जावेद शाह खजराना
संस्कृत में एक श्लोक हैजननी जन्मभूमिश्च – स्वर्गादपि गरियसीयानि जननी (मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है।
इस बात को तो हम भी मानते है कि माँ के कदमों के नीचे जन्नत है। ऐसे में भला कौन अपनी जन्नत से भी बड़ी जन्मभूमि को भूल सकता है? अपने पुराने घर अपने बचपन की गलियों को भला कौन याद नहीं करता।
आजकल की जनरेशन की जन्मभूमि लाख सरकारी और प्रायवेट अस्पताल होती हो लेकिन बरसों पहले घर के अंदर ही बच्चों का जन्म हो जाया करता था लिहाजा ऐसे खुश किस्मत लोग अपने जन्नत रूपी पुराने घर को कभी नहीं भूल पाते। रह-रहकर उन्हें अपना अतीत याद आता है मानो पुराना शहर बुला रहा हो।
फ़िल्म दुनिया के लोगों में किशोर कुमार हमेशा अपनी जन्मभूमि खंडवा को याद करते थे। कैफ़ी आज़मी भी आख़री वक्त आजमगढ़ जा बसे । ऐसे में नसीरुद्दीन शाह कैसे पीछे रह सकते थे। फिल्मों में इमोशनल रोल निभाने वाले नसीर शाह जी हकीकी जिंदगी में भी बहुत संजीदा है।
अपनी दमदार एक्टिंग से फिल्म दुनिया में एक अलग मुक़ाम हासिल करने वाले फ़िल्म एक्टर नसीरुद्दीन शाह को वैसे तो सभी जानते हैं , लेकिन उनकी जन्मस्थली के बारे में शायद ही सबको मालूम हो। यहां तक कि उनके शहर के बाशिदों को भी पता नहीं था कि अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले पद्मश्री नसीरुद्दीन की पैदाईश यूपी के बाराबंकी में हुई थी ।
उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगा बाराबंकी नसीरुद्दीन शाह का पैतृक नगर है। वर्तमान में इस मकान के मालिक मो. युनुस है । यूनुस साहब बताते हैं कि नसीरुद्दीन के आने के बाद इस खंडहरनुमा कोठी को नई पहचान मिल गई। घर , मोहल्ले के साथ शहर का नाम भी चमक उठा
नसीर साहब के बाराबंकी आने के बाद अखबारों में खबरें छपी। नसीरूदीन शाह जी के इस घर में आने के बाद आने वालों की तादाद अचानक बढ़ गई। अब यहां आते ही लोग कहते हैं कि यह नसीरुद्दीन शाह का मकान है।
बताते चलें कि नसीरुद्दीन शाह का जन्म 20 जुलाई 1950 को यू0पी0 के बाराबंकी शहर के घोसियाना मोहल्ला में हुआ था। अब तक यहां के लोग इस बात से लगभग अंजान थे। इसकी जानकारी शहर के बाशिंदों को तब हुई जब वह अपनी पैदाइश के करीब 60 साल बाद अचानक अपनी पत्नी रत्ना पाठक के साथ अपनी जन्मस्थली घोसियाना मोहल्ला पहुंचे।
नसीरूदीन शाह के बड़े भाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वाईस चांसलर है उनका नाम जमीरुद्दीन शाह है। पढ़े-लिखे लोगों का खानदान है नसीरुद्दीन शाह जी का। इनके वालिद भी शाही सेना में अफसर थे।
आज नसीर साहब 72 बरस के है। 3-4 बरस की उम्र तक यहाँ रहे। अजमेर में पढ़ाई करने के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया जहां इनके भाई चांसलर है।
