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 नूंह मे 80% मुस्लिम:यहां के मेव मुस्लिम बाबर के खिलाफ लड़े

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साल 1527 की बात है यानी आज से करीब 500 साल पहले। मुगल शासक बाबर और राजपूत राजा राणा सांगा के बीच उत्तर भारत पर वर्चस्व के लिए खानवा की जंग चल रही थी। इसमें हसन खान मेवाती राजपूतों का साथ दे रहे थे। बाबर के कब्जे में हसन खान का बेटा था। बाबर ने हसन के बेटे को रिहा कर दिया और इस्लाम की दुहाई देते हुए अपने खेमे में मिल जाने का प्रस्ताव दिया।

हसन खान मेवाती ने इसके बावजूद राणा सांगा का साथ दिया। इस जंग में राणा सांगा की हार हुई और हसन खान को अपनी जान गंवानी पड़ी। हसन खान मेवात के मेव मुसलमान थे। ये समुदाय पिछले कुछ दिनों से फिर चर्चा में है। दरअसल, हरियाणा का मेवात इलाका हिंसा में झुलस रहा है। जिस नूंह जिले से हिंसा की चिनगारी उठी, वहां करीब 80% आबादी मुस्लिम है। इनमें ज्यादातर मेव मुसलमान हैं।

मेवात के मेव मुसलमानों का ओरिजिन, इतिहास, रीति-रिवाज और किस्से…

ओरिजिन: ईरान से आए या हिंदू राजपूतों ने धर्म बदल लिया

हरियाणा का पूर्वी मेवात जिला और राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहां मेव करीब 1 हजार साल से रह रहे हैं। मेव मुस्लिमों के ओरिजिन को लेकर कई थ्योरी हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि इनकी जड़ें ईरान में हैं। वहीं दूसरे इन्हें मीणा जनजाति से जोड़ते हैं।

एक थ्योरी के मुताबिक मेव हिंदू राजपूत थे। इन लोगों ने 12वीं और 17वीं शताब्दी के बीच औरंगजेब के शासनकाल तक इस्लाम अपना लिया था। ब्रिटिश एरा में मीणा से मेव बनने की थ्योरी सबसे पहले एथनोग्राफर और अलवर स्टेट के पॉलिटिकल एजेंट मेजर पी डब्ल्यू पॉवलेट ने दी। उन्होंने बताया कि मेव समुदाय मीणाओं से जुड़ा है।

पॉवलेट ने 1878 के उलवुर के गजेटियर (उलवुर अब अलवर) में लिखा है- मेव और मीणा शब्दों के बीच समानता से पता चलता है कि यह मीणा से निकला हुआ छोटा रूप है। दोनों समुदायों (सिंगल, नाइ, डुलोत, पिमडालोत, डिंगल, बालोट) में कई कुलों के नाम समान हैं।

एक और कहानी खान उपाधि से जुड़ी हुई है। साल 1355 में कोटला किले के जादौन राजपूत राजा लाखन पाल के दो बेटे कुंवर सोनपर पाल और कुंवर समर पाल दिल्ली सल्तनत में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के यहां काम करते थे।

एक बार फिरोज शाह तुगलक शिकार पर गए थे। दोनों भाई कुंवर सोनपर पाल और समर पाल भी उनके साथ थे। इस दौरान एक बाघ ने सुल्तान पर हमला कर दिया। ऐसे में कुंवर सोनपर पाल ने अपने शानदार तीरंदाजी कौशल से बाघ को मारकर सुल्तान को बचा लिया।

इसके बाद सुल्तान ने दोनों भाइयों को खान की उपाधि दी और कुंवर सोनपर पाल का नाम नाहर खान कर दिया और कुंवर समर पाल का नाम बदलकर छजू खान कर दिया। इतिहासकार शैल मायाराम ने ‘अगेंस्ट हिस्ट्री, अगेंस्ट स्टेट: काउंटरपरस्पेक्टिव फ्रॉम द मार्जिन्स’ में इसका जिक्र किया है।

साल 1372 में फिरोज शाह तुगलक ने मेवात का शासन राजा नाहर खान मेवाती को सौंप दिया था। राजा नाहर खान ने ही मेवाती शासकों को ‘वली-ए-मेवाती’ उपाधि दी थी। उनके वंशज 1527 तक इसी उपाधि का इस्तेमाल करते रहे। बाबर से लड़ने वाले हसन खान इन्हीं के वंशज थे।

हसन खान मेवाती मेवात वंश के राजा थे, जिनकी राजधानी अलवर थी।

1871 की जनगणना में हिंदू थे, 1901 से मुस्लिम

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर हिलाल अहमद के मुताबिक 1871 में पहली जनगणना में मेव को हिंदुओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। वहीं 1901 की जनगणना में मुसलमानों के रूप में।

