संजय कुमार सिंह
इस सरकार ने 10 साल जोर शोर प्रचार किया कि कालेधन पर रोक लगाने के लिए हजारों शेल कंपनियां बंद कराई गई हैं. उनकी अंतिम संख्या 3,80,000 बताई गई थी.
मेरा मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में कंपनियों के बैंक खाते, उनमें कम से कम 5,000 रुपये की जमा राशि, सब अगर एक कमरे में भी चल रहे हैं तो उनका किराया और सबके साइनबोर्ड, सुरक्षा कर्मी, दफ्तर में चाय-कॉफी आदि की व्यवस्था पर भी हर महीने लाखों रुपये खर्च हो रहे होंगे. हजारों लोगों को नौकरी मिली होगी.
इन्हें बंद करवाकर आय या कोई और कर चोरी रोक कर जो पैसा मिला हो, उससे देश-समाज का उतना भला शायद ही हुआ हो. फिर भी यह सब किया गया. उसका नुकसान हुआ. लेकिन बाद में यह भी कहा गया कि शेल कंपनियों की परिभाषा ही तय नहीं है !
लेकिन उसमें मेरी छोटी-सी फर्म का चालू खाता भी बंद कर दिया गया और अब मेरा बैंक उसी खाते में न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने के लिए मुझसे प्रति तिमाही 1500 रुपए से ज्यादा लेता है और इसमें जीएसटी भी होता है. यानी अब यह वसूली भी ‘सेवा’ है !
उस समय मैं अपना पक्ष कहीं नहीं रख सका, मेरी चिट्ठी की पावती तक नहीं आई. और यह सब करके सरकार जी को मिला क्या ? अडानी की कंपनी में विदेश से निवेश आता रहा और वह राशि 20,000 करोड़ रुपए बताई जा रही है.
अगर सभी शेल कंपनियों को बंद नहीं किया जाता, तो इतने काले पैसे शेल कंपनियों के जरिये लगने का कोई उदाहरण या ठोस आंकड़ा नहीं है. ऐसे में असल में शेल कंपनियों को बंद करवाकर अडानी की सेवा की गई है.
अब पता चल रहा है कि उन शेल कंपनियों में से, जिनके जरिये अडानी के यहां निवेश हुआ है उसके खिलाफ मरीशस में कार्रवाई हुई थी और उसका लाइसेंस रद्द किया गया था.
भारतीय संदर्भ में देखें तो इन फर्मों पर जो आरोप है उनमें एक यह भी है कि मनी लांड्रिंग और टेरोरिस्ट फाइंनेंसिंग के जोखिम को कम करने के लिए निर्धारित आंतरिक व्यवस्था भी नहीं की गई थी. अब आतंकवाद रोकने के सरकारी प्रचार को भी याद कर लीजिये और जान लीजिये कि इस कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
जहां तक हिन्डनबर्ग रिपोर्ट का सवाल है, आपको याद होगा कि तब 20,000 करोड़ रुपये का एक पब्लिक इश्यु आया था, जो बाद में रद्द हो गया. आप जानते हैं कि देश बेचा जा रहा है और खरीदार एक ही है. खरीदार को और माल बेचा जा सके इसके लिए जरूरी है कि उसके पास (सफेद) पैसे हों.
हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट से मोटा मोटी यह पता चला था कि शेयरों के भाव कृत्रिम रूप से बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपए के इश्यु से इतनी राशि (सफेद) इकट्ठी करने का उद्देश्य (और इससे ज्यादा खरीदारी करना) था. योजना गड़बड़ाई तो संभल नहीं रही है और नए खुलासे होते जा रहे हैं.
इस बीच, SEBI प्रमुख रहते हुए अडानी की जांच के लिए भेजी गई सामग्री का उस समय के SEBI प्रमुख ने क्या किया, उन्हें याद नहीं है. तब भी नहीं जबकि वे उनकी नौकरी करते हैं और आप समझ सकते हैं कि नौकरी मिलने का कारण उन सामग्रियों पर कार्रवाई नहीं करना (और गायब कर देना) भी हो सकता है.
ईमानदारी स्थापित करने, भ्रष्टाचारियों को नहीं बख्सने और तरह-तरह की मौखिक गारंटी लेने वाले विश्व गुरू इसपर कुछ भी बोलते नहीं हैं. लगता है इस चुनाव के लिए उन्होंने सनातन का देखने-बचाने का ठेका लिया है.