आनन्द पुरोहित
शंकर लालवानी वर्तमान सांसद इन्दौर पांच साल पहले के गत चुनाव में ताई भाई गुट के समझौता प्रत्याशी के रूप में घोषित हुए…. 5 लाख 47 हजार 7 सौ 54 मतों की… एतिहासिक जीत के साथ एम पी बन गये थे…. एक्सीडेंटल एम पी। और इसकी पहली झलक ससंद के पहले सत्र में ही उस समय झलक आई थी जब अलग सिन्धी देश प्रदेश जैसा इनका वक्तव्य सोशल साइट्स पर ट्रोल होते वायरल होने लगा था…..
स्क्रिप्ट राइटिंग- मिस्टेक या शंकित भावाभिव्यक्ति आदि जैसे एक्सयूज के साथ मामला खत्म किया गया । हालांकि उसके बाद ऐसे कई छोटे बड़े मामले थोड़े थोड़े अंतराल पर लगातार आते जाते रहे बेहिसाब पूरे पांच साल।…. इस बार फिर उन्हें ही प्रत्याशी घोषित किया गया है…शायद जीत के उस ऐतिहासिक आंकड़े 5 लाख 47 हजार 7 सौ 54 मतों को ही देखकर उन्हें पुनः प्रत्याशी बनाया गया है। क्योंकि उसके अतिरिक्त तो कुछ खास नहीं था, इसके चलते खुद शंकर लालवानी भी शंकित थे और पहला रिएक्शन कहीं फेंक लिस्ट तों नहीं जैसा कुछ बताया गया…. हालांकि रिकार्ड आंकड़ा तो इस बार भी आएगा क्योंकि ये इन्दौर है…..
इन्दौर राजनीति की बात करें तो बीजेपी की जीत तो यहां से सुनिश्चित ही है, वो यहां से किसी को भी उतारे , वो जीत का रिकार्ड ही बनाएगा। …. इन्दौर की यह हकीकत स्थानीय निकाय चुनाव सहित विधानसभा चुनाव में बीजेपी के परफार्मेस के साथ ही वर्तमान में इन्दौर बीजेपी के कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं का कान्फिडेंस बयां कर रहा है। इसी कान्फिडेंस में इन्दौर बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता वर्तमान में इन्दौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक से विधायक तथा केबिनेट मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने आठ लाख से अधिक वोटों के साथ बीजेपी प्रत्याशी की इन्दौर से जीत का दावा किया है । …… विगत दिनों सम्पन्न विधानसभा चुनाव और वर्तमान में एक के बाद एक लगातार पाला बदलते कांग्रेसियों के साथ इन्दौर की स्थिति के आकलन के आधार पर कहा जा सकता है कि कैलाश विजयवर्गीय ने कोई अतिशयोक्ति या ओवर कांफिडेंस में बात नहीं कही है बल्कि वह विशुद्ध धरातलीय आंकलन ही है।
लेकिन फिलहाल बात बीजेपी द्वारा घोषित इन्दौर से लोकसभा प्रत्याशी शंकर लालवानी की हो रही है, जिन्हें पिछले टर्म में ताई भाई के मतभेदों के बीच समझौता प्रत्याशी के रूप में माना गया था,….. ज़ी हां समझौता प्रत्याशी….जो कि लगातार नौ बार की इन्दौर सांसद के उत्तराधिकारी सासंद बने….एक्सीडेंटल एम पी । वर्तमान सांसद हैं, पिछले चुनाव में पांच लाख से ज्यादा की एतिहासिक जीत उनके नाम दर्ज है, इस बार भी जीत शत प्रतिशत सुनिश्चित ही है इसमें कोई संदेह नहीं है कि…. इस बार भी रिकार्ड जीत ही दर्ज होंगी….।
हालांकि बीजेपी द्वारा जारी अपनी पहली सूची में मध्यप्रदेश की उनतीस में से चौबीस पर प्रत्याशी घोषित करते इन्दौर को होल्ड पर रखें जाने के चलते कयासों के दौर शुरू हो गये थे, बदलाव की आहट में महिला उम्मीदवार के साथ बाहरी प्रत्याशी अथवा किसी केन्द्रीय मंत्री को इन्दौर से लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने के खूब दम भरे गये, आधुनिक पत्रकारिता के नये स्वरूप सोशल मीडिया पर लगातार ब्रेकिंग फेंकी जा रही थी, टेबुलाइट और इवनिंगर अखबार नये नये शगूफे छोड़ रहे थे….. फ्रंट पेज पर स्पेशल स्टोरी में, परन्तु सब धरे रह गए कोई परिवर्तन नहीं कोई बदलाव नहीं कोई महिला नहीं कोई केन्द्रीय मंत्री नहीं ….. फिर से वही ….प्रत्याशी के नाम पर किसी गुट, खेमे और वजनदार की बात और सूत्र जो इन खबरचियों तक पहुंचे सब सिर्फ कयास ही साबित हुए ।
विगत लोकसभा चुनाव के समय भी कुछ कुछ ऐसा ही उंहापोह का माहौल इन्दौर से लोकसभा प्रत्याशी को लेकर बीजेपी में बना था, परन्तु तब इन्दौर बीजेपी के दो बड़े गुट ताई और भाई के शीत युद्ध की संज्ञा दी जा रही थी …..बदलाव की मांग तब उठ रही थी और तब ही यह बदलाव किया गया था, लगातार नौ बार की सांसद सुमित्रा महाजन की जगह नया चेहरा उतारने की जबरदस्त कवायद चली थी ….. कौन होगा इन्दौर का एम पी….
