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हादसा  नही,ये इंसानों की बलि है

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अशोक मधुप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने   गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बने पुल की घटना को हादसा कहा। ये  हादसा नही हो  सकता।  इसमें 136 की  जान गई  हैं। एक सौ के करीब घायल है। कुछ लापता  भी  बताएं जा  रहे हैं। ये 136  लोगों की मौत  हादसा नही हो सकता। ये इंसानों की बलि है।धन की चाह के लिए लोगों  के प्रति किया  गया सामूहिक हत्या का अपराध है। जघन्य अपराध है।   इसके लिए प्रयोग किया  किया गया हर शब्द बौना  है।छोटा है। और ऐसी घटना के लिए सजा भी अधिकतम होनी  चाहिए।

31 मार्च 2016 को कोलकाता में विवेकानंद रोड फ्लाईओवर गिर गया था। इस हादसे में 27 लोगों की मौत हुई थी।हादसे के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार पर कटाक्ष करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘ये कहते हैं- ये तो एक्ट ऑफ़ गॉड है। दीदी, ये एक्ट ऑफ़ गॉड नहीं, ये तो एक्ट ऑफ़ फ्रॉड है, फ्रॉड। ये एक्ट ऑफ़ फ्रॉड का परिणाम है।  उस हादसे में 27 मरे थे,यहां 136 मरे है।  पूरा घटना  क्रम देखने  से लगता है कि ये हादसा नही।मानवता  के प्रति अपराधिक षडयंत्र  है। 136 व्यक्तियों  की सामूहिक हत्या  है। खुला   नरसंहार है। रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग आठ महीने तक पुल को मेंटिनेंस के लिए बंद रखा गया था । मरम्मत का काम एक निजी एजेंसी को सौंपा गया था।बिना  फिटनेस के त्योहार को देखते  हुए धन कमाने की लालसा में यह पुल खोल दिया गया। धन कमाने  की लालसा में पुल की सुरक्षा के लिए  जिम्मेदार यह भी भूल गए कि निर्धारित क्षमता से चार से पांच गुना  व्यक्ति पुल पर जमा  हो गए हैं।पुल पर एकत्र भीड़ को पुल से हटने के लिए न चेतावनी दी गई।  न ही कोई  कार्रवाई की गई।  जिम्मेदार व्यक्ति   तमाशबीन बने खड़े  रहे।   गुजरात पुलिस ने पुल ढहने की घटना में आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या के लिए सजा) और 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) के तहत प्राथमीकि दर्ज की है। इस मामले में अबतक कंपनी के दो प्रबंधक  सहित  नौ लोगों को गिरफ्तार किया   गया है।प्रधानमंत्री मोदी और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल मोरबी में दुर्घटनास्थल पर पहुंचे। पीएम मोदी ने मोरबी में चल रहे रेस्क्यू अभियान के बारे में भी जानकारी ली है। उन्होंने सिविल अस्पताल में भर्ती घायलों से मुलाकात की।  प्रधानमंत्री  ने मोरबी हादसे के बाद स्थिति की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की । कहा कि इस त्रासदी से संबंधित सभी पहलुओं की पहचान करने के लिए एक “विस्तृत और व्यापक” जांच समय की मांग है। जांच में  कोई भी हस्तक्षेप न करे।प्रधानमंत्री कार्यालय  के एक बयान के मुताबिक, उन्होंने कहा कि जांच से मिले प्रमुख सबकों को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए। बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गृह मंत्री हर्ष संघवी भी मौजूद थे। उधर मोरबी पुल मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल हुई है। सुप्रीम कोर्ट 14 नवंबर को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया। इसमें मोरबी ब्रिज ढहने की घटना की जांच शुरू करने के लिए सेवानिवृत्त शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की देखरेख में एक न्यायिक आयोग नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। 

प्रधानमंत्री मौके पर गए।  अस्पताल का निरीक्षण भी   किया।  उनके निरीक्षण  की सूचना पर प्रशासनिक अमला  अस्पताल को चमकाने में लगा रहा। प्रधानमंत्री  गुजरात के  लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ।  राज्य से अपना जुड़ाव समझने के कारण  शायद ऐसा  किया।जबकि बड़ी  घटनाओं पर अति महत्वपूर्ण  व्यक्ति   को नहीं जाना   चाहिए।  उनके आने की सूचना पर प्रशासन का ध्यान बंटता है।  उसका राहत कार्यों से ध्यान हटता है । उसे  वीवीआईपी की देखरेख  में लग जाना  पड़ता  है।  हादसे के बाद प्रदेश  सरकार ने मरने वाले के परिवार को चार लाख  और प्रत्येक  घायल को पचास हजार रूपये सहायता देने की घोषणा  की है।  केंद्र  सरकार ने भी प्रत्येक मृतक  के परिवार को   दो लाख  और घायल को  पचास हजार  सहायता  देने की बात कही है।  ये मदद उस परिवार के लिए  कोई  मायने नही रखती,  जिसके परिवार के   सदस्यों ने  इसमें  जान गवांई। मोरबी के सांसद मोहन कुंडरिया के परिवार के एक  दर्जन  सदस्य   इस  हादसे के शिकार हुए।  ये पुल पर घूमने  आए थे।

