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एक नया ‘भीमाकोरेगांव’ आकार ले रहा है…. ‘एक दिन आप पर भी ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमा’ चलेगा.’

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मनीष आज़ाद

5 सितम्बर 2023 की सुबह ठीक 5.30 बजे इलहाबाद में मेरे घर की ओर जाने वाली गली में दंगों में इस्तेमाल होने वाला पुलिस का ‘वज्रयान’ खड़ा था. हम और अमिता ‘मार्निंग वाक’ के लिए निकलते हुए यही बात कर रहे थे कि ये दंगा कहां हुआ है. तभी मेरी मां का फोन घनघनाता है. हम हैरान कि इतनी सुबह अम्मा ने फोन क्यों किया. मन में तुरंत कौधा कि शायद पूजा का फूल लाने के फोन किया होगा. लेकिन दूसरी तरफ किसी पुरुष कि आवाज थी –

’आप कौन ?’

‘हम NIA से है. जल्दी घर आइये.’

हम तत्काल समझ गए कि गली में खड़े ‘वज्रयान’ का वज्र अब किस पर गिरने वाला है. हमने तुरंत सीमा आज़ाद को फोन लगाया. उसका फोन बंद था. हमने कृपा को फोन लगाया, उसका फोन भी बंद था. हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली वकील सोनी को फोन लगाया, उसका फोन भी बंद. मुझे कोस्टा गावरास की फिल्म ‘Z’ याद आ गयी.

बहरहाल 83 साल के मेरे पिता और 82 साल की मेरी मां की इस समय क्या हालत होगी, इसे सोचकर कलेजा मुंह को आने लगा. सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी. अमिता ने मेरा हाथ दबाया तो थोड़ा साहस आया. हम जैसे ही घर जाने वाली गली में मुड़े तो वहां पुलिस की दो जीप, 2 कार, वज्रयान, कम से कम 20 पुलिस वाले, उनके साथ सिविल ड्रेस में करीब 15 लोग. सभी AK-47 जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस.

मेरे मां-पिता अभी भी इन हथियारबंद लोगों से घिरे भयानक सदमे में थे. दोनों का फोन एक पुलिस वाले के हाथ में था. मैंने नजदीक पहुंचते ही लगभग चीखते हुए कहा कि ‘मेरी बहन सीमा कहां है ? उसका क्या किया आप लोगो ने ? उसका फोन बंद क्यों आ रहा है ?’

फिर मुझे थोड़ा ‘पैनिक अटैक’ सा आ गया और मैं यही बात कहकर तेज़-तेज़ चिल्लाने लगा. मेरी मां ने मुझे चिपटाते हुए लगभग रोते हुए फुसफुसा कर कहा कि ‘शांत हो जाओ, नहीं तो ये लोग पकड़ कर ले जायेंगे.’

तभी पुलिस कि घेरेबंदी को चीरते हुए NIA का एक ऑफिसर सामने आया और बोला कि – ‘आप जो समझ रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है. उनके घर पर भी वही हो रहा है, जो यहां होने जा रहा है.’

मैंने उसी रौ में पूछा कि – ‘क्या होने जा रहा है ?’

उसने कहा कि – ‘तलाशी होने जा रही है.’

उसके बाद उन्होंने लगभग 12 घंटे पूरे घर को उलट-पुलट दिया. मेरी सारी किताबें, आंदोलनों के पर्चे, पत्रिकाएं सब पूरे कमरे में बहुत ही बेतरतीबी से फैला दिया. यह देखकर अचानक मुझे एक ‘सुर्यलिस्ट’ फीलिंग हुई कि जैसे किसी का बेरहमी से खून कर दिया गया हो और खून चारों तरफ बिखरा हो. उससे भी ज़्यादा कष्टदाई था कि उन्होंने हमारे बुज़ुर्ग अम्मा और पापा की अलमारियों की भी तलाशी ली.

मेरी मां पिछले 50 साल से उसमें अपना गहनागुरिया और जो भी चाहती थी सहेजती थी. हम लोगों ने कभी हिम्मत नहीं की उनकी अलमारी पर हाथ लगाने की. उन्होंने उनकी बुजुर्गियत का भी ख्याल नहीं रखा. पिता जो असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के पद से रिटायर हुए, और अभी भी मुफ्त में लेबर लॉ की कंसल्टेंसी करते हैं, उन्होंने उनकी फाइल्स वगैरह उलट पलट दी. समाज में उन दोनों कि एक गरिमा और हैसियत है. NIA के इस कुकृत्य ने उनके सम्मान पर गहरी ठेस लगाईं है. हमारे लगातार विरोध के बाद भी उन्होंने उनके कमरों और सामान की तलाशी ली, यह बेहद आपत्तिजनक है.

