राकेश श्रीवास्तव
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन मे अपने विचारों और आचरण द्वारा अभय के जो पाठ पढाये उससे बहुत से सहयात्री प्रेरित हुए।उनमे से एक चमकता सितारा थे,जयप्रकाशजी। यहां एक प्रकरण का उल्लेख करते हुए मुझे यह लिखने मे कोई संकोच नहीं है कि अनेक अवसरों पर बापू से असहमत होते हुए भी जयप्रकाश जी ने अपने निजी जीवन में उनके आदर्शों का भरपूर निर्वाह किया।
18 फरवरी 1940 को जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के कामगारों का आह्वान करते हुए जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि आप लोग जर्मनी के विरुद्ध हो रहे युद्ध में किसी तरह का सहयोग ना करें।ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंके।उनके ऊपर डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1939 के रूल 38(5), 38 (1) a और 34 (6) (h) एवं (k) की धाराएं लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।सिंहभूम मे मुकदमा चला।वह भी गांधी जी की तरह ही किसी कानून के गलत लगने पर उसे स्वैच्छिक रूप से तोड़कर,बिना उसके लिए माफी मांगे,सज़ा भुगत कर विद्रोह दर्ज कराते थे।मुकदमे के दौरान 15 मार्च को उन्होंने यह बात कही जाने की पुष्टि की है।उन्होंने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 255 (2) मे अपना अपराध स्वीकार कर लिया।उन्होंने कहा कि “हां मैंने यह बात कही है।” उन्होंने गवाहों से जिरह करने से भी इंकार कर दिया।जयप्रकाश जी ने 1200 शब्दों का एक लिखित स्टेटमेंट दिया कि मैंने अपने भाषण मे जो कहा है उसका मुझे कोई अफसोस नहीं है।मेरा उद्देश्य और लक्ष्य समस्त मानव जाति के लिए स्वतंत्रता और लोकतंत्र प्राप्त करना है।मेरे विरुद्ध युद्ध को रोकने के लिए प्रयास करने का जो आरोप लगाया गया है वह मेरे लिए देशभक्ति का कर्तव्य है।उन्होंने आशा व्यक्त की कि उनकी सजा से भारत के राजनीतिक और मजदूर नेताओं का ध्यान जमशेदपुर के मजदूरों के पिछड़ेपन और उनकी दयनीय स्थिति की और जाएगा और लाभ ले रहे पूंजीपतियों को उन्हें युद्ध बोनस देने की मांग को गति प्रदान करेगा।उन्होंने यह भी कहा कि हमारा देश देख रहा है कि ब्रिटेन और जर्मनी दोनों एक ही तरह के विजय,वर्चस्व,शोषण और उत्पीड़न के स्वार्थ से प्रेरित हैं। ब्रिटेन नाजीवाद को दबाने के लिए नहीं लड़ रहा है बल्कि एक ऐसे विरोधी के खिलाफ लड़ रहा है जिससे उसको खतरा है कि वह विश्व में नियंत्रण और इसके साम्राज्यवाद और इसके गौरव को चुनौती दे सकता है।उन्होंने आगे कहा कि मुझे जर्मनी की मदद करने की या उसको विजेता के रूप में देखने की कोई चाहत नहीं है।मैं न तो साम्राज्यवाद की जीत चाहता हूं और ना ही नाजीवाद की।इस समय भारत को साम्राज्यवाद से लड़ना है जिससे विश्व में शांति और समृद्धि बनी रहे।जेपी कहते हैं” एक गुलाम को उसकी गुलामी की रक्षा करने का कोई दायित्व नहीं है।उसका एकमात्र दायित्व है अपने बंधनों की गुलामी को तोड़ना।” उन्होंने न तो झूठ बोला और न ही अपने कार्यों के लिए माफी मांगी। 27 मार्च 1940 को जयप्रकाश जी को 9 माह की जेल की सजा दी गई और दिसंबर के अंत में उन्हें रिहा कर दिया गया।
सजा मिलने के उपरांत उन्होंने वहां के डिप्टी कमिश्नर एस डब्ल्यू रसेल को धन्यवाद दिया और अपने स्टेटमेंट की एक प्रति महात्मा गांधी को भी प्रेषित की।गांधी जी ने 26 मार्च 1940 को कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य एक देशभक्त को वह बात कहने के लिए दंडित कर रही है जो लाखों लोग खुलेआम कह रहे हैं।उन्होंने जयप्रकाश जी की उनकी मानवता, साहस और सद्भाव के लिए प्रशंसा की।उनकी स्मृतियों को सादर नमन।