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अधर्म का नाश हो* (पार्ट-8)

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“संजय कनौजिया की कलम”✍️
(दिनांक-4/7/22)
लेखक-“गोपेश्वर सिंह” एवं शोधकर्त्ता “डॉ० प्रथमा बैनर्जी” के लिखे आलेख के बाद, छत्तीशगढ के वरिष्ठ पत्रकार लेखक तथा अध्ययनकर्ता “उत्तम कुमार” जो कोरस डॉट कॉम और दक्षिण कोरस के संपादक भी हैं, उनके आलेख का दिनांक-13/4/21 को जिक्र आया था..जिसमे उन्होंने डॉ० अंबेडकर द्वारा लिखित सबसे ज्यादा विवादित किताब, हिन्दू धर्म की पहेलियाँ को विस्तार से शब्दों में पिरोया है..उसके कुछ महत्वपूर्ण अंश प्रेषित है..उत्तम ने दर्शाया है कि डॉ० अंबेडकर ने अध्ययन के साथ सैकड़ों पुस्तकों की रचना की..उन्होंने एम. ए. / पी. एच. डी. / डी. एस. पी. / एल. एल डी. / डी. लिट / बॉर-एट-लॉ आदि डिग्रियां हासिल के साथ अपने लेखन कार्यों को 22 खण्डों व कई भाषाओँ में तथा अन्य विधाओ में संग्रहित किया था..डॉ० अंबेडकर का उद्देश्य हर वक्त लोगो के लिए नई ज्ञान की बातों के खोज से जुड़ा हुआ था..उनका यह प्रयास हमें ज्ञान की ऊंचाइयों तक ले जाता है.. “जाति का विनाश” पुस्तक के बाद यह दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमे डॉ० अंबेडकर ने हिन्दुओं को मुक्ति के रास्ते सुझाए..मनुस्मृति जलाने के बाद सबसे ज्यादा उनका विरोध उनकी चर्चित पुस्तक “हिन्दू धर्म सम्बंधित पहेलियों” के लिए किया गया..पहेलियाँ उनके द्वारा हिन्दू धर्मों का गहनतम अध्यन है..महाराष्ट्र सरकार ने इन ग्रंथों को 1987 में अविकल प्रकाशन किया..!
डॉ० अंबेडकर ने लिखा, मान्यताओं और सिद्धांत के अत्यंत उलझे हुए संग्रह का नाम हिन्दू धर्म है..ब्राह्मणो ने किसी भी प्रकार के संदेह के लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी..उन्होंने एक अत्यंत शरारत पूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन किया है..इस सिद्धांत को उन्होंने सर्व सामान्य लोगों में प्रचार कर दिया है..वह सिद्धांत है वेदों के निभ्रांत होने का, यदि हिन्दुओं की बुद्धि को ताला नहीं लग गया है और यदि हिन्दू सभ्यता व संस्कृति एक सड़ा हुआ तालाब नहीं बन गई है और यदि भारत वर्ष की तर्रक्की करनी है तो इस सिद्धांत को जड़ मूल से उखाड़ना चाहिए..वेद बेकार की चार पुस्तकें मात्र हैं..इस पुस्तक की दूसरी पहेली से नौंवीं पहेली तक सभी पहेली वेद संबंधी हैं..वेदों के बारे में शास्त्रीय मत में लिखा है..पुरुष नाम के एक मनगढंत जीव ने एक मनगढंत यज्ञ किया था और इसी यज्ञ ने ऋज्ञ (अग्नि), यजु (वायु), व साम (सूर्य) नाम के तीनो वेदों को जन्म दिया..वेद के बारे में पढ़े-लिखे ही नहीं प्रत्येक विद्वान की यह मान्यता है कि वे प्राचीन भारतीय समाज का अत्यंत ईमानदारी से किया गया सामाजिक चरित्र चित्रण है..!
