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जनता से गुप्त रखने का एक नायाब तरीका चुनावी बाण्ड योजना

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डॉ. शशि तिवारी

चंदे का धन्धा भी बड़ा अजीब है हम चंदा तो चाहते है लेकिन गुप्त। उजागर रूप से चंदा देने में कई दिक्कते आती है मसलन व्यक्ति को अहंकार हो सकता है, व्यक्तियों के बीच जलन का भी कारण हो सकता है साथ ही कुछ वैधानिक झंझटे मसलन इतना पैसा कहां से आया, कर चुकाया या नहीं, कमाए गए पैसे का स्त्रोत क्या है, धन्धा क्या है आदि-आदि। वहीं गुप्त चंदे की महिमा आदि-अनादि काल से चली आ रही है और बिना झंझट के रंग भी चौखा आता है।

राजनीतिक पार्टियों के निहितार्थ के चलते एक बीच का रास्ता चंदे को पारदर्शिता का चोला पहना दिया। चंदे को आप जनता से गुप्त रखने का एक नायाब तरीका 2018 में चुनावी बाण्ड की योजना एस.बी.आई. के माध्यम से निकाली। इसमें बाण्ड खरीदने वाला व्यक्ति बैंक को तो अपनी जानकारी देता था लेकिन बैंक ये नाम उजागर नहीं करती थी दूसरी ओर चुनाव आयोग को भी इन दान दाताओं के नाम पता नहीं चलते थे। इस तरह यह पारदर्शी होते हुए भी अपारदर्शी हो गई। इससे शासक राजनीतिक पार्टियों को परोक्ष रूप से अप्रत्याशित लाभ हुआ, विरोधी राजनीतिक पार्टियां इसे चाहकर भी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना पा रही थी। चुनावी बाण्ड की योजना अच्छे भाव के साथ लाई गई थी लेकिन, समय के साथ इसकी बुराईयां भी प्रकट होने लगी। लोगों के मध्य गलत संदेश जाने लगा। वास्तव में चुनावी बाण्ड एक वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है इसकी व्यवस्था पहली बार वित्त मंत्री ने 2017-2018 के केन्द्रीय बजट में की थी। बाण्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है। बाण्ड खरीदने वाला एक हजार से लेकर एक करोड़ रूपये तक का बाण्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी के.वाई.सी. डीटेल्स में देनी होती है। फिर खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बाण्ड दान करना चाहता है उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला होना चाहिये। दानदाता के बाण्ड दान करने के 15 दिनों के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरीफाइड बैंक अकाउण्ट से कैश करवानाहोताहै।
इस चुनावी बाण्ड योजना की वैधता को चुनौती एक याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया एवं कहा कि, राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा और कौन लोग देते है इसका खुलासा होना ही चाहिये। वास्तव में 2018 में जब यह चुनावी बाण्ड योजना प्रस्तावित की गई थी तब यह कहा गया था कि, आप बैंक से बाण्ड खरीद सकते है एवं पैसा पार्टी को दे सकते हैं जिसे आप देना चाहे, लेकिन आपका नाम नही बताया जायेगा। वास्तव में यह सूचना का अधिकार के विरूद्ध हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर.गवई, जस्टिस जे.बी.पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा को संविधान पीठ ने अपने अहम फैसले में चुनावी बाण्ड को असंवैधानिक करार देते हुए इन्हें रद्द कर दिया। चुनावी बाण्ड योजना के लिये आयकर कानून एवं जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन भी रद्द कर दिये गये। आगे कहा योजना में गोपनीयता का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत्् सूचना का अधिकार का भी यह उल्लंघन करता हैं। सुप्रींम कोर्ट ने माना चुनावी बाण्ड से कारर्पोरेट चंदे की जानकारी नहीं मिलती एवं इससे यह भी पता नहीं चलता कि, क्या वे किसी खास नीति के समर्थन में
चंदा दे रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने चुनावी बाण्ड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया कि, अब तक राजनीतिक पार्टियों को मिले बाण्ड का ब्यौरा 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को सौंपे एवं 13 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को सौंपे एवं 13 मार्च 2024 तक चुनाव आयाग अपनी वेब साईट पर इसे सार्वजनिक करें। इससे देश को पता चलना चाहिये कि, पिछले 5 सालों में किस पार्टी को कितना चंदा किसने दिया। साथ ही यह भी कहा कि, जिन राजनीतिक पार्टियों ने बाण्ड अभी तक नहीं भुनायें हैं उन्हें खरीददारों के खाते में चुनावी बाण्ड की राशि भी लौटानी पड़ेगी।
जबकि, अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने चुनावी बाण्ड योजना का समर्थन करते हुए कहा कि, नागरिकों को उचित प्रबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता। कोर्ट में इस तर्क को एक सिरे से नकार दिया था।
सी. जे. आई. डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने अपने 158 पेज के फैसले में बताया चुनाव प्रक्रिया की अखण्डता सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हमारे लोकतंत्र में नागरिकों को जाति वर्ग के भेद के बिना समानता की गारंटी दी गई है। यहां पर हर मतदाता के वोट का एक जैसा मूल्य है। लोकतंत्र सिर्फ चुनाव से शुरू और खतम नहीं होता। चुनावी बाण्ड में कई खामियां है आंकड़े बताते है कि, 94 प्रतिशत चन्दा 1 करोड़ रूपये के मूल्य वर्ग में दिया गया है। यह संपन्न वर्ग को जनता के सामने गोपनीय बनाता है पर सियासी दलों के लिए नहीं।
वहीं जस्टिस संजीव खन्ना ने गुप्त चंदा दानदाता एवं पार्टी के बीच एक मनीलांड्रिग की तरह बताया। इस तरह हम देखते है कि, ये चुनावी बाण्ड पारदर्शिता में कमी एवं एक तरह की मनी लांड्रिंग हैं। अब चूंकि, 6 मार्च निकल चुका है एवं 13 मार्च की समय सीमा भी निकट है लेकिन अभी तक कोई गतिविधि उजागर करने की मंशा नहीं दिख रही है। चूंकि लोकसभा के चुनाव नजदीक है, हो सकता है अभी ये मामला और टले।

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