-निर्मल कुमार शर्मा
अभी पिछले दिनों फिर इस देश के लाखों बैंक कर्मचारी हड़ताल पर जाने पर मजबूर हुए हैं, आखिर इस देश के किसानों,मजदूरों,कर्मचारियों, महिलाओं,शिक्षकों,बेरोजगारी से त्रस्त नौजवानों और आम जनता तक को भी बार-बार अपनी बात और आवाज को सत्तारूढ़ सरकारों के कर्णधारों के बहरे कानों तक पहुँचाने के लिए हड़तालों,प्रदर्शनों का सहारा क्यों लेना पड़ता है पिछले साल भी लगभग समूचे उत्तर भारत के करोड़ों किसान,दस बिभिन्न ट्रेड यूनियनों के 25 करोड़ कर्मचारी,उनके समर्थक व परिवावारवाले और चालीस लाख बैंक कर्मचारियों का एक बहुत बड़ा कुनबा सरकार के निजीकरण,गलत, भ्रामक,शोषणकारी,श्रमिक विरोधी और कार्पोरेट हितैषी नीतियों के विरोध में जबर्दस्त तौर पर आंदोलित हुआ था वे अपने दो दिन का वेतन में भी कटौती करवा दिए थे। सरकार द्वारा बनाई गई किसी भी कानून की कमियों को उजागर करने और उसके विरोधस्वरूप हड़ताल,धरना,प्रदर्शन करने का इस देश के हर नागरिक,किसान,मजदूर आदि सभी का संवैधानिक अधिकार है
। उस स्थिति में सरकार का यह संवैधानिक,न्यायोचित और नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह अपने देश के हर तबके और हर वर्ग के लोगों से संवाद स्थापित करके अपनी नीतियों के बारे में उन्हें आश्वस्त करे। यही लोकतंत्र का तकाजा भी है,लेकिन इस देश में अब यह परंपरा बन गई है कि किसी भी आंदोलन, धरना,प्रदर्शन और विरोध की आवाज को पूरी निर्ममता और क्रूरता से कुचल दो,चाहे वे किसान हों,मजदूर हों,बेरोजगार युवा हों,कर्मचारी हों, महिलाए हों,छात्र हों या अन्य कोई भी असंतुष्ट व व्यथित वर्ग या समाज हो ! उन्हें कुचलने केे लिए पानी की तेज बौछारों के साथ-साथ, पुलिस की लाठियों से बुरी तरह पीटना या यहाँ तक कि पुलिस द्वारा सीधे गोली मारकर हत्या कर देना वर्तमान सत्ता में अब एक आम बात हो गई है। हांलांकि यह अपसंस्कृति बीजेपी के पूर्ववर्ती कांग्रेसियों के जमाने से चली आ रही है,उस समय यही बीजेपी वाले कांग्रेसियों द्वारा उक्त वर्णित वर्गों पर किए दमनात्मक कार्यवाही का खूब विरोध करते थे, लेकिन अब सत्ता में आने पर वही बीजेपी के कर्णधार अब अपनी चाल, चलन और चरित्र सबकुछ बदल दिए हैं ! दमन के मामले में उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ कथित योगी आदित्यनाथ सबसे क्रूर और अमानवीय साबित हो रहा है !
पिछले दिनों एक साल से हड़तालरत किसानों के अनुसार पिछले दिनों सरकार द्वारा किसानों पर लादी गई कृषि बिल बिल्कुल किसान विरोधी व बड़े कार्पोरेट्स के हित में है,इसी प्रकार अभी पिछले दिनों श्रम सुधार के नाम पर लाए गए बिल बड़ी कंपनियों के हित में हैं,जिसमें स्पष्ट प्रावधान है कि 300 तक मजदूरों की संख्या तक वाली कंपनी का मालिक कभी भी किसी मजदूर को अब 8 घंटे की जगह जबरन 12 घंटे तक काम ले सकता है और उसके इंकार करने पर बिना झिझक और बगैर कारण बताए उसे निकाल बाहर कर सकता है। बैंक कर्मचारी इसलिए आंदोलन करने को बाध्य हुए है,क्योंकि उनके अनुसार आज की वर्तमान समय की सरकार की हर नीति बैंक कर्मचारियों के विरूद्ध व सरकार के लाडले कार्पोरेट्स के हित में है,इसके अलावे बैंक कर्मचारियों को यह आशंका है कि सरकार की निजीकरण,आउटसोर्सिंग और अनुबंध प्रणाली जैसी नीतियों से कुछ ही दिनों में बैंकों के 75 प्रतिशत तक कर्मचारी अपनी नौकरी से हाथ धो बैठेंगे। यह भी एक कटुसच्चाई है कि बैंकों का दिवाला पिटवाने में सत्ता के कर्णधारों और उनके बड़े पूँजीपति यारों के गठबंधन का पूरा सहयोग है। बड़े पूँजीपतियों द्वारा लिए गए अरबों-खरबों के बड़े कर्जों को एनपीए के नाम पर बड़ी ही उदारता,सहृदयता और भातृभाव से माफ कर दिया जाता है,वहीं दूसरी तरफ छोटे-छोटे कर्जों के लिए किसानों,मजदूरों और एक आम आदमी से कर्जवसूली के लिए यही बैंक और सरकारी विभाग बहुत ही क्रूरतापूर्वक उनके खेत,मकान तक जब्त,कुर्क या नीलाम तक करवा देता है। आखिर हड़ताल करने की कष्टकारी निर्णय लेने और परिस्थितियों को पैदा तो सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियां ही करतीं हैं,इसलिए हड़ताल के लिए केवल किसानों,मजदूरों और कर्मचारियों को दोष देना कतई न्यायसंगत नहीं है। भारतीय कहावत है ‘ताली दोनों हाथ से बजती है। एक हाथ कभी ताली बजा ही नहीं सकती ! ‘ इसलिए नरेन्द्र मोदी सरकार को अब आत्मावलोकन कर लेना चाहिए कि आखिर इस देश का मजदूर वर्ग, किसान वर्ग,कर्मचारी वर्ग,आम आदमी,बेरोजगार युवा वर्ग आदि सभी उसके खिलाफ क्यों होता जा रहा है ? यह दुःखद स्थिति एक लोकतांत्रिक देश के लिए कोई बहुत आदर्श की स्थिति नहीं है।
-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र, संपर्क-9910629632,