 मोरबी राजकोट से मात्र  64 किलोमीटर की दूरी पर मच्छू नदी के तट पर  स्थित है।मोरबी नगर के साथ जिला भी है।यहां की आबादी सवा दो लाख के आसपास है।देश की आजादी से पहले यह राज्य कठियाबाड़ सब एजेंसी के अधिकार में था।यहां के शासक पदवी ठाकुर जदेजा  राजपूत थे।ये अपने को कच्छ के राव का  वंशज मानते थे। 1979 में आई बाढ़ में ये नगर बरबाद हो गया था।  इस बाढ में एक हजार से ज्यादा मौत हुईं थीं।हादसे के लगभग  43 साल में मोरबी ने फिर  अपने को विकास के रास्ते में बढ़ाया ।  यह नगर घड़ी और टायल्य बनाने  के कारखानों के हब का रूप ले चुका है।वर्तमान मोरबी को नगरविन्यास वाघजी ठाकोर की देन है। इन्होंने 1879 से 1948 तक यहां शासन किया।

30 अक्तूबर को ध्वस्त हुए  इस  सस्पेंशन ब्रिज (झूलता पुल )का उद्घाटन 20 फ़रवरी 1879 को मुंबई के तत्कालीन गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया थ। पुल के निर्माण के लिए आवश्यक सभी सामग्री इंग्लैंड से आई थी । सस्पेंशन ब्रिज 1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा था। ये ब्रिज दरबारगढ़ पैलेस और शाही निवास नज़रबाग पैलेस को भी जोड़ता था।  उस सयम  निर्माण की लागत तब 3.5 लाख रुपए थी।सस्पेंशन ब्रिज के कारण शहर में बड़ी संख्या में पर्यटक आते थे । उस समय इसे एक ‘कलात्मक और तकनीकी चमत्कार’ के रूप में देखा जाता था।वर्ष 2001 में गुजरात में आए विनाशकारी भूकंप से यह पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था।

ये हादसा रविवार शाम को उस समय हुआ था, जब लोग छठ मना रहे थे। मिली जानकारी के अनुसार पुल की क्षमता  एक सौ की थी। किंतु हादसे के समय 500 के आसपास व्यक्ति मौजूद थे।छट और अवकाश का दिन होने के कारण हादसे के शिकार पिकनिक मनाने और सैर− सपाटे के लिए निकले थे।  

अब तक की जांच में गलती देखरेख करने वाली कंपनी आरेवा  की प्रकाश में आई  है।उसने त्योहार पर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने  के लिए मरम्मत के  लिए बंद पुल  को  बिना  फिटनेस के  लिए खोल  दिया।  पुल स्थानीय  पालिका  की संपत्ति  है।  उसके जिम्मेदार अधिकारियों ने  भी अपनी जिम्मेदारी नही निभाई।  बिना   अनुमति जनता के लिए  पुल के खुलने पर आपत्ति  नही की।रोक नही लगाई।कंपनी के सुरक्षा  स्टाफ ने ध्यान नही दिया कि क्षमता से  ज्यादा व्यक्ति पुल पर एकत्र हो गए हैं।कोई भी  हादसा  हो  सकता है।टिकट बांटने वाला स्टाफ  टिकट बांटता रहा।  जबकि सौ  से ज्यादा  टिकट जारी होने पर उसे टिकटों की बिक्री  पर रोक लगा देनी थी।पुल पर मौजूद व्यक्तियों को  कुछ देर बाद हटाकर  तब  दूसरों को प्रवेश  दिया जाता। वैसे यह पुल लोगों की पैदल आवाजाही  के लिए बना था,  पिकनिक के लिए  नहीं।  हादसे का बड़ा कारण पुल पर क्षमता से ज्यादा व्यक्तियों का एकत्र  होना रहा।   

इस पूरे मामले की सबसे अच्छी बात यह रही कि आपदा राहत दल तुंरत पंहुच गए।एनडीआरएफ की तीन टीम मौके पर  आकर राहत कार्यों में  लग गईं।  सेना के तीनों  अंग सक्रिय हो गए। हादसे  में ज्यादा मौत होने का  कारण पुल के लिए  15 फुट के आसपास पानी होना और दलदल होना भी   रहा।  पुल से  नीचे  बड़ी संख्या में पानी में समुद्र सोख उगा था।  इसी कारणा दुर्घटना  के शिकार हुए लोगों को निकालने मे परेशानी हुई।यदि ये न होता  तो मृतकों की संख्या कम होती ।

 अब जरूरत यह है कि हादसे के  कारणों की निष्पक्ष जांच  हो। घटना के जिम्मेदार लोगों और अधिकारियों पर फास्ट ट्रेक कोर्ट  में  कार्रवाई  हो,जिम्मेदार से ही  नुकसान की भरपाई  की जाए।  उनकी संपत्ति भी   जब्त हो।दूसरे  देश में  बड़ी तादाद में पुराने पुल हैं।  उन सब की क्षमता और मजबूती की तकनीकि जांच हों।  पुलों की क्षमता के बारे में पुल पर नोटिस बोर्ड  लगे हों।  प्रशासन ऐसे पुलों की समय− समय पर मानीटरिंग भी   करें। 

अशोक मधुप 

 (लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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