मेव पहले हिंदू और इस्लामी दोनों रीति-रिवाजों का पालन करते थे। हिंदू और मुस्लिम महिलाएं मिलकर कुओं की पूजा किया करती थीं, जिसे ‘हकीका’ कहा जाता था, लेकिन 1926 में जब आर्य समाजियों ने शुद्धि और संगठन आंदोलन शुरू किया तब तब्लीगी जमात ने मेव समुदाय को फिर से इस्लामी खेमे में शामिल कर लिया। कद-काठी और पहनावे को देखें तो मेव मुस्लिमों की फेटा पगड़ी और गैर मेव की पगड़ी एक जैसी है।

महिलाएं बुर्का नहीं बल्कि सिर पर हल्का घूंघट रखती हैं। वे हिंदुओं की तरह एक ही गोत्र में शादी नहीं करते। हालांकि, इस्लाम चचेरे भाइयों के साथ शादी की अनुमति देता है। कई परिवार अभी भी बच्चों को उनके हिंदू नामों से बुलाते हैं। जैसे अमर सिंह, चांद सिंह, सोहराब सिंह मेव। इनमें खान जैसे उपनाम उनकी मुस्लिम पहचान को व्यक्त करने के लिए जोड़े गए हैं।

गांधी जी के मनाने के बाद पाकिस्तान नहीं गए मेव मुसलमान

इतिहासकार शैल मायाराम ने साल 2000 में एक लेख में लिखा- 1947 में भारत का बंटवारा होने के बाद मेवात रीजन में भी सांप्रदायिक दंगे हुए। उस वक्त अलवर और भरतपुर स्टेट में लगभग 2 लाख मेव रहते थे। भरतपुर में इस दौरान 30 हजार मेव मारे गए। यह आधिकारिक आंकड़ा था। वहीं अलवर में मारे गए और विस्थापितों की संख्या का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

इस दौरान जो लोग हिंसा से बच गए वे नूंह, रेवाड़ी और सोहना के वेटिंग कैंपों में पहुंचे जो उस वक्त पंजाब में था। वेटिंग कैंप में लोग तब तक रहते थे, जब तक उन्हें पाकिस्तान भेज नहीं दिया जाता था।

इसी दौरान अखिल भारतीय मेव पंचायत के सचिव और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता अब्दुल हई ने कम्युनिस्ट नेता पीसी जोशी से बात की। माना जाता है कि जोशी ने कहा था कि केवल गांधी ही शांति ला सकते हैं। मेव मुस्लिमों के सबसे सम्मानित और प्रतिष्ठित नेता चौधरी यासीन खान के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने 20 सितंबर 1947 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी से मुलाकात की।

इस दौरान मेवों ने गांधी जी से कहा कि हम पाकिस्तान जाने के बजाय मरना पसंद करेंगे। इसी दौरान गांधी जी को घासेड़ा आने का न्योता दिया गया। यहां पर भी भरतपुर और अलवर से आए मेव शरणार्थी रुके हुए थे।

इसके बाद गांधी जी घासेड़ा गांव पहुंचे। उन्होंने मेवों को देश की रीढ़ की हड्‌डी बताया और पाकिस्तान नहीं जाने की सलाह दी। इसके बाद करीब 50 फीसदी मेव पाकिस्तान नहीं गए।

फिलहाल 20 लाख मेव मुख्य रूप से हरियाणा के मेवात जिले, अब नूंह और राजस्थान के निकटवर्ती अलवर और भरतपुर में फैले हुए हैं।

अब जानते हैं कि नूंह में हिंसा कैसे भड़की

सोमवार को विश्व हिंदू परिषद की अगुआई में हिंदू संगठन ब्रज मंडल यात्रा निकाली जा रही थी। यह नूंह के नल्हड़ स्थित नलहरेश्वर मंदिर में जलाभिषेक के बाद बड़कली चौक से होती हुई फिरोजपुर-झिरका के पांडवकालीन शिव मंदिर और पुन्हाना के सिंगार के राधा कृष्ण मंदिर तक जानी थी।

पुलिस के मुताबिक, दोपहर एक बजे यात्रा बड़कली चौक पर पहुंची तो समुदाय विशेष के लोगों ने नारेबाजी करते हुए पथराव कर दिया। इसके बाद हिंसा बढ़ती गई। पूरे शहर में उपद्रवियों ने 6 घंटे तक जमकर बवाल काटा। 150 से ज्यादा गाड़ियां फूंक दी गईं। होमगार्ड के 2 जवानों समेत 6 लोगों की मौत हो गई।

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