तलाशी के दौरान बीच बीच में हास्यास्पद सवाल कि आप लोग नास्तिक क्यों है ? मुस्लिमों-दलितों-आदिवासियों-नक्सालियों के समर्थन में ही क्यों लिखते हैं ? यह पेपर-कटिंग आपके पास क्यों है ? यह किताब आपके पास क्यों है ? इतना क्यों पढ़ते हैं आदि आदि.

इसके बाद उन्होंने हम दोनों के लैपटॉप, दो मोबाइल फोन, 2 हार्डडिस्क जब्त कर लिया. सच बताऊं तो मुझे सबसे ज्यादा दुःख इन दोनों हार्डडिस्क के जाने का है. इसमें पिछले दस सालों से मैंने फिल्मों का अच्छा खासा संग्रह किया था. मैंने उनसे बहुत अनुरोध किया कि मेरी फिल्में छोड़ दो, लेकिन वे नहीं माने. उन्होंने बहुत रूखे तरीके से कहा कि हमें ऊपर से आदेश है. हम कुछ नहीं कर सकते.

मैंने बहुत दुःख और क्षोभ में उनसे कहा कि क्या आप लोगों का अपना विवेक नहीं है ? सिर्फ आदेश का पालन करना आता है ?उसने फिर ढिठाई से कहा कि आप जो समझें.

मैंने गुस्से में उसे ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमे’ का हवाला दिया कि यहूदियों को गैस चैम्बर में मारने वाले लोगों ने भी अपनी सफाई में यही तर्क दिया था कि हमने तो सिर्फ आदेश का पालन किया था. उस समय जजों ने सर्वसम्मति से यह कहा था कि ‘आदेश पालन के साथ अपनी नैतिकता और विवेक का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए.’ अमिता ने गुस्से में यहां तक कह दिया कि ‘एक दिन आप लोगों पर भी ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमा’ चलेगा.’

खैर उन्हें यह सब बातें उनके सर के उपर से गुजर गयी. लिहाजा किसी ने इसका जवाब नहीं दिया. बाद में NIA के एक सदस्य ने धीमे से पूछा कि ‘ये ‘न्यूरेमबर्ग’ कौन थे ?’ मुझे हंसी आ गयी. मैंने कहा जाकर गूगल कर लेना.

उनका कहना था कि कलम हथियार से ज्यादा ताक़तवर होती है. आप इसका इस्तेमाल करके लोगों का विचार बदलते हैं और जनता को भड़का कर सत्ता को उखाड़ना चाहते हैं. यह बड़ा अपराध है. आपका लिखना पढ़ना ही अपराध है.

लगभग यही प्रक्रिया सीमा आजाद, विश्वविजय, रितेश, सोनी, राजेश आजाद, कृपाशंकर ,बिन्दा और भगतसिंह स्टूडेंट मोर्चा के सदस्यों के साथ किया गया. चूंकि सभी का फोन NIA ने जब्त कर लिया है, इसलिए सीमा को छोड़कर किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा है. किसी तरह हिमांशु जी से संपर्क हुआ तो उन्हें मैंने अपनी कहानी सुनाई. अब उन्हीं के माध्यम से आप तक भी यह कहानी पहुंच रही है.

आज के फासीवादी निज़ाम में यह कहानी किसी की भी हो सकती है. यह समझना जरूरी है. हमारे खिलाफ UAPA के तहत उन्होंने केस दर्ज कर लिया है. गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है. एक नया ‘भीमाकोरेगांव’ उनके भ्रूण में आकार ले रहा है. लेकिन आप सबकी एकजुटता और समर्थन के कारण हमारे हौसले बुलंद हैं. क्रांतिकारी कवि वरवर राव के शब्दों के कहें तो –

‘हम गर्ज़ना करने वाले समुद्र न भी हों
फिर भी हम समुद्र की गर्जना हैं.
पूरब पश्चिम को मिटा देने वाले
उत्तर दक्षिण को मिटा देने वाले
तूफ़ान नहीं हैं फिर भी
तूफ़ान से प्रेम करने वाले गीत हैं हम.
तूफ़ान का संकेत हैं हम’

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