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आधार और वोटर आईडी लिंक कानून है निजता विरोधी

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सुसंस्कृति परिहार

 आपको शायद मालूम होगा देश में  एक ऐसा कानून बन रहा है जिसके तहत आधार कार्ड (Aadhaar Card) और वोटर कार्ड (Aadhaar Card) को एक दूसरे से लिंक कराना होगा। मौजूदा शीतकालीन सत्र में सरकार की तरफ से कानून मंत्री किरण रिजिजू ने आधार और वोटर आईडी लिंक करने से जुड़ा विधेयक लोकसभा में पेश किया था जिसका आशय समझ से परे है।

कहां जा रहा है किआधार और वोटर आईडी लिंक होने से चुनाव कानून संशोधन विधेयक 2021 के मतदाता सूची तैयार करने वाले अधिकारियों को अब आधार कार्ड मांगने का अधिकार होगा। हालांकि, अभी इस विधेयक में आधार कार्ड का नंबर बताने को वैकल्पिक रखा गया है यानी ये अभी अनिवार्य नहीं होगा। चूंकि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चुनाव सुधार संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसमें स्वैच्छिक रूप से मतदाता सूची से आधार को जोड़ने की चुनाव आयोग को अनुमति देने का प्रस्ताव शामिल है। मंत्रिमंडल की ओर से मंजूर विधेयक के मुताबिक चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा। इसके तहत एक अन्य प्रावधान में युवाओं को मतदाता के रूप में प्रत्येक वर्ष चार तिथियों को पंजीकरण कराने की अनुमति देने की बात कही गई है। अभी एक जनवरी या उससे पहले 18 वर्ष के होने वालों को मतदाता के रूप में पंजीकरण की अनुमति दी गई है।

अगस्त 2019 में, चुनाव आयोग ने आधार संख्या के साथ आईडी कार्ड को जोड़ने सहित संशोधनों का प्रस्ताव रखा था। इसके जरिए अलग-अलग स्थानों पर एक ही व्यक्ति के कई नामांकन पर अंकुश लगाने की बात कही गई। यह चुनाव आयोग का लंबे समय से लंबित प्रस्ताव है। 2015 में जब चुनाव आयोग ने आधार नंबर को वोटर आईडी नंबर से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय चुनावी कानून शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम शुरू किया, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कार्यक्रम रुक गया था. दरअसल, शीर्ष अदालत ने कहा था कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार का उपयोग वैकल्पिक होगा।

इस क़ानून में आधार को वैकल्पिक ही कहा गया है किन्तु सरकार की बात का भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वैक्सीन के बारे में भी शुरुआत इसी वैकल्पिक शब्द के साथ हुई थी लेकिन आज जिस जोर जबरदस्ती से वैक्सीन दी जा रही है वह एक उदाहरण बतौर है।सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट जब आधार को निजी जानकारी मानते हुए इस पर रोक लगाता है तो यह वैकल्पिक शब्द के साथ अमल में लाने की आखिर क्या ज़रुरत आन पड़ी।यह नागरिक के निवास , मोबाइल नंबर,बैंक,गैस कनेक्शन के अलावा  निजी शारीरिक अंगों उंगलियों के निशान, आंखों की बनावट और चेहरे का खुलासा करता है उसकी वोटर आईडी में क्या ज़रुरत ?वोटर आईडी में पता,नाम, फोटो दर्ज है। चार लोग फोटो देखते हैं यहां तक विभिन्न राजनैतिक दल के लोग भी उस वोटर पर नज़र रखते हैं फिर यदि मतदान गलत होता है तो वहां बैठे सभी लोग जिम्मेदार होंगे।ग़लत तो ई वी एम करती है उस पर चुनाव आयोग नज़र नहीं रखता।उसकी गतिविधियों के बारे में मतदाता , एजेंट और अन्य अधिकारी भी नहीं समझ पाते।उसे हटाना चाहिए ।ई वी एम बदलाव की जगह यह लिंक कराना भी किसी बड़ी साजिश का इशारा ही करता है?

हो सकता है चीन की कई कंपनियां हांगकांग में जिस तरह इस टेक्नालॉजी के ज़रिए अपने विरोधियों के घर तक पहुंच रहीं हैं। मुसीबत में फंसी हमारी सरकार पेगासस की तरह हमारी गतिविधियों पर नज़र रखने और विरोधी वोटर्स की तलाश में यह हथकंडा अपना रही हो। तकनीकी युग में आपने इससे पूर्व सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज मामले में देखा सुना ही होगा कि उनके कम्प्युटर में किस तरह के संदेश प्रविष्ट कराए गए जिनको आधार बनाकर उनको यू ए पी ए के अन्तर्गत तीन साल गिरफ्तार रखा। चीन में इस तरह की कंपनियां बड़े पैमाने पर काम कर रहीं हैं जो चिंता जनक है।यदि भारत सरकार भी इसी तरह आधार को वोट का आधार देर सबेर बनाने वाली है तो उसका डटकर विरोध होना चाहिए क्योंकि आधार हमारे निजत्व से जुड़ा है।उसे किसी विदेशी कंपनी के जरिए लिंक कराना बहुत घातक होगा।जब कभी आनन् फानन में यह सरकार कोई फैसला लेती है तो उसके परिणाम  सिर्फ वह जानती है जो कंपनियां उन्हें समझाती है।यह गलत है इस पर सदन को बहस करना चाहिए।यह देश के तमाम नागरिकों की निजता से जुड़ा मसला है जो उसकी गतिविधियों और अभिव्यक्ति को बाधित करता है ना कि चुनाव की पारदर्शिता से सम्बंधित सामान्य मामला।इस पर गहरे विमर्श की भी आवश्यकता है।

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