रांति करना या क्रांतिकारी समाज बनाने की उनकी कोई सोच नहीं है।
दसवां, भारतीय समाज में फैले अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंड भी आदमी को मानसिक रूप से बौना बना रहे हैं, आस्था और विश्वास का साम्राज्य भारत की जनता को बड़े पैमाने पर गुमराह कर रहा है और उसे अविवेकी बना रहा है। पाखंडों और अंधविश्वास के कारण आदमी भगवान और देवी देवताओं से अपनी समस्याओं का समाधान चाह रहा है। भगवान और धर्मांधता के विश्वास ने जनता के विवेक को हर लिया है। आदमी आज इस आस्था और विश्वास की वजह से अपनी मुक्ति के रोजगार के स्वास्थ्य के सुरक्षा के रोजगार के रास्ते नहीं ढूंढ रहा है। इन समस्याओं पर विचार नहीं कर रहा है और उसका पूरा मानना है कि भगवान और देवी देवता ही उसकी सब समस्याओं का हल कर देंगे। उसने अब वैज्ञानिक संस्कृति को पढ़ना और समझना और रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करना लगभग छोड़ दिया है। इस मानसिकता ने आदमी को बौद्धिक रूप से बौना और अपाहिज बना दिया है और उसे भारत के क्रांतिकारी रूपांतरण से बिल्कुल विमुख कर दिया है, अलग कर दिया है।