नर बलि-पशु बलि, ब्राहम्णो का गौ-मांस के सेवन, देवताओं के सोमरस और शूद्रों को सुरा, ब्राह्मणो द्वारा, माँ-बहन-बहु-बेटी से शारारिक सम्बन्ध रखना, पुराण-निषद-उपनिषद आदि आडम्बरी पुस्तकों के विरोध सहित.. हिन्दू धर्म के दो बड़े पात्र राम व कृष्ण के संबंध में डॉ० अंबेडकर ने व्यापक टीका किया है..राम के जन्म को लेकर यह कथा गढ़ी गई कि उनका जन्म ऋषि श्रृंग द्वारा दिए गए पिंड से हुआ था..यह सच्चाई को ढकने का एक रूपक मात्र था, राम का जन्म कौशल्या व ऋषि श्रृंग के संपर्क से हुआ था..पेड़ की आड़ में छिपकर बाली का वध..राम के भाई लक्ष्मण द्वारा सूर्फनखा के नाक-कान काटना, दो-दो बार अग्नि परीक्षा के बाद सीता का त्याग देने वाले राम को आराध्य देव नहीं मानते थे..तपस्या कर रहे शम्बूक का धड़ इसलिए गले से अलग कर दिया कि वह शूद्र था..उसी तरह कृष्ण, कौरव-पांडव के समकालीन हुए ही नहीं..कृष्ण पांडवों का मित्र था, जिसका अपना साम्राज्य था..यह संभव नहीं मालूम देता कि एक ही समय में ऐसे दो साम्राज्य एक दूसरे के आस-पास रहें हों..पूतना नाम की स्त्री को कृष्ण ने बचपन में ही मार डाला..स्नान कर रहीं गोपियों के कपडे उठा ले जाने और उन्हें नग्नावस्था में ही उन्हें बाहर आने के लिए मजबूर करने वाले कृष्ण को वे अपना भगवान नहीं मानते..यह बात सर्वविदित है कि बहुत समय तक नर-बलि की प्रथा सारे हिन्दुस्तान में प्रचलित थी, और ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो यह विश्वास करते कि जब भी भारत के किसी नुक्कड़ में, किसी न किसी कोने में, देवी को प्रसन्न करने के लिए नर-बलि दी जाती थी..शिव पशु बलि को स्वीकार नहीं करते, पहले हिंसक से अहिंसक बनकर ब्राह्मणो ने एक हिंसक देवता को अहिंसक देवता बना दिया..शिव के एक अहिंसक देवता बन चुकने के बहुत बाद काली पूजा की संस्कृति अस्तित्व में आई..पहेली पंद्रह से सत्रह में डॉ० अम्बेडकर वर्ण धर्म और आश्रम धर्म पर दृष्टिकोण रखते हैं..”हिन्दू धर्म की पहेलियाँ” इस महान पुस्तक में दिखाने का प्रयास हुआ है कि हिन्दुओं का सर्व-साधारण समाज, वह इस बात को हृदयंगम कर ले कि हिन्दू समाज, सनातन नहीं है..!
शाब्दिक समानता होने के बावजूद, शब्दों का जो सान्दर्भिक और तात्विक अर्थ होता है, वह अक्सर विभिन्ता लिए होता है..शब्दों में जो अर्थ छुपे होते हैं उसके मूल भाव को आंकने हेतू पाठक के विवेक पर निर्भर करता है कि वह उसे किस दृश्टिकोण से पढ़ और समझ रहा है.. 3, वर्ष पूर्व, दिल्ली स्थित “समाजवादी समागम” के केंद्रीय कार्यालय द्वारा, डॉ० राममनोहर लोहिया के एक अति महत्वपूर्ण लेख राम, कृष्ण और शिव जो वर्ष अगस्त-1955, को उनकी अपनी अंग्रेजी पत्रिका मैनकाइंड में छपा था..उस लेख के हिंदी अनुवाद की पुस्तिका प्रकाशित हुई थी..पुस्तिका के प्रकाशक समाजवादी चिंतक, नेता व पूर्व मंत्री-मध्य प्रदेश सरकार, “रमाशंकर सिंह जी” ने समागम की एक बैठक में, मुझे स्नेह पूर्वक अपने कर-कमलों द्वारा प्रदान की थी..उसी पुस्तिका के कुछ मुख्य अंश प्रेषित हैं..डॉ० लोहिया लिखते हैं कि, आज में आपसे एक बात करूँगा, जिसे धर्म के आचार्यों को करनी चाहिए लेकिन वे नहीं कर रहे..वे तो गलत और गैर जरुरी कामों में फसे हुए है..में अपने लिए कह देता हूँ कि में “नास्तिक” हूँ..कोई यह न समझ बैठे कि ईश्वर से मुझे मोहब्बत हो गई है..दुनियां के देशों में हिन्दुस्तान किंवदंतियों के मामले में सबसे धनी है…
धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)


	
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