अनुमान लगाना तब बीजेपी प्रत्याशी की घोषणा से पहले मुश्किल हो रहा था … क्योंकि कांग्रेस ने तब पहले ही पंकज संघवी को , जिन्हें कांग्रेस अपने आंकलन के अनुसार बहुत सशक्त प्रत्याशी मान रही थी …. घोषित कर दिया था । वहीं पंकज संघवी भी अपने राजनीतिक जीवन की आखिरी जंग मान उस वक्त के लोकसभा चुनाव समर में कमर कस तमाम साम दाम दण्ड भेद के साथ उतर चुके थे। और जीत के प्रति आश्वस्त हो रहे थे क्योंकि तब …. इन्दौर बीजेपी की गुटीय राजनीति के चलते सुमित्रा महाजन का सब्स्टीट्यूट नहीं मिल पा रहा था और इसी के कारण कांग्रेस और कांग्रेसी आश्वस्त थे। तब जैसे ही शंकर लालवानी के नाम की घोषणा हुई थी…. तो कांग्रेसियों ने जीत के प्रति आश्वस्त होते फटाके भी फोड दिए थे मिठाई बांट जमकर आतिशबाजी की थी।…..
उस समय बीजेपी आलाकमान भी इन्दौर बीजेपी की राजनीति में सक्षमता से हस्तक्षेप करने में खुद को असहाय महसूस कर रहा था और इसके चलते तमाम नामी नामों को दरकिनार कर समझौते के रूप में शंकर लालवानी को प्रत्याशी घोषित किया गया था। …. जी हां समझौते के रूप में…. गुटीय संतुलन तों नहीं कहेंगे लेकिन गुटीय संतुष्टता कह सकते हैं।…. और इसके बाद समझौता प्रत्याशी के रूप में उतारे शंकर लालवानी की एतिहासिक विजय हुई …. यह कैसे हुई मुखबिरों के जरिए पूरी रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंच गई थी …..पता उन्हें भी चल गया था कि इस एतिहासिक जीत में प्रत्याशी के नाम … संगठन…. तथा चुनाव संचालन करने वालों का कितना और क्या योगदान था…. बहरहाल पांच साल के जो निर्वाचन कार्यकाल के आंकलन की बात की जाएं तो वह भी इन्दौर लोकसभा जैसी पावरफुल दमदार सीट के अनुसार नहीं रहा गिनाने को तो प्रत्यक्षतः उपलब्धियां बहुत सी गिनाई जा सकती हैं परन्तु उनके परोक्ष कारणों को देखते हुए श्रेय नहीं दिया जा सकता है…
. वे सब केन्द्र या राज्य की नीतियों के चलते ही रही…. मतलब कुल मिलाकर व्यक्तिगत तौर पर ससंदीय क्षेत्र हेतु उपलब्धि नहीं ही मानी जा सकती हैं। पूरे कार्यकाल समझौते प्रत्याशी के रूप में ही आम अवाम और पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा देखा जाता रहा इसलिए इस बार वे सब परिवर्तन निश्चित मान रहे थे परन्तु हुआ नहीं जबकि इस बार आलाकमान बहुत सशक्त हो चुका है, वहीं इन्दौर बीजेपी की राजनीति में कुछ ऐसा नहीं हो रहा था कि उनके लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई हों। …. लेकिन शायद उसे पिछली जीत के रिकार्ड 5 लाख 47 हजार 7 सौ 54 मतों के आंकड़े ने ही…. बदलाव नहीं करने के लिए प्रेरित किया।
अब इन्दौर में इस बार समझौता प्रत्याशी वाली कोई बात नहीं है और ना ही गुटीय संतुलन की बात है वहीं तमाम पाजिटिव बातों के अलावा सांसदी के पांच साल का गूढ़ अनुभव भी फिर से प्रत्याशी घोषित किए गए लालवानी के खाते में ही है, रिकार्ड जीत भी सुनिश्चित हैं । वहीं नम्बर वन शहर के रूप में पहचान बना चुके इन्दौर की देश के कई विकसित शहरों को पीछे छोड़ते वैश्विक स्तर पर एक अलग ही गौरवशाली गरिमापूर्ण इमेज बन चुकी है।….. तो इस टर्म में ट्रोलिंग की गतिविधियों के इतर…. नम्बर वन शहर इन्दौर की गरिमा और विश्वस्तरीय नाम अनुसार कार्यकाल बनाने की शुभकामनाएं दी जा सकती हैं।
….इस आशा के साथ कि इस टर्म में धीर गंभीर और सशक्त वक्तव्यों के साथ कुछ ठोस धरातलीय कर गुजरने के साथ ऐसा कार्यकाल होगा जो एक्सीडेंटल एम पी को परफेक्ट एम पी परिभाषित करने हेतु सबको मजबूर कर देगा। यही नहीं अगले टर्म पर जब टिकिट देने की बात आए तब सिर्फ रिकार्ड जीत के आंकड़े को नहीं बल्कि आलाकमान सासंद के रूप में आपके द्वारा परफेक्शन के साथ किये परफेक्ट कामों को देख आपकी परफेक्टता पर रिपीट करने हेतु बाध्य हो जाए… सिर्फ जीत के आंकड़े पर रिपीट नहीं मारे। अभी तो शुभकामनाएं।