नसीरुद्दीन शाह कि ये जन्मस्थली थी बाराबंकी शहर के घोसियाना मोहल्ले में मौजूद एक खंडरनुमा इमारत ।जो आज कि तारीख में मोहम्मद युनुस की संपत्ति है। पचास के दशक में ये खंडरनुमा ईमारत राजा जहांगीराबाद की आलीशान कोठी हुआ करती थी और राजा जहांगीराबाद की इस आलीशान कोठी में सेना के एक अधिकारी इमामुद्दीन शाह का परिवार रहा करता था। 20 जुलाई 1950 को इमामुद्दीन शाह के घर एक बेटा पैदा हुआ, जिसने इसी कोठी के में लड़खड़ा लड़खड़ा कर चलना सीखा और जब ये बच्चा तीन चार साल का ही था तभी इमामुद्दीन शाह का तबादला हो गया और उनका परिवार यहां से चला गया ।
अजमेर और अलीगढ़ में पढ़ाई करने के बाद ये लड़का बम्बई जा बसा और फिर साठ सालों के बाद जब यही नन्हा-मुन्ना बच्चा इस कोठी में आया तो वो आलिशान कोठी तो खंडरनुमा ईमारत में तब्दील होकर गुमनामी के अंधेरो में खो चुकी थी। लेकिन वो नन्हा मुन्ना बच्चा हिंदी फिल्म जगत का मशहूर अदाकार नसीरुद्दीन शाह बन चुका था।
राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्मश्री जैसे सम्मान पाने और शोहरत की बुलंदियों को छूने के बाद भी नसीरुद्दीन शाह अपनी जन्मस्थली को नहीं भूले और उसे तलाशने की जुस्तुजू करते रहे।
एक लम्बे अरसे बाद जब नसीरुद्दीन शाह यहां पहुंचे तो सब कुछ बदल चुका था और वो आलिशान कोठी जो कभी उनकी किलकारियों से गूंजा करती थी। अपनी बदहाली के दौर से गुजर रही कोठी का काफी हिस्सा गिर चुका था। लेकिन नसीरुद्दीन अपनी जन्मस्थली के बचे हुए हिस्से में ऐसा खोए जैसे उनके बचपन की यादें माजी से निकलकर उनके सामने आ गई हो।
उन्होंने कोठी के एक कमरे की तरफ इशारा किया कि शायद मैं इसी कमरे में पैदा हुआ था और उस कमरे के सामने खड़े होकर फोटो खिंचाया। उनकी आँखों में चमक और दिल में आह थी।
मकान मालिक यूनुस के पास जब नसीर साहब का फोन आया तो मकान मालिक ने समझा कोई मजाक कर रहा है। नसीरुद्दीन शाह के आने के साथ ही इस गुमनाम ईमारत को एक नयी पहचान मिल चुकी है। इस कोठी और नसीरुद्दीन शाह के रिश्ते का पता चलने के बाद इस कोठी के मौजूदा मालिक मोहम्मद युनुस और उनका परिवार भी काफी खुश है। मोहम्मद युनुस ने बताया कि कुछ दिनों पहले उनके पास एक फोन आया और फोन करने वाले ने उनसे कहा कि नसीरुद्दीन शाह साहब आपके मकान में सन 1950 में पैदा हुए थे और वो अपनी जाये पैदाइश को देखना चाहते हैं।
मोहम्मद युनुस को लगा कि किसी ने मजाक किया होगा और बात आयी गयी हो गयी।
फिर अचानक एक दिन फोन आया ।फोन करने वाले ने खुद को नसीरुद्दीन शाह बताते हुए कहा कि मैं रास्ते में हूं और एक आधे घन्टे में आपके घर आ रहा हूं। अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो मैं अपनी पैदाइश की जगह देखना चाहता हूं। फिर अचानक वे आ गए। हम ये सोच रहे थे की हो सकता है कि कोई गलत मैसेज मिला हो।
बहरहाल वे खुद आए और ये हम लोगो की खुशनसीबी है कि इतना बड़ा अदाकार जो हिन्दुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में फिल्मों और कामर्शियल फिल्मों का बेताज बादशाह है और वह हमारे सामने बिल्कुल एक दो फिट की दूरी पर खड़ा था। तो एक ताज्जुब तो हुआ और आज भी वो एक अजीब सा लम्हा महसूस होता है। एक ख्वाब सा लगता है। सोचा भी नहीं था कि कभी वे यहां आएंगे।#javedshahkhajrana