संजय कनौजिया की कलम”
डॉ० राममनोहर लोहिया के अनुसार, असीम तात्कालिकता की इस महान किवदंती ने बड़प्पन के दो और स्वप्न दुनियां को दिए हैं..जब देवों और असुरों ने समुन्द्र मथा तो अमृत से पहले विष निकला..किसी को यह विष पीना था..शिव ने उस देवासुर संग्राम में कोई हिस्सा नहीं लिया और न तो समुन्द्र-मंथन के संयुक्त प्रयास में ही..लेकिन कहानी आगे बढ़ाने के लिए विषपान कर गए..दूसरा स्वप्न हर ज़माने में हर जगह पूजने योग्य है..मेरा इरादा इन किवदंतियों के क्रमश: नुक्सान को दिखाने का नहीं..शताब्दियों के बीच वे गिरावट की शिकार होती रही हैं..राम के भक्त समय-समय पर पत्नी निर्वासक, कृष्ण के भक्त दूसरों की बीवियां चुराने वाले और शिव के भक्त अघोर पंथी हुए हैं..गिरावट और क्षतरूप की इस प्रक्रिया में मर्यादित पुरुष संक्रीण हो जाता है, उन्मुक्त पुरुष दुराचारी हो जाता है, असीमित पुरुष प्रासंगिक और स्वरूपहीन हो जाता है..राम का गिरा हुआ रूप संक्रीण व्यक्तित्व, कृष्ण का गिरा हुआ दुराचारी व्यक्तित्व और शिव का गिरा हुआ रूप स्वरुपहीन व्यक्तित्व बन जाता है..राम के दो अस्तित्व हो जाते हैं, मर्यादित और संक्रीण, कृष्ण के उन्मुक्त और क्षुद्र प्रेमी, शिव के असीमित और प्रासंगिक..!
डॉ० अंबेडकर ने हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की कटु शब्दों से आलोचना करी, तो डॉ० लोहिया ने अपने अंदाज़ में व्यंगनात्मक रूप से हिन्दू देवी-देवताओं पर व्याख्या कर प्रहार किया..डॉ० लोहिया ने यह स्वीकारा कि डॉ० अंबेडकर के कटु वचन की पीढ़ा समझी जा सकती है कि वे जिस वर्ग के लिए आजीवन संघर्षरत रहे वह वर्ग पिछले पांच हज़ार या उससे भी अधिक समय से प्रताड़ित होता चला आ रहा है और आज भी वह वर्ग सवालिया निशान लिए हुए खड़ा है..डॉ० लोहिया ने अपने दौर में एक प्रयोग करना चाहा और जन-भावनाओं को समझते हुए वर्ष 1961 में रामायण मेले के आयोजन की कल्पना की थी..इस आयोजन से उनका उद्देश्य यह था कि रामायण मेले को केंद्र में रखकर अयोध्या का विकास करना तो होगा ही, लेकिन..रामायण का सत्य रुपी अमृत बाहर निकलकर आएगा..और इस आयोजन में सबकी भागेदारी सुनिचित हो चाहे वह शूद्र विद्वान हो या मुसलमान या अन्य धर्म..डॉ० लोहिया चाहते थे कि इस मेले में राम का महिमामंडन और उनकी वीरता की गाथाओं का ही बख़ान न हो, बल्कि समुन्द्र मंथन जैसी किवदंती के आधार पर प्राचीन काल से लेकर आज तक लिखी सभी रामायणों को इक्कट्ठा कर उस पर सभी वर्ग के विद्वान, एक नवीन-स्वस्थ्य और उज्जवल चर्चा कर सत्य का अमृत निकालें जिसमे न जाति हो न अमीरी-गरीबी की ऊंच-नीच और न ही कोई पाखण्ड-अंधविश्वास जैसी विनाशक कुरुतियां..डॉ० लोहिया ने पूरा खाका तैयार किया उन्होंने देश भर की सभी रामायणों का जिक्र किया जैसे बौद्ध परम्परा में श्री राम से सम्बंधित “दशरथ जातक कथा”, “अनामक जातक कथा” तथा “दशरथ कथानक”..यह तीन जातक कथाएं उपलब्ध हैं..जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी जो ग्रन्थ लिखे गए जिनमे मुख्य हैं “विपुलसूरी कृत पउमचरियम”, “आचार्य रविषेण कृत पद्यमपुराण”, “स्वयंभू कृत पउमचरित्र”, “रामचंद्र कृत चरित्र पुराण”, तथा “गुणभद्र कृत उत्तरपुराण”..जैन परंपरा के अनुसार राम का मूल नाम “पद्य” था..अनेक भारतीय भाषाओँ जो हिंदी सहित, 11 मराठी, 8 बांग्ला की, 25 तमिल की, 12 तेलगू की, 6 उड़िया की व अन्य सभी प्रदेशों के साथ, आचार्य चतुर सेन का विवादित नोबल “वयं-रक्षाम” और पेरियार रामास्वामी के द्वारा अंग्रेजी में लिखी रामायण जिसका ललई सिंह यादव ने वर्ष 1969 को हिंदी अनुवाद “सच्ची रामायण” के नाम से प्रकाशित किया था और यह विवादित रामायण थी..वे रामायण जो उर्दू-फ़ारसी-अरबी भाषाओँ में आईं तथा स्वामी करपात्री महाराज की वैज्ञानिक आधार पर रची गई “रामायण मीमांसा” आदि इत्यादि का..इस तरह के मेले को करने की, डॉ० लोहिया ने समाजवादी अनुयायियों को स्वीकृति दी थी.
.उसको समय-समय पर कुछ लोगों ने आगे बढ़ाया..जिसमे गैर हिन्दू थे “प्रख्यात चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन”..हुसैन ने, डॉ० लोहिया के निर्देश पर इस बीड़े को उठाया और अयोध्या-बनारस-चित्रकूट व आस-पास के अन्य जिलों में रहकर रामायण को लेकर अध्यन्न किया और उसके बाद उन्होंने अपनी पेंटिंग द्वारा आंध्रा प्रदेश में रामायण मेले की प्रदर्शनी आयोजित की..फ़िदा हुसैन, डॉ० लोहिया के प्रति इतने आभारी हुए कि उन्होंने कहा जो परम सुख की आज में अनुभूति प्राप्त कर रहा हूँ और अपने को इतना ऊँचा महसूस कर रहा हूँ यह डॉ० लोहिया की ही देन है..फ़िदा हुसैन भावुक होकर कहते है कि मेले की प्रदर्शनी से वहां की जनता का सैलाब इतना प्रभावित था, कि कोई मेरा हाँथ चूम रहा था तो कोई उँगलियाँ, कोई आशीर्वाद दे रहा था तो कोई मेरे पाँव में गिर रहा था..वह पल मेरे लिए अत्यंत ही रोमांचक था..वर्ष 1967 में डॉ० लोहिया की मृत्यु हो गई और इस अभियान में स्थिलता आ गई..बाद में 1973 में उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने, डॉ लोहिया के विचारों को और उनके द्वारा बताये गए रामायण मेले के आयोजन को चित्रकूट में, साकार रूप दिया और उसके बाद 1982 में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीपद मिश्रा ने, अयोध्या में रामायण मेले का आयोजन करवाया परन्तु यह मेले राम के महिमा मंडन तक सीमित रहे लेकिन सत्य रुपी अमृत जो डॉ० लोहिया का स्वप्न था वह आज भी अधूरा है..डॉ० लोहिया ने आनंद-प्रेम और शान्ति के आह्वान के साथ रामायण मेले की संकल्पना की थी…
धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)