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यथार्थ में झांकना ही क्रांति है?

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शशिकांत गुप्ते इंदौर

सन 1977 के सत्ता परिवर्तन के बाद गांधीजी के अनुयायी स्वतंत्रता सैनानी, समाजवादी विचारक,चिंतक लोकनायक जयप्रकाश नारायणजी ने वैचारिक क्रांति का आहवान किया था।
वैचारिक क्रांति से तात्पर्य आमजन के मानस में वैचारिक चेतना को जागृत करना।
यथास्थितिवादी कभी भी नहीं चाहतें हैं कि,समाज में वैचारिक जागृति हो। कारण वैचारिक जागृति होने से हरक्षेत्र में यथास्थितिवाद को चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसे ही परिवर्तन कहतें हैं।
परिवर्तन का पर्यायवाची शब्द ही क्रांति है।
महान स्वतंत्रत सैनानी शहीदेआजम भगतसिंह ने कहा है, बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती। क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है
समाज में जब विचारविहीनता व्याप्य होती है तो क्रांति नहीं,भ्रांति फैलती है।
वर्तमान में राजनैतिक क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ भ्रांति का वतावरण ही समाहित हो रहा है।
इसका प्रत्यक्ष उदारहण हाल ही सम्पन्न चुनावों के परिणाम है।
एक जगह झाड़ू को प्रसन्न कर दिया,एक जगह बेतहाशा कीचड़ फैला दिया। फैलाए गए कीचड़ में सारी बुनियाद समस्याएं छिप गई।
एक प्रान्त में हाथ की लाज रख रखते हुए कीचड़ को फैलने से रोका साथ ही झाड़ू को नकार दिया।
बहरहाल विचारविहीनता के कारण भ्रांति फैलने से राजनेताओं में अपने मुँह मिया मिठ्ठू बनने की प्रवृत्ति जागती है। इसीकारण अपनी छद्म उपलब्धियों को विज्ञापनों दर्शया जाता है।
विज्ञापनों में दर्शाई जाने वाली उपलब्धता से राजनीति का स्वरूप ढांक के तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
भ्रांति नादान लोगों में सिर्फ भावनाएं जागृत करती है।
भावनाएं कभी भी स्थाई नहीं होती है। भावनाएं से बाहर आकर जब लोग यथार्थ में झाँकते हैं तब वे स्वयं को ठगा सा महसूस करतें हैं। जिसे महिमामण्डित किया वह वास्तव में क्या है?
इस मुद्दे पर प्रख्यात शायर जो तरन्नुम के नाम से प्रसिद्ध शायर है। नईम अख़्तरजी
का ये शेर प्रासंगिक है।
मुन्तख़ब होकर जिस रोज़ से वो आया हुआ है
आलमी अलम में कोहराम मचा हुआ है
मुन्तख़ब का अनुवाद चुनाहुआ चयनित
आलमी आलम =पूरा संसार
भावनाएं हमेशा अल्पायु होती है।
इस शायर नईम अख़्तर फरमातें हैं।
ये हवाएं उसको कहीं का रहने नहीं देगी
कागज़ के पंख यहाँ जिसने लगाएं हुएं हैं
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शशिकांत गुप्ते इंदौर

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